Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya Author(s): Harishankar Sharma Publisher: Harishankar Sharma View full book textPage 7
________________ उनका विश्लेषण कठिन ही नहीं बात हर दुस्साध्य भी था। इधर आदिकाल का ५. वर्गा का इतना विशाल परिसर और उसका समापन सपी कार्य एक से एक बढ़कर कठिन र मट साध्य थे। परन्तु इन विषयों में प्रधेय आरम् नाष्टा व्या. नमुखवास,गावठी की साधारण सहायता से ही बार या प्रकरण प्रक्र उप विद्वानों के हाथ में पहुंच सका है। नास्टागी ने मुझे लिपियों का अम्बान कराया, विभिन्न पंडारों प्रतिया मंगवाई,प्रतियों की फोटो कापिया, नवाई, कई प्रतिलिपिया करवाई, अपने समीप रक्षा,और इस कार्य की पूर्णाहुति कराई है। जयपुर और भामेर के समस्त सारों की रचनाओं से मुलभ करने की आवस्था पं. नमुबदास गावती ने की। प्रत्येव नाटाली एवं पंडित जी का मारीवाद न होता तो या कार्य इतना हो पाना असंभव था। पर्व दोनों विद्वानों का चिर रिती । प्रस्तुत प्रबन्ध में लगा ग्वाधिक प्रमाशिव बनानों की - लिखित प्रतियों का उपयोग किया गया है। ५० वर्षों के इस काल उपल 10 से अधिक रनामों का समाहारकरना मेरे लिए इस लोटे से प्रस्व में पिीपी प्रकार अन्य नहीं था उनमें से प्रन्थों का ही आधार प्रान क्यिा गमा रमानों की विस्तृत नामाकी परिशिष्ट में दे दी गई। इन स, रिता तथा प्रारियां भी । कृतियां इवने अधिक काम्या प्रवान सी, कि इनमें से प्रत्येक सब म पर स्वयम एक एक होष प्रबन्ध विा गा सकता है।नेक रमाई गुजराती लिपि में प्रकाशित। परन्तु वास्थव पुरानी हिन्दी की गुजरात और राजस्थान के अनेक जैन महारों के उपाय न रमानों को साम्प्रदामिकता और प्रादेशिक भावना से मुक्त करना पीपा की सादी दोनों प्रदेशों की पापाय पकमवा स्पष्ट हो। पुनावाद मिलते है इसलिए परिस्थितियों की या कालिमानी भजन प्रकारलती गई। पुरानी दीम (PR ) प्राचीन रावस्थानी बाली गुजराती वीण बस सट करने की और यी प्रथाPage Navigation
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