Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[-]
दीप
अनुक्रम
[-]
उपोद्घातनिर्युक्तिः
॥१३५॥
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-१
अध्ययनं [-], निर्युक्ति: [ १३१], भाष्यं [-] वि० भा० गाथा [-], मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
कमलामेला ५ पष्ठं शांबस्य साहमं ६ सप्तमं श्रेणिकस्य षष्ठीसप्तम्योरर्थं प्रत्यभेदात् कोपः ७ । तत्र श्रावकभार्योदाहरणमिदम्- सावगेण नियभज्जाए वयंसिया उन्भडरूवा आभरणालंकार विभूसिया दिट्ठा, अज्झोववन्नो, एयं चिय सुमरिडं दुब्बलो भवइ, महिलाए पुच्छितो न कहेइ, निबंधे सिहं, तीए भणियं-आणेमि, ताहे संझासमए तेहिं चैव क्त्थाभरणेहिं अप्पाणं नेवस्थित्ता अंधकारे अलीणा संबुत्था, पच्छा बितियदिवसे अद्धिई पगतो वयं खंडियंति, ततो ताए भणियं वयं न खंडियं, अहं चैवागया, साभिन्नाणं पत्तियावितो, एवं जो ससमयवत्तवयं परसमयवत्तत्रयं भणइ, परसमयवत्तवयं वा ससमयवत्तवयं, उदइयभावलक्खणेण उवसमियं भावं परूवेद उवसमियभावलक्खणेण वा ओदइयं, ताहे | अणणुयोगो, सम्मं परुविज्जमाणे अणुयोगो तथा सप्तभिः पदैर्व्यवहरतीति साप्तपदिकः, तदुदाहरणमिदं - एगंमि पश्चंतगामे एगो अलग्गयमणूसो साहुमाहणाईणं न सुणेइन वा समीयमल्लियइ, नावि रोज्जं देइ, मा मम धम्मं कहेहिंति, माऽहं धम्मं सोचा सहओ होहामित्ति, अन्नया तं ग्रामं साहुणो आगता, पडिस्सयं मग्गति, ताहे गोलिएहिं सो न देइत्ति सोवि एएहिं पवंचितो होउ इति तस्स घरं दंसियं, जहा एरिसो तारिखो तुम्भ भत्तो सावगोत्ति एयस्स घरं जाह, ताहे साहूणो घरं गया, दिट्ठो सो, पर न चैव आढाइ, तत्थ एक्केण साहुणा भणियं-जह न चेव सो एसो, अहवा पवंचियामोत्ति, तं सोऊण तेण ते साहूणो पुच्छिता, कहियं जहा अम्ह कहियं एरिसो तारिलो वा सावगोत्ति, सो चिंतेइ अहो अकर्ज, ममं ताव पश्चंतु, तो किं साहुणो पर्वचंतित्ति, ताहे मा तेसिमसारया होउत्ति भगइ - देमि पडिस्सयं एकाए ववत्थाए, जइ मम धम्मं न कहेह, साहूहिं भणियं --एवं होउत्ति, दिनं घरं, वरसारत्ते निवत्ते आपुच्छंति-अम्हे विहरामो, ताहे
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285~
भावानुयोगादौ हष्टान्ताः
॥१३५॥
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