Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 12
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भग पत सत्राक 31य, अहवा भावनंदी, सव्वं तं नोआगमतो भावमंगलंति ॥ एत्य चोअओ चोअयइ, जहा-अहो भगवं! तुम्भेहिं अतिसुद्धं भासिदति , कई णाम जो जस्स उवओगो सो सो चेव भविस्सह, णो य खल्लु अग्गिंमि उवउत्तो देवदत्तो अग्गी चेव भवति, आय | रिओ भणति-अहो यच्छ! तुम व अतिसुद्धाणि वयणाणि उल्लावयसि, णणु णाणंति वा संवेदणंति वा अहिगमात्ति वा वेयणिति |चा भावोचि वा एगट्ठा, जीवलक्खणं च णाण, ण उणाणाओ बतिरित्तो आया, जदि य चेयणातो जीचो अण्णो भवेज्ज ततो जीवदव्वं अलक्खणं चेव भविज्ज, ण वा बंधो मोक्खो वा अचेयणस्स जुत्तो, तेण जो सो णाता सो जंतं अग्गिस्स सामत्थं दहणपयणपगासणादितं जाणति, तओ अग्गिणाणाओ सो जाता अवतिरितो, तेण सो अग्गिसामत्थजाणओ भावग्गी चेव लग्भति, जम्हा य उप्पायद्वितिभंगजुत्ती आता अओ जम्मि उबउत्तो सो सो चेव भण्णा ॥ आह-दव्यभावमंगलाणं को पइविसेसो', भण्णइ, दब्बमंगलं अणेगतियं अणच्चतियं च भवति, तत्थ अगतियं णाम जं किं (केसि)चि तारिस मंगलं भवति तं चैव अण्णेसि न भवइ, अमंगलं वा भवइ, अणच्चंतियं णाम जं पडिहणिज्जति, भाषमंगलं पुण एगतियं अच्चंतियं च भवलि, इमं पुण सत्थजायं। भावमंगल समोयरह-जओ भावणंदीए अंतग्गतं, कहं एवं', गंदी चतुबिधा, तं०-णामनंदी ठेवणानंदी दव्यनंदा भावनदा, CM PAणामठवणाओ परूवियन्वाओ, दव्वर्णदी दुविहा तिचिहा य, केवलं तव्यइरित्ता संखवारसंगाणि तूराणि, भावणंदी दुपिहा-आगमओ जाणए उवउत्ते, णोआगमओ पुण पंचविध णाण, तंजहा आभिणियोहियनाणं०॥ १।। एतं पंचविधमविणार्ण समासओ विहंपच्चवखं च परोक्ख ब. पच्चक्वंटा ताव अच्छतु, परोक्खं पुण अप्पतरगतिकाऊण पुव्वं वणिज्मइ ।। आइ-क: अनयोर्विशेषः, उच्यते, अक्खो-जीवो तस्स जं|| दीप अनुक्रम 'नन्दी' चतुर्विध-भेदे, ज्ञानस्य द्वि-भेदा: (प्रत्यक्ष-परोक्षं च) (12)

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