Book Title: Aagam 45 ANUYOGDWAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
मूलं [१५४] / गाथा ||१२५-१३२||
(४५)
प्रत
सूत्रांक
[१५४]
गाथा: ||--||
व्वभूएसु, तसेसु थावरेसु अ । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासिअं॥२॥ जह मम ण पिअं दुक्खं जाणिअ एमेव सव्वजीवाणं । न हणइ न हणावेइ अ सममणइ तेण सो समणो ॥३॥ णत्थि य से कोइ वेसो पिओ अ सव्वेसु चेव जीवेसु । एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पजाओ ॥४॥ उरंगगिरिजलणसागरनहतलतरुंगणसमो अ जो होइ । भमरमियधरणिजलरुहरविपवणसमो अ सो समणो ॥५॥ तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ ण होइ पावमणो । सयणे अ जणे अ समो समो अ माणावमाणेसु ॥ ६॥ से तं नोआगमो भावसामाइए, से तं भावसामा
इए, से तं सामाइए, से तं नामनिप्फण्णे । इहाध्ययनाक्षीणाद्यपेक्षया सामायिकमिति वैशेषिकं नाम, इदं चोपलक्षणं चतुर्विंशतिस्तवादीनाम् , अ-15 स्थापि पूर्वोक्तशब्दार्थस्य सामायिकस्य नामस्थापनाद्रव्यभावभेदाचतुर्विधो निक्षेपः, अत एवाह-से समा- सओचउबिहे' इत्यादि, सूत्रसिद्धमेच, यावत् 'जस्स सामाणिओ अप्पा' इत्यादि, यस्य-सत्त्वस्य सामानिक:
दीप अनुक्रम [३२५-३३६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
~ 514~

Page Navigation
1 ... 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547