Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 9
________________ पुषी ना, एम०५०, प्र कीय सम्बन्धी होंगे। करने, पूरिया गार करने का विवरणों की तुलना करने की माता भी उनमा मातारी भी मार देने स्वाब देना बानियोग प्रकको टाप रस प्रस्तुत भाया भी ना प्रिपाठी ने मन की टा, बायरन पूष्ठ मी स्पा मध मिलिए उनका परम मापारी है। इसके बाद दो व प्रसनु प्रकन मिना पी मीचीन होगा। प्रबको तीन भागो विर कि यम पाम विषय प्रवेश, हिन्दी साहित्य प्रादिकाल युग समाप, प्रमुख मिण या उनमा प्रभार र प्रतिपान, अपना साहित्य या हिन्दी माका नायक पर ममा निमें दी। माविलीन मानिमिरी गई। शिवीर भाग मादिकाल दी जैन साहित्य का अध्ययन विधिनाया नय विवार भिमा गया । म ती उमी विभिन्न परंपराओं पिक विमा विद्याप उन गाने गाती रमानों का पावर हा सम्बन्धी वाम प्रस्तुत किया ग या अथवा तीन माम मौलिक पप्यागों का प्रपन माधिकालीन हिन्दी साहित्यमा परम्परा और बा siratमाविकालीन हिन्दी शामिव और उमा म्यान पारस अध्यागी दुन्टिोमीर विनोमालियाकीमल किया गया और स्पष्टीकरण लिप स्थान स्थान पर पारन दिए गए है। इनमें नेक रमा मदया. बागिपरला, नाग, दृष्टियों से भी योगी निय गरपाबीन परिशिष्ट दिए गए। लि प्रथम परिशिष्ट प्रायोरों था उसकी सिपि सम्पनी पार जिनोमानविन पिप गीत - डारो प्रायमों M

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