Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 14
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत HEIG दीप थं गाम जो खाणं खाणुं चैव अभिणियुज्मति, ण पुण खाणुं पुरिस मण्णति, एयं अभिमुहमत्थं भण्णाति, जं च अभिमुहमत्थं तामतिश्रुत बावश्यक आभिणिबोहियं, णो विवरीयंति । जो पुण अत्थं ऊहिऊण निधिसइ तं सुयणाणं भण्णइ, जम्हा सुयणापोऽबि ऊहा अस्थि ततो सुतणाणं आभिणिबोहितणाणसहितं चेव दद्वध्वन्ति १॥ अहवा आभिणिबोहियणाणसुतणाणाणं इमो विसेसो, तं०-आभिणिशानानि दि बोहियणाणं ताव मतिविसयं परिणायव्यति, सुयमाणं पुण मइपुच्चगं चेव दुमेयं ददृब्वंति, तं०-अंगपविट्ठ अंगवाहिरं च, तत्थ जं13 ॥ ८ ॥ & अंगबाहिरं तं अणेगमेयं, आवस्सयं दसवेयालियं उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो एवमादि, तत्थ तं अंगपबिट्ट तं दुवालसविहं, तंजहा- आयारो जाव दिविवादो । आह-भगवं ! तुल्ले चेव सवण्णुमते को बिसेसो जहा इमं अंगपबिटुं इमं अंगवाहिरन्ति, आयरिओ आह-जे अरहंतेहिं भगवंतेहिं अईयाणागयबद्यमाणदब्वखत्तकालभावजथावस्थितदंसीहि अत्था परूविया ते गणहरेहि परमबुद्धिसभिवायगुणसंपण्णेहिं सयं चेत्र तित्वगरसगासाओ उबलभिऊणं सबसत्ताणं हितगुयाय सुतत्तण उवणिबद्धा ते अंगपवि₹ , आयाराइ दुवालसविहं । जे पुण अण्णेहिं विसुद्धागमबुद्धिजुत्तेहि थेरेहि अप्पाउयाणं मणुयाणं अप्पबुद्धिसत्तीणं च दुग्गाह४ कतिणाऊण तं चैव आयाराइ सुयणाणं परंपरागत अत्थतो गंधतो य अतिबटुंतिकाऊण अणुकंपाणिमित्तं दसवेतालियमादि परूवियर |तं अणेगभेदं अणंगपविटुं, जम्हा य सुयणाणस्सवि अत्थो अणूहितो णो गज्जइ अओ मातपुब्वगं सुयणाणं भण्णातित्ति २।। | अहवा आभिणियोहियसुतणाणाणं इमो विसेसो तंजहा-'सोइंदिओवलद्धी भवति सुतं, सेसयं तु मतिणाणं । मोनूर्ण दव्बतं ॥८॥ अक्खरलंभो य सेसेसु ॥ १॥ जे सोइदिएवि अत्था उपलब्भति तं सुतं, सेसेसु पुण चक्खुमादीहिं जे अत्था उबलभंति तं मतिगाणं भण्णति, जा य सा सोइंदिओवलद्धी तत्थ दव्वसुतं मोत्तूण मतिसहित सुयणाणं भण्णति, दब्बसुयं णाम जं भावनुय MERESECORAKASE अनुक्रम | 'आभिणिबोहिय(मति)'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते (14)

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