Book Title: Aagam 45 ANUYOGDWAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४५)
प्रत
सूत्रांक
[१५० ]
गाथा:
II--II
दीप
अनुक्रम
[३११
-३१७]
अनुयो०
मलधारीया
॥ २४१ ॥
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र -२ (मूलं+वृत्तिः) मूलं [ १५० ] / गाथा ||११९-१२२ ||
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भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्ताणंतयं होइ, अहवा उक्कोसए परित्ताणंतर रूवं पक्खित्तं जहन्नयं जुत्ताणंतयं होइ, अभवसिद्धिआवि तत्तिआ होइ, तेण परं अजहण्ण
कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्ताणंतयं ण पावइ । उक्कोसयं जुत्ताणंतयं केवइअं होइ ?, जहण्णपुणं जुत्ताणंतएवं अभवसिद्धिआ गुणिया अण्णमण्णवभासो रूवृणो उक्कोस जुत्ताणंतयं होइ, अहवा जहण्णयं अनंताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं जुताणंतयं होइ । जहण्णयं अणंताणंतयं केवइअं होइ ?, जहण्णएणं जुत्ताणंतपणं अभवसिद्धिआ गुणिआ अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं अणंताणंतयं होइ, अहवा उक्कोस जुत्ताणंतर रूवं पक्खित्तं जहण्णयं अणंताणंतयं होइ, तेण परं अजहण्णमणुकोसयाई ठाणाई । से तं गणणासंखा । से किं तं भावसंखा ?, २ जे इमे जीवा संखगइनामगोताई कम्माई वेदेइ (न्ति) । से तं भावसंखा, से तं संखापमाणे, सेतं भावपमाणे, से तं पमाणे । पमाणेत्ति पयं समत्तं ( सू० १५० )
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [४५], चूलिकासूत्र [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्तिः
अत्र मुद्रणदोषात् सूत्रक्रमांक १४९' स्थाने सूत्रक्रमांक १५०' इति मुद्रितं
वृत्तिः उपक्रमे
प्रमाणद्वारं
~ 485 ~
॥ २४१ ॥

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