Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 13
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री FREER चूणी HEISE जानानि परतो तं परोक्खं, जंणो विणा इंदिरहि जाणतित्ति वृत्तं भवति, जं सयं चेव जीवो इंदिएण विणा जाणति तं पच्चक्वं मण्णति, प्रत्यक्ष पराक्ष लोइआणं पुण अक्खाणि इंदियाणि भण्णति, तसिं परतो परोक्खं, जं पुण तेहिं उपलब्भति तं पच्चक्खं, तं च ण युज्जते, जेण इंदियाणि रूवाईणं विसयाण अगागाणि, जीवी चव चक्खुमादिएहिं रूवाईणं विसयसस्थाणं माहतो, कही, जम्हा जीवावओग| विरडियाणि इंदियाणि णो उवलमंति, अओ जं इंदिएहि उबलन्भति तं गाणं लियितं,लिंगिवंति वा चिणिफणंति वा करणनि४. प्फणंति या परनिमित्तणिफणति वा एगहुँ, एस विसेसो। तं च परोक्खं दुबिह-तं०-आभिणियोहियणाणं सुयणाणं च, जत्थ आभिणियोहितं तत्थ सुयणाण, जत्थ सुतं तस्थ आभिाणबोहिय, कहं , जैमि चेव पुरिसे आभिणियोहियं तंमि चेच पुरिसे सुतमपि अस्थि, जीम सुतं तमि आभिणियोहियतं अस्थि चेव, एवं एयाई दोषि अण्णमण्णमणुगयाई तहाऽवस्थ आयरिया एतेण कारणेण तेसिं णाण पण्णवयंति, २०-अभिणिबुझतीति आभिणिकोहिअं, मुणेतीति सुतं, अयिसेसिया मती, विसेसिया सम्मदिहिस्स मती आभिणियोहियणाणं, मिच्छदिहिस्स मती मतिअण्णासं, अविसेसितं सुतं, निससितं सम्मदिद्विस्स सुर्य सुचनाणं, मिच्छदिहिस्स सुतं सुयअण्णाणं । एत्थ सीसो आइ- भगवं!10 कि मणितं होति अभिणिबुज्झतीति आभिणियोहियं सुणेतीति सुतं , आयरिओ आह-जमत्थं ऊहिऊण पो निद्दिसति तं आभिाण बोहिया भणति, एत्थ निदरिसणं, जहा- कस्सइ मंदपगासाए रवणीए पुरिसप्पमाणमेनं खाणुं दट्टण चिंता समुप्पज्जति-1 ॥७॥ काकिं पुष मस पुरिसो भविज्ज उदाहु खाणुत्ति ?, ततो तं खाणु बल्लीविण दट्टण पक्खिं वा तहिणिलीणं पासिऊणे आभिणि-11 चोखो भवति जहा एतं खाशाति, ते च जइ अभिमुहमत्थं जाणति णो विवरीयं ततो आभिणियोहियं भवति । अभिमुहम-15 10-1 दीप अनुक्रम (13)Page Navigation
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