Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 15
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 IPI शपः दीप निबंधणभूतं तं दव्वसुर्य भण्णति, जेविय सेसेहिं चक्खुमाईहिं इंदिएहि अत्था उवलम्मति तस्थवि भयणाए मतिणाणं भवति, आभान बोधिकआवश्यक|कई ,जे चक्खुमाईहि अत्थे उवलहिऊण अक्खरलीए भासति तं सुतं मतिसहित भण्णति, जावण भासह ताव मइणाण चेव मण्णइ ३DI चूर्णी | अहवा 'बुद्धीदिवे अत्थे जे भासति तं सुतं मतीसहियं । इयरत्यवि होज्ज सुतं उपलद्धिसमं जदि भणिज्जा ॥२॥ जे ज्ञानानि बुद्धीए दिढे अत्थे भासति तं सुतं मतिसहित भण्णति, मतिसहितं नाम मतिसहितंतिवा मतिअणुगयंति वा एगट्ठा, 'इयरस्थाषि आहिणिबोहियणाणे सुतं हविज्जा जदि उबलाद्धिमत्तमेव अत्थं भासेज्जा, अहवा उपलद्धिसमं णाम जे उपलद्धा अस्था ते जति दिसक्केज्जा भासेउं ते सुतं भवति । आह- उबलद्धावि अत्था किंन सक्कति भासितुंति', उच्यते, आम, 'पष्णवणिज्जा भावा अणन्तभागो उ अणभिलप्पाण । पण्णवणिज्जाणं पुण, अणंतभागो सुयणिबद्धो ॥ ३ ॥ जे पण्णवणिज्जा भावा ते अणभिलप्पाणं । 8| भावाणं अणंतभागो, तसिं पुण पण्णवणिज्जाणं भावाणं अणंतइमो भागो सुपनिषद्धो, कह-जं चोहसपुव्वधरा ठट्ठाणगया। MI परोप्परं होति । तेण उ अणतभागो पण्णावणिज्जाण जे सुतं ॥१॥ अक्खरल भेण समा ऊणहिता होति मइविसेसेणं । तेवि काय हुमतिबिसेसे, सुअणाणभतरे जाण ॥ ५॥ दोवि एयाओ गाथाओ कंठाओ ४। ॥ अहया इमो विसेसो फुडो चेक-जे अभिनियुद्धे अत्थे ण ताव भासति तं आभिणियोहियनाणं भण्णति, तं चेव भासित पवतो MI ततो सुयणाणं भवति, एत्थ मुंबवलगदिद्वतो, जासिगा बलगा तारिसं आभिणियोहित, जारिसय सुंब तारिस सुर्त, एवं जाव परि- ९ कापणाता अत्था ण भासति ताच आभिणिकोहियं भण्णति, जाहे भासिंउ पबत्तो ताहे सुतं मण्णति ५ । अहवा अणक्खरं आभिणियोहित, सुयं अक्खरं वा होज्ज अणक्खरं वा, एस बिसेसो ६ । अनुक्रम (15)Page Navigation
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