Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 13
________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत सूत्रांक ||१-७|| व्याख्या दीप चतुर्विंश- परिणमति, एवं अजीवाणवि पसत्थो अपसत्यो य विमासितब्बो, जथा कालो पोग्गलाण परिणममाणो य २ कालकत्तं जहितूण है तिस्तव नीलो होति एवमादी, सोवि श्वेतलक्षणेन लोक्कति । तस्स लोगस्स एगहिताणि आलोक्कती पलोक्कति १०६९ ॥ गाथा 51 चूणा विभासितव्वा वंजणपरियावण्णा एस लोगो सम्मत्तो। ॥ इदाणं उज्जोतो, उद्योतनं उधोतः,सो दुविहो-दब्चुज्जोतो अग्गिमादि,अहया ये लोगिया विभंगणाणिणो संवाणि करेगा। परमति विमलं करेंति । अप्पणएण य पचियाति, एस दब्बुज्जोतो । नाणं, जथा जिणेहि मणित तहेब जेण उपलब्भति, कई त लाभावुज्जोतो ?. जतो जदा तेसु सम णाणभावेसु उवउचो भवति तदा भावुज्जोतो भवति, उवउत्तो भावोत्तिकातुं, भायो य सोहै। उज्जोतो य भाषुज्जोयो,जेण भणितं नाणं पगासगति,अह जदि णाणं पगासय घडपडादी पगासेति एवं चंदादिचावि घडपडादी पगासेंति तेण ते किन्न भावुज्जोतो ?, उच्यते, चंदादिलचा घडपडादीण स्वर्गधे पगासयंति, गुरुलहुयाणि दवाण, णाणं पुण अट्टविहंपि लोग पगासेति अरूविदच्याणिवि, दृश्यन्ते च निमित्तगणियजोतिसेहि पच्चक्खं भावा,तेण सिद्ध नाणं भावुजातोत्ति । आह-किं ते पहुगा तो भणह भायुज्जोतकरेति ?, उच्यते-नणु भए पुध्वं भणितं चउच्चीसाए अधिगारोति, एरथ जिणवरा भावुज्जोतं करोति, जतो तवदेसेणं तं नाणं भवति जेण लोगो तथा पयासिज्जइ, किं च-दबुज्जोतभावुजोताण इमं अंतरं दब्बुज्जोतो० ॥१.७३|| उज्जोतो सम्मत्तो। ॥ इवाणिं धम्मो, धर्मः स्थितिः समयो व्यवस्था मर्यादेत्यनर्थान्तरं, सो दविहो-दग्वधम्मो भावधम्मों य, दवधम्मो धम्म-16 इथिकायो वा जस्स व्वस्स भावो सो दव्यधम्मो, भावधम्मो सुयधम्मो चरिचधम्मो य, सुयधम्मो सज्झायो, चरित्तधम्मो समण अनुक्रम [३-९] ७ ॥ 645 ... अत्र उद्धयोत एवं धर्म शब्दस्य व्याख्या क्रियते (13)

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