Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya Author(s): Harishankar Sharma Publisher: Harishankar Sharma View full book textPage 6
________________ और धनपाल जैसे कवि वल जैन होने के कारण ही काव्य क्षेत्र से बाहर नहीं चले गते। धार्मिक साहित्य होने मात्र से कोई रचना साहित्यिक कोटि से अलग नहीं की जा सकती।-- सम्मान के साहित्य की प्रधान प्रेरणा धर्म साधना ही रही है। जो पी पुस्तो भाग संयोग और सौभागय मे बची रह गई है, उनके सुरक्षित राने का कारण प्रधान सपने धर्म युधि ही रही है। इस प्रकार मेरे विचार से सभी धार्मिक पुस्तकों को साहित्य के इतिहास में त्याग्य ही नहीं मानना गहिए. (हिन्दी साहित्य का आदिकाल ...। इन्हीं दिनों साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान श्री अगरन्द नाटा और डा• पीरालाल जैन के वीरगाागल की कृतियों तथा प्राचीन साहित्य सम्धी अध्ययन करने का सौपाण्य मिला। इन्होने आदिकाल की जैनधारा पर शेष करने की मोर और भी अधिक प्रेरित क्यिा। नई आश, नई उमंग, इतिहासकारों के पन्धों के बारा उत्पन्न प्रतिमिया की पूर्ति और अनेक रमनाओं की उपलविपकी भागने मादिकाल का हिन्दी न साहित्य विषय पर काम करने के लिए बाध्य किया। अधेय गुम्बर डा. धीरेन्द्र वर्मा ने भादरनीय डा. मावा प्रमाद गुप्त निन में मुफे यह काम गपा और दोनों बादेशों को कार्य प्रस्तुत करने का प्रोत्साहन जैन साहित्य और राजस्थान प्रषिद्ध शेष बिड़वान श्री कारणम्य नाटा इशारा मिला। पूर्व मनोगोम कार्य में जुट गया। क कठिनाइयों, पारिवारिक तनों एवं धार्षिक विभीकियों के बीच इस घ्यर का प्रारम्भ नवम्बर सन् १९५९ मे हमा। विषय की सामग्री के पनीर का भबसे का प्रग्म सापने वाया। इसलिvिa Pों की प्राप्ति, सारी की दोष तथा प्रतियों के व्ययन के महत्वपूर्ण प्र किटोव म. माग प्रसाद गुप्त सदैव प्रेरणा-मूलक मार और निम्न देते है। सपा विविध सम्प्रदागे पीर बीकानेर, देलवाड़ा, बापीर, पाटन, मागवावाद, कोदा, दिल्ली, अमेर, जयपुर, मेरठ, की आदि विभिन्न नकारों की तितियों की प्राप्ति औरPage Navigation
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