Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 12
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत सूत्रांक ||१-७|| तिस्तव | पूर्ण ६ ॥ दीप अनुक्रम [३-९] चतुर्षिश- लोको, सो कहं लोक्कति ?, उदाहरणं, कोहादीणं उदयेण लोक्कति उदइओ, अणुदएणं उपसमिओ, अणुप्पत्तीए खहओ, देसविना लोकपद सिद्धीए खओवसामिओ, परिणवणाए परिणामिओ, संजोगण संनिवाइओ , एस्थति कोवि पच्चक्षण कोवि परोक्रोण । इदाणाला व्याख्या पज्जवलोगो परिस्समंता अयः परि अब इति पर्याय:, सो चउव्यिहो- दन्यस्स गुणा खेत्तस्स य गुणा कालस्स अणुभावो भावस्स परिणामो । दबस्स गुणा एत्थ गाथावण्णरसगंधसंठाण फासठाणगतिवण्णभेदे य । परिणामे य बहुविहे पज्जवलोगं समासेण ॥११-१६||२०५ भा. वण्णस्स भेदा कालगातीता, रस मेदा ५, गंध २ संठाणे परिमंडलादी पंच, फासे कक्खडादी अड, ठाणं ओगाहणा, एगदेसा-15 दिगता फुसणा, चसरेण जचा यण्णभेदा एवं सेसा पदेसभेदा, कालवण्णस्स परिणामो बहुविहाँ एगगुणकालादी,सध्यस्थ विभासा, अहवा परिणामो बहुविहोत्ति सो चेव पसरथो होऊण अपसत्थपरिणामो भवति । इदाणं खेत्तपज्जवा भरहे पज्जवा जाप एर-1 वए, दीवसागरपण्णत्ती वा, उद्दलोगे तिरिए अहोलोगे, अण्णो भणति-पत्तपज्जवा अगुरुलध्वादयः,ते तेन लक्षणेन लोक्यते ।। | इदाणि भवपज्जबलोगो, मेरइयाण अच्छिनिमीलणमे नस्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । णरए रहयाणं अहोनिसि पच्चमाणात ॥१॥ असुभा उब्धियणिज्जा सहरसरूवगंधफासा य । नेरए नेरइयाणं दुक्कयकम्मोवलित्ताणं ।। २ ।। अहवा सीतादिवेदणाओ पातमि भवे अणुभागो, अहवा जे मुहा पोग्गला पक्खिप्पति तेषि दुक्खताए परिणमंति, जेण वा न मरंति तेण दुक्षेणं, मणुयाण । IIतिरियाणं च वेमाया, देवाणं नारगेहितो विपरीता विभासा । ते एवं लोक्कति । इदाणि भावपरिणामो, सो पसत्थोऽपसत्थो य, पसत्थो णाणादीहि ३, विवरीतो अपसरथो, अहवा जीवो जेण जेण भावेण (12)

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