Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 14
________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 धर्मतीर्थ प्रत सूत्रांक ||१-७|| विस्तव &ाकराणां चाँ दीप अनुक्रम [३-९] चतुर्विंश- धम्मो, सो उ पंचविहो-सामाइयचरित्तादि, अहवा खेतिमाती दसविहो, एतेण सावगधम्मोऽवि सूइतो,सज्झातो नाम सामाइयमादी जाव दुवालसंग गणिपिडगं । धम्मो सम्मत्तो। IPL इदाणिं तित्थं प्राविहितनिवर्चनं, तं च दुविह-दब्बतित्थं भावतित्थं च, दब्वतित्थं मागहमादी य परसमया वा मिच्छत्तदोसेणं | व्याख्या मोक्खमग्गममाहगा, असाहगत्तेण य मोक्खं न मग्गति तेहि, एवं कार्याकरणे दव्वतित्थं भवति । तत्थ मागहाइयदध्वतित्थे | निरुत्तगाथा दाहोवसमं०॥ ११-२५ ।। १०७७ ।। भावतित्थंपि तेहिं निउत्त- कोचम्मि उ निग्गहिते०॥ ११-२६ ॥ सिद्धं । अहवा ईसणनाण॥११-२८॥१०६०।। अहवा दब्बतित्थं चउविह-सुओयार सुउत्तार ४ भंगा,भावेवि सुओयार सुउत्तार ४ भंगा, सिरक्खा तव्यन्त्रिता बोडिया साधुत्ति जथासंखं । . इदाणिं करो, सो छव्यिहो, दो गता, दबकरे गाथा-गोमुहिसुरिपसूर्ण० ॥११-३०॥१०८२-३।। कत्थवि विसए 3.गावीओ करं लम्भति, अहव। पडिएण वा अडिएण वा एवं सम्वत्थ विभासा, सीतकरो खेत्तं जं वाविज्जति भोगे वा जो लइज्जति, | &ाअण्णस्थ उरसारियं अण्णत्थ जोत्तियाओ जंघाओ, सेसं गाथासिद्ध , एते सत्तरस, अट्ठारसमो उप्पत्तिओ, अप्पणियाए इच्छाए जो Pउप्पाइज्जति सो उप्पचिओ खेतकरो, जथा सुकमादि, गामादिसु वा जंमि वा खेत्ति करो वणिज्जति । कालकरो | 18|मि काले करो अहवा कालेण एच्चिरेणं तुमे दातब्बति विभासा । भावकरो पसस्थो अपसत्थो य, अपसत्थो-13 ॐ कलहकरो० ॥११-१३ ॥ १०८५ ।। सिद्धं । पसत्थो लोगो लोगुत्तरो य, अत्थकरो य• ॥११-३४ ।। १०८६ ।। सिद्धं । इदाणिं जिणेत्ति-जितकोहमाणमाया जितलोभा तेण ते जिणा होति । अरिहा हंता रयं हंता अरिहंता ... अत्र तीर्थ एवं कर शब्दस्य व्याख्या क्रियते (14)Page Navigation
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