Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 22
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 दीप वन्दना- बटुंति, तेसिं च कडादीणं थेराण प्रतियं पढति, अण्णदा मोहणिज्जेण वाहिज्जतो भिक्खाए गतेसु साधुसु चितिज्जएणं सण्णा- वन्दनादिषु ध्ययन लपाणियं आणावेत्ता मत्तय गहाय उवहतपरिणामो वच्चति, दुरं गतो परिसंतो एगत्थ वणसंडे चीसमति, तत्थ वणसंडस्स पुफिय-|| फलियस्स मज्झे समी असणवसणादिया चेहयाए पेढियाए य सुपरिग्गहिता, तीसे तदिवस जत्ता, लोको महतीइड्डीए अच्चति | ॥१६॥ धुन्चति, किं एतं अच्चेह, इमे असोगवरपादवे ण अच्चेह, ते भणति-पुन्चएहिं एवं कतेल्लयं तं जणो बंदति, तस्स चिंता जातापेच्छह जारिसिया समी तारिसओमि अहे, अण्णेवि तत्थ बहुस्सुता रायइन्भपुत्ता अस्थि ते ण ठविता, अहं ठवितो, तो ममा पूयंति, कतो मज्झ समणचणी, रतहरणचितीगुणणं बंदंति जेण आयरिएहिं जितो ठवितो, एरिसियं रिद्धि मुहता किह गच्छामि | तत्व णिविष्णो वेयालिय पडिनियत्तो, इतरेवि भिक्खातो आगता, मग्गंति, ण लहंति सुति वा पवतिं वा, सो आगतो आलो-18 | एति- जहाऽई समाभूमिं गतो, मूलो उद्धातितो, तत्थ पडितो, पुणो बोसिरावाणियाए दुक्खवितो अच्छितो, इदाणि उपसंतो | आगतो मि, ते तुट्ठा, पच्छा कडादीणं आलोएति, पादच्छित्तं च पडिवज्जति, पच्छा तस्स भावचिती जाता, गाणदसणचीरलत्ताणि भावचिती | चितित्ति गर्ने । इदाणं किहकम, कृत्यं कर्म गुरूणां, दवकितिकम्मं णिण्हगादीण अणुवउत्ताण उवउत्ताणं वा दवाणिमित्वं वा, भावकिपतिकर्म णीतागोतादिकंमक्खवणद्वताए कीरति, तत्थ दवकितिकमे भावकितिकमे य उदाहरणं-बारवती वासुदेवो, वीरओ४ कोलिओ, सो वामदेवभतो. सोय किर वासुदेवो परिसारते बहवे जीवा वहिज्जतित्ति ण णीति, सो वीरओ बारमलहतो पुष्फ-I&II | पुडियाए चारस्स मूले अच्चणितं काऊण वच्चति दिणे दिणे, ण यजेमेति, ओरूढमंसु जातो, वत्ते वरिसारचे राया णीति, सब्वेवि अनुक्रम [१०] ... कृतिकर्म-विषये वीरक एवं कृष्णवासुदेवस्य कथानकम् (22)Page Navigation
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