Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 15
________________ सम्बन्धी विभिन्न मतों का उल्लेख प्रारम्भिक काल के साहित्य का महत्व अंशिकः स्वर्णकालः विवेचन : काव्यग्रन्थों का वर्गीकरण प्रबन्धः मुक्तक: प्रबन्ध- पुराण, महापुराण चरिउ काव्य, रुपक काव्य, कथात्मक ग्रन्थ संधिकाव्य- रास आदि मुक्तककाव्य- गीव-स्तोत्र-स्तवन- पद तथा उपदेश प्रधान स्फुट रचनाएं इन रचनाओं की प्रमुख विशेषताएं और उन पर विवेचन (१) रचनाओं की ऐतिहासिकता और उसका परिचय- संस्कृत से 3 उसका तुलनात्मक अन्ययन (२) प्रबंधात्मकता क्रमिक विकास तथा तुलनात्मक विवेचनः घटना विन्यास वर्णनक्रम, कथा काव्य रूप, वैविध्य, कौतूहल तथा प्रवाह के रूप में अपभ्रंश काव्यों पर विचार विविध रचनाये; कला पक्ष भवि पक्ष और उसके विशिष्ठ तत्वः काव्यरूपः लौकिक प्रबन्ध तथा उपदेश प्रधान रखना- आध्यात्मिक तथा स्तोत्रस्तवन सम्बन्धी रचनाएं: बौद्ध सिद्धों की अपप्रेरनाएं इन कृतियों में धर्म प्राणधारा के रूप में विद्यमान होना- प्रबन्ध काव्यों को विल्प जयविधि तत्व और उनका परिचयः रसविधान निष्कर्ष-1 ( पृ० १२८ - १३६ अध्याय - ५ हिन्दी के वादिकाल का जैनैतर (लौकिक) साहित्य) लौकिक काव्य:- धार्मिक दृष्टिकोण से रहित: व्रत्कालीन प्राप्त जैनेवर साहित्य का वर्गीकरण (१) (२) तर (लौकिक) गद्य स्वार्थ (1) लौकिक काव्य और उनका विश्लेषण (१) शिलालेड (२) साउली (३) रमल द (४) का प्रबन्धः काव्यात्मक विश्लेषण (५) वसंत विलास फागु और उसका परिचय (६) सवयवत्व चरित: एक परिचय (७) हरिद बुराम (८) रुक्मणी गंमतः एक अध्ययन (९) ढोला मारु रा दोहा(१०) अचलदास बीजी री वचनिका : एक विश्लेषण (क्रमश:)

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