Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 11
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [-], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आवश्यकता सत्राक दीप श्रीटालोचि णाम कीरइ, अथवा अग्गिस्स मंगलोत्ति णाम केसुवि देसेसु भवति, अजीवस्स जहा-वेणुपब्वमज्झस्स देसाविक्खाए, तदुभ- नामादि यस्स जहा तस्सेव मणूसस्स मुंजसीयदलमासाहयस्स, अहवा तस्स अग्गिणो वेणुपव्वमज्झसहियस्स, एवं पुहुत्तेऽवि विभासा 11 मंगलानि चूर्णी ATTA इयाणिं ठवणामंगलं, तं च दुविहं, तं-सब्भावतो असम्भावतो य, तत्थ सम्भावओ जथा-चित्तकम्मादिसु अरहंतसाधुणाणमा-1 दिणो ठाविता ते ठवणामंगलं भवंति, असम्भावओ. जथा-अक्खमादि णिवेसिज्जति, इंदलट्ठीषि इंदमि णिवेसिज्जइ, एवमादि ।। आह-णामठवणाणं को पइविसेसो', उच्यते, णामं पायसो आवकथितं, ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकहिया वा, तत्थ इतिलरिया जथा-अक्खो इंदो वा सरतकालभूसितो, एवमादि, आवकहिता जथा जे देवलोकादिसु पडसुत्थियादिणो चित्तकम्मलिहिया, अहवा इमो विसेसो-जहा ठवणाईदो अणुग्गहत्थीहिं अभिथुब्यति ण एवं णामिदोत्ति २। दव्वमंगलं दुविहं-आगमतो जोगमतो य, तत्थ आगमतो जाणए अणुवंउत्ते, णोआगमतो पुग तिविहं, तंजहा-जाणग-सि सरीरदब्वमंगलं भवियसरीर० तव्वतिरत्त०, तत्थ जाणगसरीरं जो जीवो मंगलपदत्याधिकारजाणओ तस्स जं सरीरं ववगयजीवं, पुष्वभावपण्णवणं पहुच्च, जहा-अयं घयकुंभे आसी, अयं महुकुंभे भविस्सति, एवं भवियसरीरविभासा कायव्वा, तव्वतिरित्तं जहासोधियसिविच्छादिणो अट्ठमंगलया सुवण्णदधिअक्खयमादीणि य भावमंगलनिमित्ताणित्ति दब्बमंगलं ३। भावमंगलंपि दुविहं, तं०-आगमतो णोआगमतो य, तत्व आगमतो जहा जाणए उवउत्ते, पोआगमतो पसत्थो आयपरिदणामो जह णाणादि, अहवा 'वंदे उसमें अजितं संभव' एवमादिजे यावण्णे भगवंते, अहवा 'जयइ जगजीवजाणीवियाणयो' दाइत्यादि, अहवा 'सुधम्म अग्गिवेसाणे' एवमादि जाव अप्पणो आयरियत्ति, अहवा पंचनमुकारो, अहवा जावतिया थया धुतीतोला अनुक्रम ॥५ ॥ (11)

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