Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 10
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत सूत्रांक ||१-७|| चतुर्विश- धम्मतित्थगरा सान् , तथा रागदोसजयाज्जिनाः तान्, के ते एवंभूता ?- अरहंता- असोगादिपाडिहेरपूजां अरिहंतीति ते का लोकपद व्याख्या अर्हन्तः तान् , कीर्तयिष्यामि- संशब्दयिष्यामि, एतेन तदुत्कीर्तनावश्यकस्य करणाभ्युपगमं दर्शयति, केत्तिए ?- चउव्वीसपि, K IN पुनरपि किंविशिष्टाःकेवली, केवलाणि-संपुष्णागि णाणदरिसणचरणाणि येसि ते केवली तान् । इदाणि पदविग्गहो ॥४॥ यत्थ समासो तत्थ कातग्यो । एत्थ ताच सुत्तफासित भणामो। चालणापसिद्धीओचि भणिहिति । तत्थ पढम पदं लोक इति, द तस्स अट्ठविहो निक्खवो-. नाम ठवणा दविए खेत्ते काले भवे य भावे य । पज्जवलोए य०॥ ११ ॥ ७॥ १०६८॥ नामढवणाओ गयाओ दब्बलोगे जीवमजीवे ॥११॥८॥ तत्थ य काणि य इंदिएहिं लोक्कंति काणि य इंदियवतिरित्तेणं णाणेण अहया पच्चक्खा-1 दीहिं पमाणेहिं । जीवा कह लोक्यन्त ?, लिंग, प्राणापाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतींद्रियान्तराविकारसुदुक्खेच्छा द्वेषो प्रयत्नश्चेत्यात्मालिंगानि, सामान्य पा लक्षण उपयुक्तवान् उपयुज्यते उपयोक्ष्यते इति च जीवः, तद्विपरीतेन लक्षणेन अजीधा लोक्यते | तत्र जीवा विहा-रुवी अरूबी य, रूबी संसारी अरूबी सिद्धा । देवे ण भंते ! महिडीए (फु) पुष्यामेष रूबी भवित्ता पच्छा अरूवी |% है भवित्तए.' आलावमा भाणितव्वा । अजीवा दुविहा-रुवी पोग्गला अरूवी तिण्णि, जीवा रूबी सपदेसा य कालादेसणं नियमा* 3 सपदेसा लद्धिआदेसेणं सपदेसा वा अप्पदेसा वा, अस्वी कालादेसेणवि लद्धिआदेसणवि सप्पदेसा वा अपदेसा वा अरूवी चा रूवी वा, चउम्बिहो- दब्बओ खत्तओ कालओ भावओ, दव्यओ परमाणू अपदेसो सेसा सपदेसा, खेत्तओ एगपदेसोगाढो अप-3 , देसो सेसा सपदेसा, कालओ एकसमयट्टितिओ अपदेसो सेसा सपदेसा, भावतो एगगुणकालओ अपदेसो सेसा सपदेसा, अहवा -564ESPEAREPERI दीप अनुक्रम [३-९] कार K ***** ... अत्र 'लोक' पदस्य निक्षेपा: दर्शयते (10)Page Navigation
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