Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
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प्रस्तावना.
(३) कर भगवान महावीरखामीनी स्तुतिद्वारा लुम्पकमत निराकरण रूप दोढसो गाथाना स्तवनमा स्थापना नि पानी-आवश्यकमूत्रनी-स्थापना ज्ञान अथवा द्रव्यज्ञान वंभीलिपीनी प्रमाणता, साधुओए चित्रामणस्थ स्वीनी मूर्ति- अवलोकन न करवू, जंघाचारण अने विद्याचारण मुनिओए करेल जिनमतिमाने वंदननो अधिकार, चैत्यशन्दनो अर्थ ज्ञान नथी, श्री जिनमतिमा उपर मूर्याभादि देवोनो अधिकार, पूर्वपच्छा शब्दनो अर्थ, श्रीजिनदाहाओनी पूजा, सम्यग्दृष्टि देवताओनी आशातनानो त्याग, मनुष्योनो अपेक्षाए देयोमा विवेकनी अधिकता, अंबड आणंद आदि सुश्रावकोए करेल श्री जिनप्रतिमाने वंदननो अधिकार, चैत्यगन्दनो अर्थ प्रतिमा, सभेद सत्यनुवरुप दशविध वैधावत्य खरूप. श्रीसिद्धार्थराजा श्रेणीकमहाराजा महावल द्रौपदी आदि श्रावक श्राविकाभोए करेल श्रीजिनपतिमाने बंदननो अधिकार, श्री जिनेश्वर देवनी पूजामां हिंसा माननाराभोना स्मृतिपथमां मुनिदान मुनिविहार शंख पुष्कली श्रावकना पोपध-यावच्या पुत्रनी दीक्षा अवसर "जे दीक्षा ले तेना कुटुम्बनी पालना अमे करी" एवा प्रकारनी श्रीकृष्ण महाराजाए करेली द्वारिका नगरीमा उद्घोपणा-कोणीक-उदायन आदि महाराजाओए करेल भगवान महावीरस्वामीना सामेयां-तुगीया नगरीना श्रावकोए करेल वलीकर्मनो विधिमा श्री जिनपूजानो पण समकिन संवर करणीमां गणना, मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती जोवोने पण दान गील पूना आदिथी शुभ विपाकनी संमासि, भगवान ऋपभदेवस्वामीए प्रजाना हितार्थे दर्शावेल शिल्प अने गणित आदि कलाओ आदि विषयोनी उपस्थिति, हेतु हिंसा स्वरूप हिंसा अने अनुबंध हिंसाठे स्वरूप, शाश्वती जिनपतिमाओ४ वर्णन, तीर्थेवरोना कल्याणक दिवसोमा देवताओए नंदीश्वर द्वीपमा जइ करेला महोत्सवो, साधुओने पण योगोहनपूर्वक भूत्रनुं अध्ययन कर, गृहस्थोने मूत्र वांचवानो निषेध, अस्वाध्यायनुं वर्जन आदि विषयोने सारी रीते स्पष्ट करेल छे.
रोजा श्रीसीमधरस्वामिनी विनति रूप साडात्रणसो गाथाना स्तवनमा सूत्र विरुद्ध बोलनारा, मूत्र विरुद्ध वर्तन करनारा, सस्क्रियाओने न करवाना इरादाथीसंहननने पित करनारा, ओघमार्गनेज सन्मार्ग माननारा, लोचादिक कष्टमांज जैनमार्ग माननारा, मात्र द्रव्यलींगनेज प्रमाण माननारा, सद्गुणोनी मासि विना पण गुरुओनी सहाययी तरो शकी/ एम माननारा, निर्गुणोने पण साधु तरीके माननारा, प्रतिक्रमणकरी पापथी कुटीरों एम बोली निरर्थक पापाचारण करनारा, निष्कारण उत्तरगुणनो भंग करी पोतामां चारित्र माननारा,धर्मोपदेश न आपवो, नवीन ग्रंथोनी रचना न करवी इत्यादि वोलनारा दुष्टमतिमंडळने हितोपदेश, गुरुकुल वासना सेवनयी विनयादि सद्गुगोनो प्राप्ति, ज्ञानी महात्माओनी उपासना द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भाव-पोग्य-अयोग्य-सचित्त-अचित्त-मिश्रकल्प-अकल्प आदिना अनभिज्ञ अगोतार्थाने अने आजकाल सिद्धांतना रहस्यथी मुज्ञात मुविहित गीतार्थ कोइपण न होवाथी एकाको विहार करवामां कोइपण जातनो वांघो नथी एवो प्रलाप करनाराओने पण सद्बोध, पंचमकाळमां गोतार्थोए पण समुदायनी

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