Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
View full book text
________________
AA
मस्तावना. ते समये आ महात्मानी अप्रतिम प्रतिभा असाधारण स्मरणशक्ति अद्वितीय विद्वता-अलौकिक-ग्रंथ प्रथनशक्ति प्रतिवादीओने पराजित करवानी चमत्कारिक स्फुर्ति-धैर्यता-गंभिर ता अने शासन रसिकता निरखी निखिल जनसमाज आश्चर्यमां गरकाव थयो हतो.
चमत्कारिक अवधान शक्ति संपन्न आ महात्मानी विद्वत्तानी ख्याती श्रवण गोचर करी गुजरावना अधिपति महमदखानने तेमने मलवानी हुंश थइ आववाथी तेओए नवावनी सभामां जइ अष्टादश (१८) अवधान करी खानने बहु खुश करी शासननी प्रभावना करी हती. वीस स्थानक तपना आराधक आ महात्माने श्रीमद् विजयपम मरिराजे १७१८ नी सालमां वाचक पदथी विभूपित कर्या हता तेमज आ महात्माए १९४३ नी सालमां अनशन करी समाधिनी साथे दर्भावती (डभोइ) नगरीमा स्वलॊकने अलंकृत कर्यो हतो. आ हकीकत मान्य मुनिवर श्रीकांतिविजयजीए वनावेली मुजसवेली भासनो नीचे मुकेली गाथाओथी स्पष्ट जणाइ आवे छे,
"कीरति पसरी दिसिं दिसि उजलीजी, विबुधतणी असमान । राजसभामां करतां वर्णनानी, निमुणे महवतखान ॥१॥ गुज्जरपति हुँस हुइ खरीजी, जोवा विद्यावान । तास कथनथी जस साधे वलीनी, अष्टादश अवधान ॥२॥ पेखि ग्यानी खान खुसी ययाजी, बुद्धि वखाणे निवाप । आईवरस्युं वानींत्र वाजतेजी, आवे थानिक आप ॥३॥ भोली तप आराध्य विधियकी, तस फल करतलि कीप । वाचक पदवी सत्तर अहारमांजी, विजयप्रभ दीप ॥४॥ सत्तर प्रयाली चोमास, रह्या पाठक नगर डभ्योई रे । तिहां सुरपदवी अणुसरी, अणसण करी पातक घोई रे ॥५॥" ___ आ माहात्माए संस्कृत भाषामा अनेक विषयो उपर अनेक ग्रंथोनी रचना करी छे, भने तेनी साथे गुर्जरभाषामां आ त्रण ग्रंथोनी साथे द्रव्यगुण पर्यायनो रास, आठ दृष्टिनी सझाय, उपशम श्रेणिनी सझाय आदि अनेक ग्रंथोनी रचना करी प्राकृत जनवगे उपर पण असीम उपकार करेल छे. __आत्रण ग्रंथरत्नोमांना प्रथम श्री सीमधरस्वामीनी विनति रूप सवासो गाथाना स्तवनमा गुरुओर्नु त्रासदायक स्वरूप अने तेओने हितशिक्षा, शुद्धधर्म अने अधर्मेनुं वरूप, स्वस्वरूपथी अनभिज्ञने गुणस्थानकनो असद्भाव, आत्माण सामायिक, ज्ञान अने चारित्रनुं स्वरूप, आत्मा अने पुद्गलनी भिन्नता, निश्चयदया अने व्यवहारदयालु स्वरूप, श्री जिनधर्मना लोपकनुं खरूप, शुद्ध व्यवहार अने अशुद्ध व्यवहार, मोक्षना त्रण मार्ग अने संसारना त्रण मार्गनुं रूरूप, अहिंसाना निमित्तथी श्री जिनपूनाना निषेधकोने रादुपदेश, श्री जिनेश्वर देवनी पूजा उपर ज्ञातासूत्र आदिमां कथन करेल द्रौपदी आदिनां दृष्टांतो, द्रव्यस्तपने योग्य श्रावकोने द्रव्यस्तव संबंधी सदुपदेश आदि विषयोने सारी रीते चर्यों छे.
पोताना समान कालमा उत्पन्न थयेला ढुंढकमतिओना मतनुं निराकरण करवा माटे यद्यपि सटीक प्रतिमाशतक आदि ग्रंथो संस्कृत भाषामा लखेल छे, तोपण माकृतजनो पर पण उपकार करवानी शुभ अभिलाषाथी आ प्रण ग्रंथ रत्नोमांना बीजा चरम तीर्थ

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 295