Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[-]
दीप अनुक्रम
[-]
उपोद्घातनिर्युक्तिः
॥१३३॥
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“आवश्यक”- मूलसूत्र- १ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-१
अध्ययनं [-] निर्युक्तिः [ १३० ], भाष्यं [-] वि० भा० गाथा [-], मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
बच्छगं पाडलाएं मुयइ तोऽणणुयोगो वुद्धकज्जस्स य अप्पसिद्धी, जइ पुण जो जाए तं ताए चैव मुयह तो अणुयोगो तो युद्धकज्जरस य निष्फसी, एवमिहावि जइ जीवलक्खणेणमजीवं परूवेइ अजीवलक्खणेणं वा जीवं तो अणणुओगो भवइ, ततो वितहपरूवणेण विसंवयंतेण अत्थो विसंवयर, अत्थेण विसंबयंतेण चरणं विसंवयर, चरणविणासे मोक्खाभावो, मोक्खाभावे दिक्खा निरत्थिगा, अह पुण जीवलक्खणेणं जीवं परूवेइ अजीवलक्खणेणं अजीवं तो अनुयोगो, ततो कज्जसिद्धी, अविगलो अत्थावगमो होइ, ततो चरणबुडी ततो मोक्खो इति, उक्तो द्रव्याननुयोगानुयोगयोर्वत्सगोदृष्टान्तः । सम्प्रति क्षेत्राननुयोगानुयोगयोः कुब्जोदाहरणं भाव्यते - पइठाणे नगरे सालिवाहणो राया, सो वरिसे वरिसे भरुयच्छे नयरे नहवाहणं रायाणं रोहेइ, जाहे य वरिसारत्तो पत्तो हवइ ताहे सनगरं पड़ जाइ, एवं कालो वच्चइ । अन्नया तेण रोहरण गएलएणमत्थाणमंडवियाए निट्टतं, तस्स य पडिग्गहधारिणी खुज्जा, सा चिंतेइ-नूर्ण राया जातुकामो तेण एसा अपरिभोगा संभाविया, तीसे य राउलतो जाणसालितो परिचितो, तीए तस्स सिहं, सो (तेण) पर जाणगाणि पमक्खिउं पयट्टावियाणि य, तं दट्टण सेसतो खंधावारो पट्टितो. राया रहसि एकल्लो धूलादिभया गच्छिस्सामित्ति पयट्टो जाब सबो खंधावारो पट्टितो दिट्टो, राया चिंतेइन मए कस्सइ कहियं, कहमेएहिं नायं?, गवि परंपरपण जाव खुज्जत्ति, ततो पुच्छिया खुज्जा, ताए तहेवमक्खायं एत्थ खुजाए अपरिभोगं खेत्तं जायंति पण्णवंतीए अणुओगो, अन्नहा पुण अणणुओगो, एवं निष्प एस मेगंतनिञ्चमेकमागासं पडिवलावंतस्स अणणुओगो, सप्पदेसाइ पुण पडिवज्जाविंतस्स अणुयोगो । कालाननुयोगानुयोगयोः स्वाध्यायोदाहरणभावना - एगो साहू पादोसियं परियहंतो रहसेण कालं न याणइ, सम्मदिट्टिगा य देवया तं
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281~
द्रव्याधनुयोगादी
दृष्टान्ताः
॥१३३॥
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