Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 16
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२,३], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्रुतनिधित सत्राका अथवा आभिणिवाहियं अत्ताणं व एक्कं पगासेति, सुतणाणं पुण असाणं परं च दोवि पगासेति, पगासेतित्ति वा पुज्झा- मतिभुतआवश्यक है वेति वा पच्चाणेतित्ति वा एगत्था, एत्थ दिवतो- मूका अमूका, जहा मूको अत्ताणं चेव एग पगासेति, अमूको पुण अत्ताणं पर IN विशेषः चूणों च दोऽवि पगासेति, एवं आमिणिबोहियणाण सकसरिसं दवं, सुपणाणं पुण अमृकसरिसति । ज्ञानानि दि भणितो आभिणियोहियणाणतणाणविससो, दयाणि एतेसिं चेव दोण्हवि परूषणा भाणियन्या । तत्थ पढम ताव आमिणि-१५ मतिम ॥१०॥ | रोहियणाणस्स परूवणं काहामि, जम्हा मुत्ते एतस्स चेच पढमसच्चारण कतं, तं च दुविध- मुयणिस्सितं असुतनिस्सितंच, तत्व । जे तं अमुतनिस्सियं तं चउब्बिह-जहा-उप्पत्तिया १ वेणझ्या २ कम्मया ३ पारिणामिया ४, एसा चउबिहा बुद्धी उपरि12 णमोकारनिमुत्तीए भणिहिति, इह गथलाघवत्थं ण भण्णति । तत्थ जे तं मुयणिस्सितं तस्सिमा परूवणगाथा उग्गह इहावाओ य० ॥२॥सुतनिस्सितं आभिणियोहियणाणं चउन्विहं भवति, तंजहा- उग्गहो ईहा अवाओ धारणा, एयाणि उग्गहाईणि चत्तारि आभिाणबोहियणाणस्स भेदवत्धणि समासेण ददृब्बाणीति । तत्थ मेदो णाम भेउत्ति वा विकप्योति वा पगारात्ति वा एगट्ठा, वत्धुणाम मुलदारभेदोति वृत्तं भवति, समासो णाम संखेवो ।। २ ॥ इदााणं एसेसिं चेव उग्गहाईण, चउण्हं दाराणं विभाग भणामि-- अस्थाणं उग्गहमी० ॥३॥ तत्थ अत्था मुत्ता अमुत्ता पयत्था भण्णंति, एतेसिं जं ओगिण्हणं तमि उम्गहो, वियालणा पुण देहा, तत्थ वियालणंदि वा मग्गणंति वा ईहणति वा एगहुँ, अबादो ववसाओ भण्णति, तत्थ ववसाता णाम बरसाउत्ति वा* | णिच्छयत्थपडिवत्तित्ति वा अवरोहोत्ति पा एगड्डा, धारणा णाम धरणति बुच भवति, धारण णाम जो उग्गहादीहिं जाणितो। kkkkkkkk - दीप ॐॐॐॐॐॐ*** अनुक्रम 55 (16)Page Navigation
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