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________________ चौबीसवां प्रवचन मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत
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________________ प्रश्न-सार बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है हम नहीं आए यहां कोई हमें लाया है किसने नन्हा-सा मुहब्बत का ये जला के दिया दिले-वीरां के अंधेरे पे तरस खाया है। पर दीया तो जलता नजर नहीं आता...? भगवान, तुम्हारे चरणों में शत-शत प्रणाम ! कल जिस क्षण आपने कहा कि महावीर ने स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, उस क्षण मैं आपको निहारता ही रहा। क्या कर दिया आपने? / मुझे इतना कुछ मिल रहा था कि अंतर में समाता नहींऔर प्यास भी इतनी ही है।...प्रभु! यह सब क्या हो रहा है? www.jainefibrary.org
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________________ हला प्रश्नः तरफ अंधेरा है, अंधेरे में लगा स्वार्थ है। दूसरी-तरफ अंधेरे की बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है तकलीफें हैं। दीये का खयाल पैदा होता है। जब तक तुम अंधेरे हम नहीं आए यहां कोई हमें लाया है के स्वार्थ न तोड़ लोगे, तब तक तुम दीया जला न सकोगे। यह किसने नन्हा-सा मुहब्बत का ये जला के दिया | सीधा गणित है। तो दीये जलाने की तो फिक्र छोड़ो, पहले यह दिले-वीरां के अंधेरे पे तरस खाया है। देख लो कि 'अंधेरे में हमारा स्वार्थ है ? हम अंधेरे को चाहते हैं पर दीया तो जलता नजर नहीं आता...? कि बना रहे? अंधेरे से कुछ मिलने की आशा है? अंधेरे में मन | को लगाया है? भविष्य को अंधेरे में छिपाया है, सपने देखे कविता उधार है। किसी और का दीया जला होगा, उसने गायी हैं?' अगर अंधेरे से कुछ भी मिलने का, कहीं भी थोड़ा-सा है। अपने काव्य को जन्माना होगा। खयाल है तो तुम दीया कैसे जलने दोगे? कोई जला भी दे तो दीया तो सभी का जल सकता है। दीया है तो जलने के लिए उसे बुझा दोगे। जो दीया जलाये वह दुश्मन मालूम होगा। है। दीया है तो जलने की संभावना है। लेकिन कोई दसरा अंधेरे में तम्हारा बडा न्यस्त स्वार्थ है तुम्हारा दीया जला नहीं सकता। तुम्हारी स्वतंत्रता परम है। तुम इसलिए दीया नहीं जल रहा है। तुम्हारे अंधेरे पर कोई कितना न जलाना चाहो तो दीया जलाया नहीं जा सकता और तुम ही तरस खाये, तो भी अगर तुम अंधेरे में रहना चाहते हो तो इस जलाना चाहो तो कोई तुम्हें रोक न सकेगा। तुमने चाहा नहीं है | तरस से कुछ भी न होगा। कि दीया जले। अभी अंधेरे में तुम्हारे बड़े लगाव हैं। महावीर आते हैं, बुद्ध आते हैं, कृष्ण आते हैं, क्राइस्ट आते अकसर मैं लोगों को देखता हूं। वे चाहते हैं, अंधेरा भी बना हैं। तरस की कुछ कमी नहीं है। करुणा बड़ी है। महाकरुणा के रहे और दीया भी जल जाये। ऐसी उलझन है। क्योंकि अंधेरे में स्रोत आते हैं। स्वयं सूर्य तुम्हारे द्वार पर आकर दस्तक देते हैं। बड़े स्वार्थ हैं। लेकिन तुम अपने अंधेरे में छिपे बैठे हो। तुम सोचते हो कि जैसे एक आदमी चोरी करने गया हो, तो कई बार टकरा जाये, प्रकाश भी जल जाये। लेकिन कभी तुमने भीतर का द्वंद्व देखा? दीवाल-दरवाजे से ठोकर खा जाये, तो सोचने लगे मन में कि कि प्रकाश के जलने के साथ ही अंधेरे के सभी स्वार्थ नष्ट-भ्रष्ट दीया होता तो ठीक था लेकिन दीया हो और रोशनी हो जाये तो हो जायेंगे। तो अंधेरे से पाने की तुमने जो-जो आशाएं बांधी हैं, चोरी न कर सकेगा। तो अगर कोई कहे कि यह रहा दीया, लेलो वह सभी धूल-धूसरित हो जायेंगी। उस अंधेरे से भरी आशाओं तो वह कहेगा, पागल तो नहीं समझा है मझे? को ही तो हम संसार कहते हैं।। तो तुम्हारी दिक्कत यह है कि तुम्हारा जीवन दोहरा है। एक तो जब तक संसार में थोड़ा भी ऐसा लग रहा है कि कुछ मिल 516 :
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________________ जिन सत्र भागः1 सकता है, मिलेगा--तब तक तुम स्थगित करोगे, दीये को तम्हारे प्रकाश की आकांक्षा अंधेरे के विपरीत नहीं है-अंधेरे जलने न दोगे। तब तक तुम रोशनी से डरोगे। अगर रोशनी आ को छिपाने का उपाय और व्यवस्था है। जाये तो तुम पीठ कर लोगे। तुम हजार तर्क, विचार खोज लोगे तुम प्रकाश का खूब शोरगुल मचाते हो, आंसू बहाते हो, रोशनी से बचने के। तुम कहोगे, यह तो रोशनी आंखों को चिल्लाते हो, 'प्रकाश चाहिए', ताकि सारी दुनिया देख ले कि तिलमिलाती है, कि यह रोशनी तो हमारी सारी व्यवस्था को | अगर अंधेरा है तो तुम जिम्मेवार नहीं हो। तुम तो प्रकाश का डगमगाये देती है, कि यह रोशनी तो असुरक्षित कर देगी। हम कितना गुणगान कर रहे हो। भले, हमारा अंधेरा भला! बर्टेड रसेल ने लिखा है, जगत में बड़ी अजीब विडंबना है: लेकिन बेईमानी ऐसी है कि तुम अगर इसे भी साफ देख लो तो यहां जो आदमी जितना अनैतिक होगा, उतनी ही नीति की चर्चा भी रास्ता बन जाये। तुम साफ कह दो कि 'हम अंधेरे में ही करेगा। क्योंकि नीति की चर्चा से वह एक हवा पैदा करता है, जीयेंगे! बंद करो प्रकाश की बातचीत ! हमें कुछ लेना-देना नहीं जिससे पता चल जाये कि और कोई हो अनैतिक, मैं तो कम से है। लेकिन तुम उतने ईमानदार भी नहीं हो। कम नहीं हूं। जब कोई प्रकाश की बात करता है तो तुम इतने स्पष्ट भी नहीं यहां अभी किसी की जेब कट जाये तो जो आदमी जेब काटे, हो कि कह सको कि 'बंद! यह बात से हमें कुछ लेना-देना नहीं | अगर उसमें थोड़ी भी अकल हो तो उसको बड़ा शोरगुल मचाना है। हम अंधेरे में जीना चाहते हैं और अंधेरे में ही जीयेंगे। और चाहिए कि जेब कट गयी, पकड़ो चोर को। दौड़-धूप करनी अंधेरा हमारा सुख है।' चाहिए। एक बात निश्चित है, उसको कोई भी न पकड़ेगा। यह भी तुम नहीं कह पाते। तुम यह भी दिखलाना चाहते हो क्योंकि उसने अगर चोरी की होती और जेब काटी होता तो वह तो कि तुम प्रकाश के प्रेमी हो। तम यह भी दिखलाना चाहते हो कि | भाग गया होता। वह तो यहां बीच में खड़ा रहेगा। वह तो चोरी तुम शुभ के पक्षपाती हो। के खिलाफ बोलने लगेगा। एक बहरा आदमी रोज सुबह चर्च जाता था। रविवार को वह दो आदमी मछली मार रहे थे। और तभी उस सरोवर का सबसे पहले पहुंच जाता था और पहली पंक्ति में बैठता था। वह निरीक्षक आ गया। एक आदमी भाग खड़ा हुआ। तो वह उसके बज्र बधिर था। उसे न तो प्रवचन में कुछ सुनायी पड़ता न समझ | पीछे भागा। कोई दो मील जाकर हांफते-हांफते उसको पकड़ में आता। न संगीत चर्च में होता, वह उसको सुनायी पड़ता। पाया। और जब पकड़ पाया तो उसने जल्दी से खीसे से एक दिन एक आदमी ने पूछा कि 'तुम इतने जल्दी आते | निकालकर लाइसेंस बता दिया। उसको मछली मारने का हक किसलिए हो? रोज तुम चर्च चले आते हो, मीलों चलकर। था। तो उस आदमी ने कहा कि 'अरे नासमझ! तो फिर भागा तुम्हें कुछ सुनायी तो पड़ता नहीं। न तुम संगीत सुन सकते हो, न क्यों?' तो उसने कहा कि इसीलिए कि दूसरे के पास लाइसेंस तुम प्रवचन सुन सकते हो, तो तुम आते किसलिए हो?' नहीं है। वह आदमी हंसने लगा। उसने कहा कि मैं जतलाने आता हूं लोग बड़ी होशियारी से चल रहे हैं। कि सारी दुनिया देख ले कि मैं किस पक्ष में हूं। और परमात्मा भी तुम प्रकाश की खूब बातचीत करते हो ताकि एक बात तो नोट कर ले कि मैं कोई सांसारिक आदमी नहीं हूं। धार्मिक हूं! | निश्चित हो जाये कि तुम प्रकाश के आकांक्षी, अभीप्सु! तो तुम्हें तो तुम यह मोह भी नहीं छोड़ पाते कि तुम धार्मिक हो। धर्म के | कोई सोच भी न सकेगा कि तुम और अंधेरे का व्यवसाय करते साथ बड़ी प्रतिष्ठा जुड़ी है। धर्म के साथ बड़ा बल जुड़ा है, होओगे। आसानी से लोग फंस जायेंगे तुम्हारे व्यवसाय में। तुम प्रभुत्व जुड़ा है। वस्तुतः तुम जितने बेईमान होते हो उतने ही जेबें ज्यादा सुगमता से काट सकोगे। बेई धार्मिक दिखलाने की चेष्टा करते हो। क्योंकि बेईमानी को धार्मिक होना जरूरी है। दुकान ठीक चलानी हो तो मंदिर जाना छिपाने का इससे अच्छा कोई उपाय नहीं। प्रकाश की आकांक्षा | जरूरी है। मंदिर जाना दुकान के ठीक चलने का हिस्सा है। करके अंधेरे को ढांकते हो, छिपाते हो। दुकानदार भी खाते-बही लिखता है तो ऊपर लिखता है, 'श्री 516
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________________ नहीं-अहाभाव, अहोगीत ALL गणेशाय नमः' 'लाभ-शुभ।' ईश्वर का स्मरण करके किताब अब मतलब समझे? वे शांति चाहते हैं ताकि ठीक से अशांत बाजार की शुरू करता है। ईश्वर का स्मरण-उस किताब में हो सकें। और अशांति को छोड़ने की तैयारी नहीं है। शांति की सहयोगी होने को! वह यह कह रहा है, 'बाधा मत डालना। हम मांग भी अशांति को ही चलाये रखने के लिए है। तो तुम्हारे भक्त हैं।' तो मैंने उनसे कहा कि फिर कहीं और जाओ, क्योंकि असंभव जैसा मैं देखता हूं, सैकड़ों लोग चाहते हैं ध्यान! लेकिन ध्यान मैं न कर सकूँगा। शांत तुम्हें कोई भी नहीं कर सकता, जब तक जिन शर्तों से घट सकता है, वह शर्ते पूरी करने को राजी नहीं। तुम न समझ लो कि अशांत करने के उपाय बंद करने होंगे। कोई शर्त पूरी करने को राजी नहीं। सिर्फ बेशर्त, मुफ्त! और मैं जहां-जहां से अशांति आती है, वहां-वहां से हाथ खींच लेना तुमसे कहता हूं कि अगर यह संभव होता कि ध्यान मुफ्त दिया होगा। शांति के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता—सिर्फ अशांति जा सकता—चूंकि संभव नहीं है, इसलिए तुम मजे से मांगते से हाथ खींच लेते ही शांति निर्मित हो जाती है। शांति तो अशांति रहते हो। कोई खतरा नहीं है—अगर यह संभव होता कि ध्यान का अभाव है। शांति के लिए सीधा कुछ भी नहीं करना है। मैं तुम्हें उठाकर दे देता, तो मैं जानता हूं तुम मांगते भी नहीं। तुम तुमने अंधेरे में अपनी बड़ी आकांक्षाएं जोड़ रखी हैं, उनको हटा भागते। तुम कहते, 'अभी नहीं! अभी बच्चे बड़े हो रहे हैं। लो! दीया तो जल जायेगा। दीया तो जलने को तत्पर है, अभी थोड़ा और जीवन को सम्हाल लेने दो। अभी ध्यान! अभी प्रतिपल तत्पर है, क्योंकि दीया जलने के लिए है। दीया तो जलने नहीं!' क्योंकि ध्यान कहीं सब अस्त-व्यस्त न कर दे! और की संभावना लेकर आया है और रो रहा है। तुम्हारे दीये से ध्यान महाक्रांति है, अस्त-व्यस्त तो करेगा। | टपकते आंसू मैं देखता हूं कि कब जलाओगे, क्या मुझे ऐसे ही ली है। तुम्हारे चारों तरफ तुम्हारी दुनिया है। तुम बदलोगे, तुमने उसे विदा कर दिया। जन्म मिला, लेकिन जीवन न मिला। तुम्हारी दुनिया गिर जायेगी। क्योंकि वह आदमी ही बीच से हट जन्म के साथ ही जीवन थोड़े ही मिलता है! जन्म तो केवल गया जिसकी दुनिया थी। वह केंद्र गिर गया जिसके सहारे चाक संभावना है। जीवन अर्जित करना होता है। जरूरी नहीं है कि घूमता था। एक नयी दुनिया निर्मित होगी। तुम जन्म गये तो तुमने जीवन पा लिया हो। जन्म के साथ तो तो अगर तुम धन की दौड़ में लगे हो तो तुम ध्यान न कर बुझा दीया मिलता है। फिर उसे जलाना पड़ता है। सकोगे। गहन संघर्ष से जीवन की ज्योति प्रगट होती है। जैसे दो एक बड़े राजनीतिज्ञ मेरे पास आते थे। वह मुझसे कहते, कुछ लकड़ियों के घर्षण से आग पैदा हो जाती है, दो पत्थरों के घर्षण शांति का उपाय बताइए। मैंने कहा, अशांति तुम करते हो, शांति से आग पैदा हो जाती है-ऐसे तुम जब जीवन की सारी का उपाय मुझसे पूछते हो? छोड़ो महत्वाकांक्षा! महत्वाकांक्षा चुनौतियों से संघर्ष लेते हो, तब तुम्हारे भीतर का दीया जलता से तो अशांति पैदा होगी। जहां भी रहोगे, पीड़ित और परेशान है। और कोई उपाय नहीं है। उधार जल नहीं सकता। रहोगे। जहां भी रहोगे, असंतुष्ट रहोगे। शांति कैसे होगी? यह कविता किसी और की है। और जरूरी नहीं कि जिसने उन्होंने कहा कि आप वह मत कहिये, मैं तो आपके पास | गायी हो उसका भी दीया जला हो। क्योंकि अकसर तो ऐसा इसीलिए आया कि थोड़ी शांति हो तो थोड़ा ढंग से प्रतिस्पर्धा कर होता है, लोग कविताएं गाकर सोच लेते हैं कि जल गया दीया। सकू। अशांति के कारण प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा हूं। रात नींद जिनके जीवन में प्रेम नहीं है, वे प्रेम के गीत गाकर सांत्वना कर नहीं आती। बेचैनी रहती है। तो मुझसे पीछे आनेवाले लोग लेते हैं। मुख्यमंत्री हो गये और मैं मंत्री-पद पर ही अटका हूं। जितनी मैं बहुत कवियों को जानता हूं। तुम्हारी और उनकी परेशानी में दौड़-धूप वे लोग कर लेते हैं, मैं नहीं कर पाता। इसीलिए तो | मैंने जरा भी भेद नहीं पाया। शायद तुमसे बदतर उनकी परेशानी आपके चरणों में आया हूं कि थोड़ी शांति दो, ताकि दौड़-धूप है। फर्क है तो इतना कि वे सपने सजाने में कुशल हैं। तुम इतने ठीक से कर सकूँ। कशल नहीं हो सपनों को रंग देने में। वे इतने कशल हैं कि बझे 51 -
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________________ जिन सूत्र भागः1 दीये को भी जले दीये की तरह मानकर जी सकते हैं, गीत गुनगुना आदमी जो दूसरे खंभे से बंधा था, उसने कहा, 'इसकी बातों में सकते हैं। मत पड़ना, मैंने इसे कभी भेजा ही नहीं! यह सरासर झूठा है।' अकसर ऐसा होता है : जो तुम्हारे पास नहीं है उसकी सांत्वना लेकिन जो पैगंबर की तरह बंधा था, उसने क्या कहा? वह तुम अनेक रूपों से अपने पास जुटा लेते हो। प्रेम जिसके पास मुस्कुराया। उसने कहा, 'यह तो लिखा ही है शास्त्रों में कि नहीं है, वह प्रेम के बहुत गीत गाकर धीरे-धीरे भरोसा कर लेता उसके पैगंबरों को सदा तकलीफें झेलनी पड़ेंगी। तुम्हारे कोड़ों से है कि प्रेम हो गया। यह बड़ी विडंबना है। प्रेम के गीत जितने कुछ भी सिद्ध नहीं होता है—इतना ही सिद्ध होता है कि शास्त्र लोगों ने गाये हैं उनमें से निन्यानबे ने प्रेम को जाना ही न था। जो | सही हैं।' नहीं जान पाए जीवन में, जो यथार्थतः न घट पाया, उसे उन्होंने पागल आदमी का अर्थ क्या होता है? इतना ही कि जिसने सपनों में घटा लिया। सपने परिपूरक हैं। अब खुली आंख सपने देखने शुरू कर दिये; जो अपने सपनों में आधुनिक मनोविज्ञान इस सत्य को स्वीकार करता है कि सपने भरोसा करने लगा है—इतना कि यथार्थ झूठा पड़ जाता है, सपने परिपूरक हैं। जो तुम जीवन में नहीं कर पाते हो वह तुम सपने में ज्यादा सच मालूम होते हैं। करके अपने को समझा लेते हो। दिन में उपवास करो, रात सपनें | तो तुम्हारे कवि और पागलों में कोई बहुत अंतर नहीं होता है। में भोजन कर लोगे। दिन में ब्रह्मचर्य साधो, रात सपने में सुंदर | कवि थोड़े कुशल पागल हैं, जिनके पास कुछ प्रतिभा है; सुंदर स्त्रियां, सुंदर पुरुष तुम्हारे आसपास नाचने लगेंगे। तुम्हारे गीत रच सकते हैं, कि सुंदर चित्र बना सकते हैं। अकसर तो तुम ऋषि-मुनियों के आसपास अप्सराएं यूं ही नहीं नाची थीं। कोई कवियों के पास मत जाना—उनके गीत का सौंदर्य देखकर, वस्तुतः अप्सराएं कहीं से आती नहीं। किस इंद्र को पड़ी है? | अन्यथा वहां एक कुरूप आदमी पाओगे। गीत को सुन लेना। कहां कौन इंद्र है? वह तो ऋषि-मुनि ने ही जो दबा लिया था, गीत में बड़ा सौंदर्य हो सकता है। कभी-कभी तो बड़ी आकाश दमन कर लिया था; वह जिसको प्रगट नहीं किया था जीवन की ऊंचाई कवि छू लेते हैं। में-वह सन्नाटे में रात के, तंद्रा के क्षण में, निद्रा के क्षण में प्रगट | सपनों को बाधा क्या है? सपनों को कोई सीमा नहीं है। जहां होने लगा। और अगर बहुत दबाया तो आंख बंद करने की भी तक सपना देखना हो, देख सकते हो। न पहाड़ रोकते हैं, न जरूरत नहीं, अप्सरा खली आंख प्रगट हो जायेगी। यह निर्भर | आकाश रोकते हैं। लेकिन सपने तम जो देखते हो वह खबर देते करता है कि तुमने दमन कितना गहरा किया। अगर दमन बहुत | हैं कि जिस चीज की कमी रह गयी, उसको सपने में पूरा कर रहे गहरा कर लिया। इतना गहरा कर लिया कि अब दमन को हो। भिखमंगा सपने देखता है सम्राट होने के। और अकसर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। तो खुली आंख भी तुम सपने सम्राटों ने भिखमंगे होने के सपने देखे। देखे ही नहीं, पूरे किये। देखने लगोगे। खुली आंख और बंद आंख में दमन की गहराई महावीर, बुद्ध सम्राट थे। लेकिन भिखारी होने का सपना पैदा हो का ही फर्क है। तुम बंद आंख से देखते हो। तुमने पागल गया। न केवल सपना देखा, उसे पूरा किया। आदमी देखे? वे खुली आंख से देख रहे हैं। भिखारी सम्राट होने के सपने देखते हैं। जो नहीं हो रहा है, जो एक पागलखाने में एक आदमी दावा करता था कि वह ईश्वर नहीं है पास उसको सपने में देखना पड़ता है। का भेजा हुआ पैगंबर है। जिस मुसलमान खलीफा ने उसे तो जरूरी नहीं है कि जिसने ये पंक्तियां लिखी हों...ये कैदखाने में डलवा दिया था, वह उससे मिलने आया। कहा था | पंक्तियां प्यारी हैं, सार्थक हैं। कि तीन सप्ताह त फिर से सोच ले। वह जब उससे मिलने आया बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है तो वह एक खंभे से बंधा था। उसको कोड़े मारे गये थे, तीन हम नहीं आये यहां कोई हमें लाया है। सप्ताह भूखा रखा गया था। और जब उसने उस आदमी से पूछा खयाल तो दुरुस्त है। लेकिन यह खयाल ही नहीं है, यह सत्य कि क्या खयाल है, क्या अब भी तेरा खयाल है कि तुझे परमात्मा है। तुम यहां आये कहां? कोई लाया है। तुमने न तो आने का ने पैगंबर बनाकर भेजा है, इसके पहले कि वह बोले, एक दूसरा निर्णय किया था, न तुमने आने की आकांक्षा की थी। न तुमसे 518 Jait Education International
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________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत किसी ने पूछा था कि तुम संसार जाना चाहते, जीवन में उतरना। नाटकीय ढंग से घुसा मारकर टेबल पर कहा कि अगर ईश्वर हो चाहते? कोई तुम्हें उतार गया है। एक दिन अचानक तुमने तो मैं चुनौती देता हूं, इसी वक्त अपने किसी देवदूत को भेजो जागकर पाया कि तुम यहां हो। हमने सदा अपने को जिंदगी के | ताकि मुझे एक चांटा मारे-चांटा सुना जा सके, देखा जा सके। बीच में पाया है। जिंदगी के प्रारंभ में तो किसी ने नहीं पाया। ऐसे कोई देवदूत तो आते नहीं, ईश्वर ऐसी चुनौतियां लेता नहीं। जरूर कोई लाया है। कोई आंख पर पट्टियां बांधकर इस बगीचे ऐसा ले तो मुश्किल में पड़ जाये। इतने लोग हैं, इतनी चुनौतियां में छोड़ गया है। हैं। लेकिन एक आदमी बीच में से उठा, उसने आकर एक चांटा बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है। मारा। उसने कहा, यह क्या करते हो? उसने कहा कि ईश्वर ने हम नहीं आये यहां, कोई हमें लाया है। मुझे भेजा है। ईश्वर ने कहा कि तुम इस योग्य नहीं कि देवदूत और अगर यह खयाल ही रहा तो ज्यादा देर न टिकेगा, चला भेजे जायें, मैं ही काफी हूं। जायेगा। खयाल आते हैं, जाते हैं। खयाल बसते थोड़े ही हैं। मकान तुमसे बनवा लेता है। दुकान तुमसे चलवा लेता है। खयाल का कोई बड़ा भरोसा थोड़े ही है! जब तक कि यह काम तुमसे हजार करवा लेता है। लेकिन तुमको ही जब उसने खयाल ध्यान न बन जाये, तब तक इस पर भरोसा मत करना। बनाया और तुम्हारी नियति में, तुम्हारी प्रकृति में बीज डाले यह तो आयी है तरंग, चली जायेगी। अभी आयी है, अभी भूल वासनाओं के, इच्छाओं के। उन्हीं इच्छाओं के बीजों का फिर जाओगे। क्षणभर में उतर जायेगा खयाल। रूपांतरण होता है, वृक्ष बनते हैं। जिस दिन यह खयाल ध्यान बन जाये, यह तुम्हारी स्थिर चित्त | तम जरा पक्षियों को देखो? उन्होंने तो कोई आर्किटेक्चर का की भाव-दशा बन जाये कि कोई लाया है-क्या परिणाम | कोई शिक्षण नहीं लिया। कैसे प्यारे घोंसले बना लेते हैं। ऐसे भी होंगे? परिणाम बड़े दरगामी होंगे। अगर कोई लाया है तो पक्षी हैं कि उनको जन्म देने के बाद माता और पिता तो उड़ जाते तुम्हारे अहंकार के लिए कोई जगह न रह जायेगी। जन्म किसी ने हैं। अंडा ही छोड़कर उड़ जाते हैं। अंडा बाद में फूटता है। तो दिया, जीवन किसी ने दिया। तुम क्यों अकड़े फिरते हो? तुम पक्षियों को अपने मां-बाप से मिलने का मौका भी नहीं आता। नाहक बोझ ढो रहे हो इस 'मैं' का। न तुम आये, न तुम हो, न इसलिए शिक्षण का कोई उपाय भी नहीं है, कोई स्कल नहीं। तम जाओगे। कोई लाया. कोई रखे है, कोई ले जायेगा। लेकिन जब वे पक्षी बड़े होते हैं, फिर घोंसला बनाते हैं। और हिंदू पुराण बड़ी मधुर कथा कहते हैं। जो लाया वह ब्रह्मा। जो घोंसला ठीक वैसा ही होता है जैसा उनके मां-बाप ने बनाया सम्हाले वह विष्णु। जो ले जायेगा वह शिव। तुम पर कुछ था। वे भी उड़ जायेंगे अंडे को रखकर। अंडा फूटेगा तब छोड़ते नहीं। काम ही नहीं छोड़ते कुछ। ब्रह्मा ले आया है, विष्णु / मां-बाप पास न होंगे। पुनः सदियों-सदियों अनंत काल तक सम्हाले हैं, शिव ले जायेंगे। मतलब केवल इतना है कि विराट ने ऐसा सिलसिला चलता रहेगा। तुम में एक तरंग ली है। वैज्ञानिक बड़े चकित थे कि यह घोंसला बन कैसे जाता है! वही विराट जब चाहेगा तो तरंग समा जायेगी। और घोंसला कोई छोटी प्रक्रिया नहीं है। एक पक्षी का घोंसला तुम अपने को बीच में मत लाओ। जब इतनी विराट चीजें भी | उतारकर बनाने की कोशिश करो। तुम बड़ी मुश्किल में पड़ तुम्हारे बिना हो गयीं, तो तुम छोटी-छोटी बातों का हिसाब मत जाओगे। तिनकों से, धागों से, पंखों से पक्षी ऐसे सुंदर घोंसले रखो कि मैंने मकान बनाया है। जब तुमने अपने को ही नहीं बनाते हैं। कभी-कभी तो बड़े जटिल घोंसले बनाते हैं। बनाया है तो तुम मकान भी क्या बनाओगे? यह तो जिसने तुम्हें कोई बनवा लेता है! जिसने पक्षियों को बनाया है, उसी ने बनाया है, उसी ने बनवा लिया होगा। उसी ने तुमसे यह मकान शायद पक्षियों के द्वारा घोंसले बनाने की योजना भी उनके भीतर भी बनवा लिया होगा। कर रखी है। बिना शिक्षण के करवा लेता है। एक कहानी मैं पढ़ रहा था। एक नास्तिक बोल रहा था। तुम कहते हो मैंने प्रेम किया, कि मैं एक स्त्री के प्रेम में गिर ईश्वर के विपरीत प्रमाण दे रहा था। और अंततः उसने बड़े गया। यह तुमने किया? या कि जिसने तुम्हें जन्म दिया, उसने 519
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________________ जिन सूत्र भागः1 ही यह प्रेम भी तुम्हें दिया? | तुम पाओगेः सब कविताएं फीकी हैं। जीवन को थोड़ा परखो! फिर से छानो! फिर से विश्लेषण __ जिस दिन तुम्हारा जीवन गीत गुनगुनाएगा, उस दिन तुम करो। तुम पाओगे: कोई करवा रहा है। पाओगे : सब कविताएं कूड़ा-कर्कट हैं। यह खयाल तो बड़ा अच्छा है अगर ध्यान बन जाये। और और घबड़ाना मत! ध्यान से मेरा अर्थ है, अगर यह खयाल स्थिर भाव बन जाये, | दीया अगर बुझा है तो इसे इस तरह देखना कि यह जलने के तुम्हारा बोध बन जाये। लिए प्रतीक्षा है। बुझे को निराशा मत बना लेना। ऐसा मत बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है, सोचना : 'अब क्या करें? अंधेरा सघन है। दीया बुझा है।' हम नहीं आये यहां, कोई हमें लाया है! हाथ-पैर रोककर गिर मत पड़ना। थक मत जाना! इतने पर ही सारा धर्म पूरा हो जाता है-अगर तुम्हें ये समझ में हम जिसको मौत समझते हैं पैगामे-हयाते-जदीद है वोह आ जाये कि कोई हमें लाया है: कोई हमें ले जायेगा: कोई हमारे / ये फूल चमन में जितने हैं, फिर खिलने को मझाते हैं। भीतर श्वास ले रहा है। कोई हमारे भीतर जी रहा है। तो तुम जिसको हम मौत कहते हैं, वह भी मौत नहीं। वह भी नये अकर्ता भाव को उपलब्ध हो गये। फिर तुम कर्ता नहीं हो। | जीवन का संदेश है। और जब तुम कर्ता नहीं हो तो तुम्हारी सारी जीवन-ऊर्जा साक्षी ___ हम जिसको मौत समझते हैं, पैगामे-हयाते-जदीद है वोह बन जायेगी। कर्ता में नियोजित है जीवन-ऊर्जा, करने में लगी ये फूल चमन में जितने हैं, फिर खिलने को मुहते हैं। है। अगर करने से तुम्हारा हाथ अलग हो जाये ऐसा नहीं कि कर्म जो फूल मुझ गया, उसमें तुम नये खिलनेवाले फूल की छवि बंद हो जायेगा; कर्म तो चलेगा-और सुडौल चलेगा; और देखना। यहां सब फिर से खिलने को मुाता है। अगर दीया शुभ चलेगा। भूल-चूक कम हो जायेगी, क्योंकि तुम्हारे कारण | बुझा है तो जलने को ही प्रतीक्षा कर रहा है कि जले।। जो बाधा पड़ती थी वह भी मिट जायेगी। अबाध उसकी धारा इसे निराश होने का कारण मत बना लेना। वस्तुतः यही तो तुमसे बहने लगेगी। कर्म तो चलता रहेगा। वह तो उस आशा की किरण है, कि तुम्हारा दीया अभी बुझा है। जल सकता चलानेवाले पर है। वह तो पूर्ण पर है। लेकिन तुम, तुम्हारी ऊर्जा है। कुछ होने को बाकी है। यही तो आशा की किरण है कि सब बचेगी। वही ऊर्जा संगृहीत होकर साक्षी-भाव बनती है। वही हो नहीं गया है। जो हुआ है वह क्षुद्र है। जो नहीं हुआ है वह ऊर्जा समाधि बनती है। विराट है। वह विराट अभी प्रतीक्षा कर रहा है। वह होने को है। किसने नन्हा-सा मुहब्बत का ये जलाकर दिया यही तो जीवन की संभावना, उत्फुल्लता है, प्रसाद है, कि कुछ दिले-वीरां के अंधेरे पे तरस खाया है। होने को है। और वही ऊर्जा, वही समाधि दीया बनेगी। वही जलेगी तो तुम तो पैर में तुम घुघर बांध सकते हो और नाच सकते हो। और प्रकाशित होओगे। जब तक ध्यान की ज्योति न जले भीतर, तुम जो होने को है वह सबसे बड़ा है। जो हो चुका है, जो हुआ है प्रकाशित न हो सकोगे। और ध्यान की ज्योति बाहर से भीतर जन्म, जो हुआ है देह का मिलना, जो हुआ है धन-संपत्ति, नहीं डाली जा सकती-अंतर्तम में ही खिलती है। पद-प्रतिष्ठा-वह सब छोटा है। जो होने को है-ध्यान, जैसे वृक्षों में फूल लगते हैं तो वृक्ष में रसधार बहती है-उसी समाधि, मोक्ष-वह विराट है। जो हुआ है वह ना-कुछ है। जो रसधार के आखिरी छोर पर रंगीन फूलों का जन्म होता है। ऐसे होने को है वह सब कुछ है। इसे आशा का संचार समझना। इसे ही तुम्हारे जीवन के वृक्ष में रसधार बह रही है। वही रसधार जब | समझना जीवन का संदेश। कती है, समाधि के फल खिलते हैं। तब तुम्हारे और एक बार तुम्हारे भीतर आशा पैदा हो जाये और तम भीतर दीया जलेगा। | निराश न रह जाओ, हताश न बैठ जाओ, तुम्हारी जीवन ऊर्जा कविताओं को गुनगुनाकर भूल में मत पड़ जाना। कविताएं उठ बैठे, आशा से भरपूर-तो रसधार बहने लगी! फूल प्यारी हैं। लेकिन जब तुम्हारा जीवन का काव्य निर्मित होगा तब खिलेंगे। दीये भी जलेंगे। 520
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________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत. यह तेरा तसव्वुर है या तेरी तमन्नाएं कठिन होगा। संघर्षण होगा। लेकिन उसी संघर्षण में तुम दिल में कोई रह-रहके दीपक-से जलाए है। जागोगे, आंख खुलेगी। यह तेरा तसव्वुर है या तेरी तमन्नाएं और अच्छा है कि आंख खुलते-खलते ही दीया भी जले। दिल में कोई रह रहके दीपके-से जलाए है। कोई दूसरा जला दे दीया तो तुम आंख न खोलोगे। जरा तुम्हारे भीतर आशा उठे तो उसका तसव्वुर, उसकी / ऐसा मैंने सुना है, एक पुरानी चीनी कथा है, एक किसान ने तमन्ना, उसकी खोज के लिए पैर आगे बढ़ने लगे। उसकी खोज / परमात्मा से बड़े दिनों तक प्रार्थना की कि 'हे प्रभु! तुझे करनी है जिसने तुम्हें भेजा है। उसकी खोज करनी है जहां से तुम खेती-बाड़ी का कुछ पता नहीं। जब पानी चाहिए तब पानी नहीं; आये हो। अगर हिंदुओं की भाषा का उपयोग करना हो तो कहोः जब पानी नहीं चाहिए, तब बेतहाशा पानी! बाढ़ भेज देता है! उसकी खोज करनी है, जिसने तुम्हें भेजा है। अगर जैनों की भाषा तुझे कुछ समझ नहीं। तूने कभी खेती-बाड़ी नहीं की। ओलों की का उपयोग करना है तो कहो : उसकी खोज करनी है, जहां से तुम क्या जरूरत है ? जब धूप चाहिए तब धूप नहीं।' आये हो। मूल-स्रोत की! जीवन के मूल-बिंदु की, जहां से आखिर परेशान हो गया परमात्मा भी सुन-सुनकर। उसने सारा विस्तार हुआ है। | कहा, 'आखिर तू चाहता क्या है?' उस किसान ने कहा कि जरा-सा भी तुम्हारे भीतर उसकी खोज का अंकुर पड़ | एक साल मुझे मौका दें। आखिर जिंदगी हो गयी खेती-बाड़ी जाये-दिल में कोई रह-रहकर दीपक-से जलाए है। तो करते हुए। मुझे पता है, तूने कभी खेती-बाड़ी की भी नहीं। एक पल-पल दीये पर दीये, दीयों की पंक्तियां, दीप-मालाएं जल साल जो मैं चाहूं, वैसा हो।' उठेगी। तुम्हारा रास्ता ज्योतिर्मय हो जायेगा। परमात्मा ने कहा, 'चल यही सही।' लेकिन इस ज्योतिर्मय के पहले जोखिम उठानी पड़ेगी। अगर एक साल ऐसा हुआ कि किसान जब धूप चाहता तब धूप; जोखिम न उठायी तो कवि रह जाओगे; अगर जोखिम उठायी तो जब पानी चाहता तब पानी। बड़ी फसल उठी। ऐसी कभी न ऋषि हो जाओगे। जोखिम उठानी पड़ेगी। जोखिम है उस सब उठी थी। गेहूं की बालें इतनी बड़ी-बड़ी हुईं कि किसान ने कहा, को खोने की, जो अंधेरे में ही मिलता है और अंधेरे में ही मिल 'अब देखो! सालभर के बाद दिखलाऊंगा कि क्या तुम अब सकता है। अंधेरे के सारे के सारे व्यवसाय को खोने की जोखिम | तक परेशान करते रहे संसार को!' आदमियों के सिरों के ऊपर शर्त है-दीये के जलने की। चली गयीं। फिर वक्त आया फसल काटने का। फसल काटी दीया जल सकता है। कीमत चुकाने को राजी हो जाओ। मुफ्त गयी। बालें तो बहुत बड़ी-बड़ी थीं, लेकिन गेहूं उनमें न थे। वह वह दीया नहीं जलेगा। और अच्छा है कि मुफ्त नहीं जलता। किसान बड़ा हैरान हुआ कि यह मामला क्या हुआ! उसने प्रभु क्योंकि मुफ्त जल जाता तो कोई रस न होता। मुफ्त जल जाता | को कहा, 'हे प्रभु! समझे नहीं-धूप जब चाहिए तब धूप दी। तो तुम धन्यवाद भी अनुभव न करते। मुफ्त जल जाता तो तुम वर्षा जब चाहिए तब वर्षा दी। वर्षभर ठीक मेरे हिसाब से सब प्रौढ़ ही न हो पाते। मुफ्त जल जाता तो तुम जाग ही न पाते। तो चला। और बालें इतनी ऊंची गयीं, कभी न गयी थीं। किसी ने दीया भी जलता रहता और तम कमरे में अंधेरे में ही रहते। तम देखी न थीं इतनी ऊंची बालें। लेकिन मामला क्या है? अंदर आंख बंद किये सोये रहते। | कोई गेहूं नहीं है! दीये के जलने से ही थोड़े ही रोशनी हो जाती है-आंख भी तो तो परमात्मा हंसा और उसने कहा, 'तूने सिर्फ धूप मांगी, पानी खुली होनी चाहिए। सूरज भी निकल आये और तुम आंख बंद मांगा, ओले नहीं मांगे, तूफान नहीं मांगा, आंधी नहीं मांगी। किये पड़े रहो तो तुम अंधेरे में रहोगे। छोटी-सी दो पलकें इतने | आंधी और तूफान के बिना भीतर का सत्व संगृहीत नहीं होता। बड़े सूरज को नकार देती हैं। तो बालें बड़ी हो गयीं लेकिन भीतर प्राण संग्रहीत न हुए।' तो चनौती स्वीकार करो! दीया जल सकता है-इस आशा से संघर्ष के बिना कहीं प्राण संगृहीत हुए हैं? उद्वेलित होओ। उठो! तो अगर तुम्हें मुफ्त मिल जाता होता भीतर का दीया भी तो 5211
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________________ जिन सूत्र भागः1 तुम्हारे भीतर आत्मा पैदा न होती। तुम बाल हो जाते बड़ी लंबी, | प्रणाम। यह भी पहली दफे कहा है। मगर भीतर गेहूं का दाना न होता। नागुफ्तनी हदीसे-मुहब्बत नहीं मगर इस जीवन में जैसा है, सब वैसा ही जरूरी है। जो चेष्टा से जो दिल की बात वह कहें क्या जबां से हम? मिलना चाहिए, वह चेष्टा से ही मिलता है। क्योंकि बिना चेष्टा -प्रेम कोई छिपाने की बात नहीं। के वह मिल ही नहीं सकता; वह पैदा ही नहीं होता; तुम्हारी नागुफ्तनी हदीसे-मुहब्बत नहीं मगर पात्रता ही निर्मित नहीं होती। -प्रेम कोई न कहने की बात नहीं। जो दिल की बात वह कहें क्या जबां से हम? दूसरा प्रश्नः भगवान, तुम्हारे चरणों में शत-शत प्रणाम! लेकिन जो दिल की बात है उसे कैसे जबान से कहा जाये! कहना भी चाहें तो भी कही नहीं जा सकती। जो भी कहा जा 'दर्शन' ने पूछा है। सकता है, वह बुद्धि का होता है। जो नहीं कहा जा सकता, वही प्रश्न तो है ही नहीं। 'दर्शन' की वृत्ति भी प्रश्न पूछने की नहीं | हृदय का है। है। उसने सिर्फ अपना अहोभाव प्रगट किया है। तो उसे मैंने रोते देखा है, हंसते देखा है; प्रसन्न देखा है, उदास इसे समझना। देखा है। लेकिन कभी उसने कुछ कहा नहीं। इस न कहने के जो पूछते हैं, जरूरी नहीं कि समझ पायेंगे। पूछने के कारण ही | कारण उसे बहुत कुछ मिला है, जो उनको नहीं मिल पाया जो बहुत बार तुम समझने से वंचित रह जाते हो। क्योंकि जब तुम बहुत कहने में लगे हैं। पूछते हो तो प्रश्न को तुम इतना-इतना भारी समझ लेते हो, और | लेकिन, फिर भी खामोश भी रहो, चुप भी रहो तो भी हृदय तुम प्रश्न में इतने व्यस्त हो जाते हो कि उत्तर के लिए जगह ही कुछ कहना चाहता है। नहीं कह सकता, असमर्थ पाता नहीं मिलती तुम्हारे भीतर प्रवेश पाने की। तुम उत्तर के लिए है फिर भी कुछ कहना चाहता है। कहने में, अभिव्यक्त होने दरवाजा नहीं छोड़ते। में संबंधित होना चाहता है। समझ तो वे ही सकते हैं जो पूछते नहीं। न पछना ठीक-ठीक ___ मैं हजार जब्त करूं तो क्या, मैं हजार कुछ न कहूं तो क्या ? उत्तर को समझ लेने का अनिवार्य चरण है। कि दयारे-नाजे-हबीब में, मेरी खामुशी भी सवाल है। तो 'दर्शन' ने न तो कभी कुछ पूछा है सिर्फ एक बार को | उस प्रेमी के दरबार में, उस प्रेमी की महफिल में, मैं हजार जब्त छोड़कर। पहली बार जब वह मुझे मिलने आयी थी, वर्षों पहले, करूं तो क्या, मैं हजार कुछ न कहूं तो क्या न कहो, सम्हालो तब विवाद करने आयी थी। कोई बात उसे जंची न थी तो तर्क तो भी : दयारे-नाजे-हबीब में, मेरी खामुशी भी सवाल है। करने आयी थी। मैंने उसी दिन देख लिया था कि वह उलझ | लेकिन चुप रहना भी तो अभिव्यक्ति हो जाती है। न कुछ गयी, अब लौट न सकेगी। आयी थी तर्क करने, रह गयी सदा कहकर भी तो कुछ कह दिया जाता है। मौन भी तो अपनी एक को। उसके बाद उसने कभी कुछ पूछा नहीं। वर्षों बीत गये। मुखरता रखता है। और इन वर्षों में बहुत लोग आये-गये, वह फिर मेरे साथ रही। तो यद्यपि 'दर्शन' ने कभी कुछ कहा नहीं, लेकिन बहुत कुछ रास्ता ऊबड़-खाबड़ था तो भी कंटकाकीर्ण था तो भी। अब तो वह कहती रही है-अपनी चुप्पी से, अपने शांत मौन से। मैं धीरे-धीरे आश्वस्त हो गया हूं कि लौटकर पीछे देखेंगा तो अनेक बार मैंने उससे पूछा भी है, लेकिन फिर भी वह बचा गयी, कोई भी न हो, तो भी 'दर्शन' होगी। उसने कुछ कहा नहीं है। वह छाया की तरह पीछे रही है। पहले ही दिन विवाद उसने | ऐसी भाव दशा जल्दी ही परम फलों को उपलब्ध होती है। छोड़ दिया। संवाद शुरू होता है तभी, जब हम विवाद छोड़ते और आज उसने पहली दफा लिखा है। एक बार और उसने पत्र हैं। उत्तर पहुंचने लगता है तभी जब हम प्रश्न छोड़ देते हैं। उसने लिखा था-वह भी खाली कागज भेजा था; उसमें कुछ लिखा कुछ पूछा नहीं, इतना सिर्फ कहा है, तुम्हारे चरणों में शत-शत नहीं था। उत्तर मैं उसका भी दिया था। क्योंकि खाली कागज में 522
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________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत भी तो कोई बड़ी अंतर्तम से उठी हुई प्रश्नावली है। कुछ जो नहीं प्रिय को देखना रह गया हो। कहा जा सकता, जिसे शायद वह खुद भी नहीं तय कर पाती कि हजारों तूर उसी की हसरते-दीदार पर कुर्बा, कैसे कहें, उसको खाली कागज में लिखकर भेज दिया है। अपने | कि जिसकी जिंदगी ही हसरते-दीदार हो जाए। शून्य को! आज उसने धन्यवाद दिया है। कुछ लिखा है। तुम्हारे उसे मैंने 'दर्शन' नाम दिया है। 'दर्शन' का अर्थ होता है: चरणों में शत-शत प्रणाम। उसके भीतर कुछ हो रहा है, वह 'हसरते-दीदार'; देखने की अभिलाषा। और उसकी देखने की बड़ी पीड़ा से गुजर रही है। पुराना संसार टूट रहा है। नये का अभिलाषा गहन होती चली गयी है। अब तो यहां बैठती भी है अभ्युदय हो रहा है। इन पीड़ा के क्षणों में अत्यंत जरूरी है कि तो आंखें बंद करके ही बैठती है। जैसे-जैसे देखने की अभिलाषा वह जो होने जा रहा है, उसके प्रति अहोभाव से भरी रहे। गहन होती है, वैसे-वैसे आंख भी बंद होने लगती है। क्योंकि अन्यथा, पुराना संसार काफी वजनी है! उसका जाल-जंजाल | आंख से तो वही देखा जा सकता है जो रूप है, आकार है, नाम गहरा है। उसमें बार-बार उतर जाने की, उलझ जाने की है। आंख बंद करके उसे देखा जा सकता है जो अरूप है, संभावना है! लेकिन उसके सौभाग्य से वह जाल खुद ही टूटा निराकार है, अनाम है। जा रहा है। वह जाल खुद ही पीछे हटा जा रहा है। हजारों तूर उसी की हसरते-दीदार पर कुर्बा, सदा ही ऐसा होता है। जिस दिन तुम तैयार हो, उसी दिन कि जिसकी जिंदगी ही हसरते-दीदार हो जाए। संसार तुम्हें छोड़ने को तैयार हो जाता है। तुम लाख कहते हो कि और 'दर्शन' की जिंदगी अब उस दिशा में प्रवाहित हो रही है, क्या करें, कैसे छोड़ें, संसार नहीं छोड़ रहा है। गलत कहते हो। | उसकी नाव, जहां उस परम प्यारे के सिवाय कोई और न बचेगा। जिस दिन तुम छोड़ना चाहते हो, उस दिन संसार क्षणभर को नहीं कठिन होगी यात्रा! सब छूटेगा। लेकिन सब छूटने के मूल्य पकड़ता है, क्योंकि संसार ने तुम्हें कभी पकड़ा ही न था। इधर पर ही सब मिलता है। एक ही बात खयाल रखनातुम छोड़ने लगे, उधर संसार अपने आप छोड़ने लगता है। हरम हो, बुतकदा हो, दैर हो, कुछ हो, कहीं ले चल ऐसी ही घड़ी से वह गुजर रही है। ऐसी घड़ी में प्रणाम करने का जहां वह हुस्न-लामहदूद हो, ऐ दिल! वहीं ले चल। खयाल, सौभाग्य है क्योंकि ऐसे समय में तो शिकायत करने का -जहां वह परम सौंदर्य हो, अब वहीं चलेंगे! मन होता है। अगर वह शिकायत लिख भेजती आज तो मैं हरम हो, बुतकदा हो, दैर हो, कुछ हो, कहीं ले चल समझता कि ठीक था, तर्कयुक्त था; क्योंकि पीड़ा से गुजर रही -मंदिर हो, मस्जिद हो, काबा हो, काशी हो, कुछ भी हो। है, घनी पीड़ा से गुजर रही है। आज वह मुझ पर नाराज होती तो हरम हो, बुतकदा हो, दैर हो, कुछ हो, कहीं ले चल समझ में आनेवाली बात थी। क्योंकि यह बिलकुल स्वाभाविक जहां वह हुस्न-लामहदूद हो, ऐ दिल! वहीं ले चल! है कि जब पीड़ा से कोई गुजरे तो कहीं न कहीं, किसी न किसी को जहां वह असीम सौंदर्य हो! जहां उस परम प्रिय का दर्शन हो! दोष दे। और मुझसे ज्यादा करीब उसके कोई भी नहीं। तो जो भी उसके लिए सब निछावर करने की तैयारी रखना। वह करीब हो, उसी को हम दोष देते हैं। . | आखिरी दम तक परीक्षा लेता है। वह आखिरी-आखिरी घड़ी आज इस दुख की घड़ी में स्वाभाविक था कि वह कहती कि | तक परीक्षा लेता है। आखिरी-आखिरी घड़ी तक पीड़ा देता है! 'तुम्हीं' ने सब खराब कर दिया। सब उजड़ गया! सब धागे | लेकिन जो उस पीड़ा से गुजर जाता है, वह उस महापात्रता को टे जा रहे हैं। लेकिन इस घड़ी में उसका चरणों में प्रणाम भेजना उपलब्ध हो जाता है-जहां तुम्हें परमात्मा को खोजने नहीं जाना बहुत बहुमूल्य है। इस किरण के सहारे ही वह पार हो जायेगी। पड़ता, परमात्मा तुम्हें खोजता आता है! हजारों तूर उसी की हसरते-दीदार पर कुर्बा, और अगर, अहोभाव हो तो घड़ी दूर नहीं। शिकायत से लोग कि जिसकी जिंदगी ही हसरते-दीदार हो जाए। दूर होते हैं परमात्मा से; धन्यवाद से पास होते हैं। जितना हजारों सूरज भी उसकी आंखों पर कुर्बान हैं; उसकी देखने की धन्यवाद गहन होता जाता है उतनी दूरी कम होती जाती है। अगर अभिलाषा पर कुर्बान हैं जिसके जीवन का लक्ष्य ही उस परम | अहोभाव परिपूर्ण हो जाये तो दूरी समाप्त हो जाती है। अहोभाव 523 www.jainelibrar.org
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________________ जिन सुत्र भागः1 - के क्षण में अचानक तुम पाते हो वही है मौजूद! उसने ही तुम्हें लग जायेंगे। सब तरफ से घेरा है। उसके अतिरिक्त और कोई भी नहीं। 'दर्शन' वहां है जहां सम्हालकर चलना होगा प्रतिपल। और उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है! रोज-रोज सम्हालने को ज्यादा सम्हालना होगा। ज्यादा गुल में, शफक में, दामने-अब्रे-बहार में सावधानी, सावचेती। देखा जो मैंने आए नजर तुम जगह-जगह। इन पीड़ा के क्षणों को अगर ठीक से पार कर लिया तो मंदिर संध्या की लाली में देखा, कि वसंतों की वर्षा में देखा! ज्यादा दूर नहीं है, पास ही है-कुहासे में ढंका है। गुल में, शफक में, दामने-अब्रे-बहार में देखा जो मैंने आए नजर तुम जगह-जगह। तीसरा प्रश्न : कल जिस क्षण आपने कहा कि 'महावीर ने वही दिखायी पड़ने लगेगा। ऐसा अहोभाव हो कि कहीं मन के स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, वह मूल्य किसी और ने कोने-कातर में भी सरकती कोई शिकायत न रह जाये, उसके | नहीं दिया' उस क्षण मैं आपको निहारता ही रहा। क्या कर दुख भी स्वीकार हों, उसकी पीड़ा भी स्वीकार हो। उसने दी दिया आपने? मैं अपनी अभव्यता देखता रहूं, अल्पता देखता पीड़ा, इस योग्य समझा। यही क्या कम है! ऐसे भाव में मंदिर | रहूं, और आपको निहारता रहूं, शीश नवाता रहूं! निर्मित होता है। ऐसे भाव की दशा में भक्त निर्मित होता है। और 'दर्शन' जल्दी ही उस दशा को उपलब्ध हो सकती है। सुना यदि शांत मन से तो कभी-कभी ऐसे झरोखे खुलेंगे। लेकिन जितने हम करीब पहुंचते हैं, उतना ही खतरा भी बढ़ता महावीर ने तो कहा है कि अगर कोई ठीक से सुन ले तो मात्र है। जो जमीन पर चलते हैं, समतल जमीन पर, उनके गिरने का | श्रवण से भी पार हो जाता है। इसलिए महावीर ने कहा कि मेरे कोई भी डर नहीं। लेकिन जो पहाड़ की ऊंचाइयों पर चढ़ते हैं, | चार तीर्थ हैं, चार घाट हैं जिनसे लोग उस पार जा सकते हैं: गिरने का डर भी उसी के साथ-साथ बढ़ता जाता है। गिरे तो बुरी | श्रावक, श्राविका, साध्वी, साधू।। तरह गिरेंगे। इसलिए जितनी ऊंचाई आती है, उतने ही | / श्रावक-श्राविका का अर्थ होता है। जिन्होंने ठीक से सना, सम्हलकर और सावधान होकर चलने के क्षण आते हैं। जमीन श्रवण किया। सिर्फ सुनकर कोई पार जा सकता है? निश्चित पर गिरे भी तो क्या गिरे, फिर उठकर खड़े हो जायेंगे। ही। लेकिन सिर्फ सुनने को कोई छोटी घटना मत समझना। मैंने सुना है, बायजीद एक गांव के पास से गुजर रहा था। सिर्फ सुनना बड़ी घटना है—करने से भी बड़ी घटना है। करना उसने एक शराबी को देखा, जो डगमगाता चल रहा था! | तो आसान है, सुनना कठिन है। क्योंकि ठीक सुनने का अर्थ है : बायजीद ने उसे पकड़ा और कहा कि, 'सुन पागल! कितनी पी | जब तुम्हारे भीतर कोई विचार की तरंग न हो; तभी तुम वह सुन रखी है? कुछ होश सम्हाल! गिर पड़ेगा तो कीचड़ मची है, पाओगे जो कहा जा रहा है। अगर विचारों की तरंगें हैं तो तुम सब कपड़े खराब हो जायेंगे।' वही सुन लोगे जो तुम्हारी विचार की तरंगें व्याख्या करेंगी। उस शराबी ने आंख खोली और हंसने लगा। उसने कहा, मैं यहां बोल रहा हूं। तुम वहां सोच भी रहे हो। तो मिश्रित 'बायजीद! हम अगर गिरे तो कपड़े ही खराब होंगे; तुम अगर | होगा सुनना। मेरे कहे पर तुम्हारे विचारों की खोल चढ़ जायेगी। गिरे तो...?' मेरे कहे पर तुम्हारे विचारों का रंग बिखर जायेगा। तुम वही बायजीद बड़ा सूफी फकीर था, बड़ा संत था। समझ लोगे जो तुम समझ सकते थे; वह नहीं जो मैंने कहा था। 'तुम अगर गिरे तो?' तो कभी-कभी ऐसी घड़ी घटेगी सुनते-सुनते कि तुम उस तो कहते हैं, बायजीद ने उसके चरण छुए और कहा कि ठीक जगह पहुंच जाओगे जिसको महावीर श्रावक का तीर्थ कहते हैं। समय पर तूने मुझे चेताया। अगर हम गिरे तो कपड़े तो दूर, श्रवण के घाट पर पहुंच जाओगे! अचानक! तब क्या मैं कह आत्मा तक खराब हो जायेगी। तू गिरा तो सुबह नहा-धोकर रहा हूं, यह सवाल नहीं है कोई भी शब्द, भाव-भंगिमा मात्र, ठीक हो जायेगा, यह भी सच है। अगर हम गिरे तो जन्म-जन्म तुम्हारे भीतर कोई झरोखा खोल देगी! कोई द्वार जो बंद पड़ा था 524
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________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत जन्मों से, हवा के एक झोंके में खुल जायेगा! कोई दृश्य जो तुमने बच्चा मृत होगा या अर्ध-जीवित होगा। कभी न देखा था, दिखायी पड़ जायेगा। ऐसा ही कुछ हुआ है! | तो जो भी यहां घटेगा मेरे निकट तुम्हारे भीतर, तुम उसे घटने दे 'कल जिस क्षण आपने कहा, महावीर ने स्वाधीनता को रहे हो-इतना याद रखना। भूलकर भी यह मत सोचना कि मैंने आत्यंतिक मूल्य दिया, वह किसी और ने नहीं दिया, उस क्षण मैं | कुछ किया। तुमने कुछ होने दिया। अगर यह तुम्हें खयाल रहे आपको निहारता ही रहा। क्या कर दिया आपने?' तो तुम मालिक रहोगे। तुम जब होने देना चाहोगे तभी हो मैंने कुछ भी नहीं किया। मेरे किये क्या हो सकता है? तुमने | जायेगा। अगर तुम सतत होने देना चाहोगे तो सतत होता रहेगा। कुछ होने दिया। मैंने कुछ किया नहीं। तुमने कुछ होने दिया। लेकिन मालकियत मेरे हाथ में मत दे देना। इस फर्क को ठीक से समझ लेना। ऐसी भूल अकसर हो जाती है। अकसर, जीवन में हमारा सारा अगर तुमने ऐसा सोचा कि मैंने कुछ कर दिया, तो यह तो तर्क यही है : कोई तुम्हारे पास से गुजरा और तुम्हें नमस्कार न परतंत्रता की नयी जंजीर शुरू हो जायेगी। तब तुम राह देखोगे किया-क्रोध आ गया। अब तुम कहते हो, इस आदमी ने कि मैं कुछ करूं तो हो। क्रोधित कर दिया। इस आदमी ने कुछ भी नहीं किया। यह इस भ्रांति में मत पड़ना। यह भ्रांति होती है। उसकी मर्जी नमस्कार करे न करे। हां, एक मौजूदगी बनी, एक तुम एक राह से गुजर रहे हो। एक सुंदर स्त्री दिखायी पड़ी। अवसर बना। उसने नमस्कार नहीं किया। क्रोध तो तुमने होने कुछ हो गया। अब तुम कहते हो, 'इस स्त्री ने कुछ कर दिया।' दिया। इसे दोष दूसरे पर मत देना। इस स्त्री ने कुछ भी नहीं किया। तुम्हारे भीतर ही कुछ हुआ। तुम्हारे भीतर कोई दूसरा कुछ करता नहीं। ऐसा ही समझो कि इसकी मौजूदगी ने सहारा दे दिया। इसने कोई जादू नहीं किया, एक सूखा कुआं हो और हम उसमें एक बालटी डालें, खूब कोई वशीकरण नहीं किया, जैसा लोग समझते हैं। शायद इसे तो खड़खड़ाएं, खूब डुबकी लगवाएं बालटी की, लेकिन कुछ भी न खयाल भी न हो। तुम्हें कुछ हुआ, यह पक्का है। इसकी हो, क्योंकि कुआं सूखा है। बालटी खाली की खाली वापस आ मौजूदगी ने कैटेलेटिक एजेंट का काम किया। शायद इसकी जाए। फिर भरे कुएं में हम बालटी डालें, तो भरकर आ जाये। मौजूदगी में न हो पाता, देर-अबेर होता, लेकिन इसकी मौजूदगी तुम अगर प्रेम से भरे हो तो परिस्थितियां अनुकूल बन जायेंगी में कोई चीज तुम्हारे भीतर झलक गयी; लेकिन जो झलकी है वह | जिनमें तुम्हारा प्रेम उभरकर आ जायेगा। तुम अगर क्रोध से भरे तुम्हारी ही अंतर-दशा है। इसकी मौजूदगी में तुमको झलक हो तो परिस्थितियां अनुकूल बन जायेंगी, जिनमें क्रोध उभरकर मिली प्रेम की, लेकिन प्रेम तुम्हारी भाव-दशा है। तुम्हारे भीतर | आ जायेगा। पड़ा हुआ प्रेम फूट पड़ा। इसकी मौजूदगी अवसर बनी। इसने यह संसार सभी परिस्थितियों का समागम है। यहां सभी कुछ किया नहीं। इसकी मौजूदगी निष्क्रिय अवसर है। परिस्थितियां मौजूद हैं। तुम जिससे भरे हो वही प्रगट होने ठीक वैसे ही बुद्धपुरुषों की मौजूदगी निष्क्रिय अवसर है। बुद्ध लगेगा। अगर तुम थोड़े शांत, मौन से भर जाओ, तो तुम्हारे या महावीर तुम्हारे भीतर कुछ करते नहीं। नहीं, इतनी हिंसा भी भीतर बहुत कुछ घटेगा, बहुत-से वातायन खुलेंगे। वे न कर सकेंगे। यह भी हिंसा हो जायेगी। असमय में कुछ कर | लेकिन भूलकर भी यह मत कहना कि मैंने कुछ किया। ज्यादा देना ऐसा ही होगा जैसे गर्भपात हो जाये समय के पहले। नहीं वे से ज्यादा इतना ही कहना कि मेरी मौजूदगी में तुमने कुछ होने प्रतीक्षा करेंगे। दिया। और फिर ये भी कोशिश करना कि मेरी मौजूदगी के बिना सकरात कहता थाः मेरा काम दाई का काम है, मिडवाइफ। भी वह हो जाये, ताकि तुम उसके मालिक बन सको। दाई का काम यह है कि जब बच्चा पैदा होने के करीब हो तब वह मुझे सुन रहे थे, कुछ हुआ-अचानक तुम चौंक गये, अवाक जरा सहारा दे दे। बिना सहारे के भी पैदा हो जायेगा बच्चा। रह गए, चकित! थोड़ा सहारा दे दे। थोड़ी ढाढ़स बंधा दे। थोड़ी हिम्मत बंधा दो। अब ऐसा ही सुबह बैठ जाना, सूरज ऊगते ही, सूरज को लेकिन समय के पहले बच्चे को बहार न निकाल दे, अन्यथा देखना! फिर वैसे ही शांत, मौन उसे देखते रहना। तुम अचानक 525
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________________ जिन सूत्र भागः1 जिन सूत्र भाग : 1 - पाओगे: किसी दिन सूरज के ऊगने से भी वैसा हो जायेगा। संयोगवशात तुम चुप थे। मन में सन्नाटा था। सुनने को आतुर फिर पक्षियों के कोलाहल को सुनना। उनके कलरव को थे, इसलिए बोल नहीं रहे थे। उस आतुरता में भी कोई ऐसी घड़ी सुनना। किसी दिन तुम पाओगेः सुनते-सुनते-सुनते फिर तार | आयी होगी जहां मेरे श्वास के और तुम्हारे श्वास के बीच एक मिल गए! फिर हो गया! तब तो एक बात पक्की हो जायेगी कि लयबद्धता आ गयी, एक तालमेल हो गया। तो जिस तरह, तुम जहां भी होने देते हो वहीं हो जाता है। जिस जगत में मैं स्पंदित हो रहा हूं, क्षणभर को तुम मेरे साथ नाच फिर किसी दिन बीच बाजार में, जहां होने की कोई आशा नहीं | लिये, स्पंदित हो गए। कुछ हुआ! कुछ—जिससे तुम चकित दिखायी पड़ती, वहां तुम बाजार के शोरगुल को मौन भाव से होओ! कुछ—जिस पर तुम भरोसा नहीं कर सकते! सुनना और तुम चकित होओगेः वहां भी हो जाता है! कुछ—जिसको तुम चाहोगे कि मैं कहूं कि मैंने किया! क्योंकि तब तुम मालिक होने लगे। तब तुम अपने पैरों पर खड़े होने | तुम्हें अपने पर आत्मविश्वास नहीं कि तुमसे ऐसा हो सकेगा। लगे। तब मैं तुम्हारे लिए बैसाखी न बना, वरन मेरी मौजूदगी ने फिर भी मैं तुमसे कहता हूं, तुम्हीं से हुआ है। और बार-बार तुम्हारे पैरों को बल दिया। | तुमसे यही कहूंगा कि जब भी हो, स्मरण रखना तुम्हीं से हो रहा ध्यान रखना, तुम्हारी आकांक्षा मुझे बैसाखी बना लेने की है। है। मेरी परिस्थिति का उपयोग कर लो। मेरी मौजूदगी का लेकिन बैसाखी मिल जाए तो भी तुम लंगड़े ही रहोगे। | उपयोग कर लो। मेरी मौजूदगी तुम्हें तुम्हारे भीतर की संपदा के किसी गुरु को बैसाखी मत बनाना। और जो गुरु स्वयं को प्रति थोड़ा जागरूक कर दे, फिर तुम मुझे भूलो! क्योंकि मैं बाहर तुम्हारी बैसाखी बनने दे वह तुम्हारा मित्र नहीं, श वह तुम्हारे लंगड़ेपन के लिए शाश्वतता दे रहा है। अब तुम सदा बुद्ध ने कहा : बुद्ध-पुरुष इशारा करते हैं, चलना तुम्हें पड़ता के लिए लंगड़े रह जाओगे। है। महावीर ने कहा है : मैं सिर्फ उपदेश करता हूं, आदेश नहीं। यही बात अकसर घटती है। तुम किन्हीं लोगों के पास जाकर मैं वही बोल देता हूं, जो है। तुम अगर सुनने को राजी हो सुन कहोगे, कि आपकी मौजूदगी ने, आपने ऐसा कुछ कर दिया। लो। जीसस ने कहा है : अगर तुम्हारे पास आंखें हों तो देख लो, सदगुरु और असदगुरु की पहचान यही है। असदगुरु कहेगा, | मैं मौजूद हूं! तुम्हारे पास कान हों तो सुन लो, मैं बोल रहा हूं! 'हां, मेरी शक्ति से ऐसा हुआ।' सदगुरु कहेगा, 'किसी की तुम्हारे पास हृदय हो तो धड़क लो मेरे साथ! शक्ति का कोई सवाल नहीं। तुमने होने दिया', और तुम अगर ऐसा ही समझो कि थोड़ी, क्षणभर को, तुम मेरे साथ धड़क होने दो तो कोयल की कुहू-कुहू से भी हो जायेगा। पानी के झरने लिये, श्वास से श्वास मेल खा गयी, धड़कन से धड़कन मेल की आवाज से भी हो जायेगा। सागर के तुमुल नाद से भी हो खा गयी। एक क्षण को एक आरोह हुआ। तुम्हारे भीतर एक जायेगा। फिर तो बीच बाजार में भी हो जायेगा। भीड़, तरंग उठी, उसने आकाश छू लिया! लेकिन इसे मैं चाहता हूं कि कोलाहल, चलते हुए लोग, हजार तरह की बातें, तुम सदा स्मरण रखना कि वह तुम्हारे ही कारण हुआ। क्योंकि शोरगुल-उससे भी हो जायेगा। क्योंकि असली बात बाहर से अगर मेरे कारण हुआ तो तुम मुझसे बंधे। फिर बाजार में न हो भीतर नहीं आ रही है-असली बात भीतर से बाहर जा रही है। | सकेगा। फिर पक्षियों के कलरव में न हो सकेगा। फिर सागर के असली बात है कि तुम शांत होकर सुनने में समर्थ हो गए; तुमने | तुमुल नाद में न हो सकेगा। फिर तुम बंधे मुझसे। फिर तो मैं कोई प्रतिक्रिया न की। तुम्हारा नशा हो गया। फिर तुम्हें मेरी तलफ लगेगी, कि जाएं निश्चित ही, पहली दफा उसी व्यक्ति के पास हो सकेगा। | वहां, सुनें वहीं, फिर सत्संग करें। जिससे तम्हारा बड़ा श्रद्धा का लगाव है। पहली दफा। वहां नहीं, सत्संग का अर्थ ही यह है कि तुम्हारी ऐसी घड़ी आ जाये आसान होगा, जहां बड़ा प्रेम का लेन-देन है; जहां दो हृदय | कि सब जगह, जहां तुम हो वहीं सत्संग होने लगे। नहीं कहता साथ-साथ धड़कते हैं। कि यहां मत आना, लेकिन वह आना तुम्हारा रोग न बन जाए; जब तुमने मेरी यह बात सुनी तब किसी कारण से, वह शराबी की लत न बन जाए! 526
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________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत तुम आना और प्रसन्न होना। और तुम आना और खुलना। अनहोना घट गया, तो लोग कहेंगे, इस बोलने में क्या रखा है? और तुम आना और प्रसाद को उपलब्ध होना। लेकिन स्मरण | ये शब्द तो साधारण हैं। रखना कि सब तुम्हारे भीतर हो रहा है। और जब तुम यहां से 'महावीर ने स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, वह मूल्य जाओ, तो जो हुआ है उसे संभालकर अपने साथ ले जाना, उसे किसी और ने नहीं दिया'-इन शब्दों से क्या घट सकता है? यहां मत छोड़ जाना। और धीरे-धीरे विपरीत परिस्थितियों में भी तुम दूसरे को मत समझाना! ये बातें तो दीवानों की हैं। हां उसकी झलक को पाने की कोशिश करना। जहां कोई संभावना | किसी और को हुआ हो तो उससे बात कर लेना। नहीं तो खतरा न दिखायी पड़ती हो, जहां दुख ही दुख, पीड़ा ही पीड़ा हो—फिर क्या है? खतरा यह है कि अगर तुम औरों से यह कहोगे तो वे तुम आंख बंद करके उसी भावदशा को, उसी तरंग को अपने | समझेंगे, कि कुछ गड़बड़; तुम्हारा दिमाग खराब हो रहा है, भीतर लाना। तुम चकित होओगे कि धीरे-धीरे वह तरंग उठने किसी सम्मोहन में पड़ गये हो। और डर यह है कि वे कहीं लगी, मालकियत हाथ में आने लगी। तुम्हारा आत्म-अविश्वास न जगा दें। अगर आत्म-अविश्वास तब कहीं भी, आंगन कितना ही तिरछा हो, तुम्हें नाच आ गया जग गया तो दुबारा यह न होगा। तो तुम नाच सकोगे। ज्यादा से ज्यादा यहां मैं इतना ही कर रहा हूं | तो ऐसी घटना कभी भी घटती हो, मुझे कह देना या गैरिक रंग कि तुम्हें चौकोर आंगन दे रहा हूं। इससे ज्यादा नहीं। जो जगा है के बहुत पागल यहां हैं, उनसे कह देना; मगर समझदारों से मत वह तुम्हारे भीतर ही सोया था। कहना, नहीं तो वे तुम्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। अंततः जब फिर ये कैसी कसकसी है दिल में, तुम्हारे जीवन में सब साफ हो जायेगा, फिर तो कोई नुकसान नहीं तुझको मुद्दत हुई कि भूल चुका। पहुंचा सकता। लेकिन अभी जब अंकुर बड़ा कोमल होता है, वह जो कसकसी फिर से मालूम हुई, वह कुछ बाहर से नहीं अभी जब बीज टूटा ही होता है, तब हर खतरा प्राणघाती हो आयी है। वह उसी की याददाश्त है जिसे तुम मुद्दत हुई भूल | सकता है। चुके। वह तुम्हारे मूलस्रोत का स्मरण है। जब दिल पे न हो काबू अपना, क्या जब्त करें क्या सब्र करें। फिर ये कैसी कसकसी है दिल में मुझ जैसे काश वह हो जाएं जो आ-आकर समझाते हैं। तुझको मुद्दत हुई कि भूल चुका। कई लोग तुम्हें समझायेंगे कि 'क्या पागलपन कर रहे हो? इतने भूल चूके हो कि अब यह भी याद नहीं कि भूल चुके। होश में आओ! बुद्धि सम्हालो। यह तुम किन बातों में पड़े जा भूल चुके हैं, यह भी याद रहे तो बिलकुल भूले नहीं, याद है। रहे हो?' लेकिन हम इतने भूल गये हैं कि यह भी अब याद नहीं कि भूल | जब दिल पे न हो काबू अपना, क्या जब्त करें क्या सब्र करें! चुके। मुझ जैसे काश वह हो जाएं जो आ-आकर समझाते हैं। तुम मेरे करीब, वह मुद्दत हुई जिसे तुम भूल चुके, जनम-जनम | लेकिन वह तुम्हारे जैसे न होंगे। और डर यह है कि वह तुम्हें का घेरा, बहुत दूर रह गयी वह बात जो तुम्हारा मूलस्रोत थी और अपने जैसा बना सकते हैं, क्योंकि वे ज्यादा हैं। जो तुम्हारी, अंतिम जीवन की नियति है; प्रथम जो थी और भीड़ है। और हम भीड़ पर बड़ा भरोसा करते हैं। हमारी अंतिम जो है, वह बात भूल गयी है-यहां तुम्हें याद आ जाये, धारणा ही यह है कि जिस बात को बहुत लोग मानते हैं, वह ठीक थोड़ी सुरति आ जाये! बस इतना काफी है! होनी चाहिए। अकसर तो उलटा होता है। जिसको बहुत लोग और इस बात को तुम हर किसी से कहते मत फिरना। नहीं तो मानते हैं वह बात अकसर तो गलत होती है। क्योंकि बहुत लोग लोग हंसेंगे। यह बात तो दीवानों से ही करने की है। गलत हैं। अकसर तो ऐसा होता है, ठीक बात को कभी कोई अगर तुमने यह किसी और को कहा कि मैं यह बोल रहा था। एक-आध मानता है। भीड़ तो सदा गलत को ही मानती है। कि 'महावीर ने स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, वह मूल्य इसलिए सत्य के जगत में कोई लोकतंत्र नहीं है, कोई मत नहीं है, किसी और ने नहीं दिया', उस क्षण में तुम्हारे भीतर कुछ कि नब्बे प्रतिशत लोगों ने साथ दे दिया तो सत्य होना चाहिए। 527
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________________ जिन सूत्र भागः1 अकसर तो ऐसा हुआ है: जब महावीर ने कहा तो वे अकेले, तो पोप को समझ में भी आ रहा था, लेकिन फिर भी उसने जब बुद्ध ने कहा तो वे अकेले। गैलीलियो को कहा कि तुम क्षमा मांगो। अदालत में घुटने धर्म को छोड दें. विज्ञान को लें। गैलीलियो ने कहा, टेककर गैलीलियो ने क्षमा मांगी लेकिन वह आदमी भी बडा कोपरनिकस ने कहा तो अकेले। आइंस्टीन न कहा तो अकेले। गजब का था। उसने कहा कि मैं क्षमा चाहता हूं। आप कहते हैं, सारी दुनिया मानती थी सदियों से कि जमीन चपटी है। और शास्त्र कहते हैं तो सूरज ही चक्कर लगाता होगा, पृथ्वी खड़ी जब गैलीलियो ने कहा कि जमीन गोल है तो वह अकेला था। होगी। लेकिन एक बात मैं कहे देता हूं, मेरे कहने से कुछ भी नहीं सारी दुनिया मानती थी सदियों से कि सूरज ऊगता है, डूबता है। होता। लगा तो पृथ्वी ही चक्कर रही है। मेरे कहने से क्या अब भी सभी भाषाएं यही कहती हैं: सूर्यास्त, सूर्योदय; होगा? मैं क्षमा मांगता हूं। मेरा इसमें कुछ हाथ ही नहीं है। मैं सनराइज, सनसेट। गैलीलियो हो चुका, इससे भाषा में अभी थोड़े ही पृथ्वी को चलवा रहा हूं? तो मैं झंझट में नहीं पड़ना फर्क नहीं पड़ा है। तीन सौ साल हो गये, लेकिन भाषा अब भी | चाहता। लेकिन एक बात मैं कहे देता हूं कि मैं क्षमा मांगू या न गलत बोली जा रही है। मांगू, मैं कहूं या न कहूं—इससे क्या फर्क पड़ता है? गैलीलियो ने कहा, न सूरज ऊगता है न डूबता है-सूरज आदमियत माने या न माने, इससे क्या फर्क पड़ता है ? सूरज चलता ही नहीं। खयाल यह था कि सूरज पृथ्वी के चारों तरफ | खड़ा है पृथ्वी चक्कर लगा रही है। चक्कर लगाता है। दिखता है लगाता हुआ, इसमें कोई शक दुनिया में सत्य को जाननेवाले तो कभी-कभी होते हैं। भीड़ तो नहीं। अब भी खाली आंख से देखो तो लगता है कि चक्कर | असत्य को मानती है। लेकिन हमारे मन में एक धारणा है कि लगा रहा है। | जिसको बहुत लोग मानते हैं वह ठीक होना चाहिए। इतने लोग असलियत बिलकुल उलटी है : पृथ्वी चक्कर लगा रही है। मानते हैं! और हमारा कोई आत्मविश्वास तो है नहीं। सूरज खड़ा है। लेकिन हम पृथ्वी पर बैठे हैं तो हमको पृथ्वी का तो दूसरों से मत कहना। अन्यथा वे हंसेंगे। उनकी हंसी तुम्हारे चक्कर लगाना तो दिखायी पड़ नहीं सकता। इसलिए सूरज जीवन में जहर हो सकती है। वे तुम्हें पागल समझेंगे। उनका चक्कर लगाता हुआ दिखायी मालूम पड़ता है। समझना तुम्हें डगमगा सकता है। कभी तुमने खयाल किया? ट्रेन में तुम बैठे हो और दूसरी ट्रेन इसलिए ये बातें तो ऐसी हैं कि जो तुम्हारे ही रास्ते पर चल रहे बगल में खड़ी है। तुम्हारी ट्रेन चलती है तो लगता है दूसरी ट्रेन हैं और जिन्हें कुछ ऐसा होना शुरू हआ हो, उनसे कर लेना; तो चल पड़ी। चौंककर तुम्हें लगता है दूसरी ट्रेन चल रही है। तुम एक दूसरे के लिए सहयोगी बनोगे, सहारा बनोगे, बल दोगे, चलती तुम्हारी है, लेकिन तुम तो अपनी ट्रेन में बैठे हो। तुम भी आत्मबल विकसित होगा। और जितना आत्मबल बढ़ेगा उतनी उसके साथ चल पड़े, इसलिए पता नहीं चलता। दोनों की गति और घटनाएं संभव हो जायेंगी। बराबर है। लेकिन पास की ट्रेन खड़ी है। वह चलती हुई मालूम पड़ती है। आखिरी प्रश्नः मुझे इतना कुछ मिल रहा था कि उसका गैलीलियो ने कहा है कि सूरज खड़ा है, पृथ्वी चलती है। आनंद अंतर में समाता नहीं था। इतना आनंद, इतनी खुशी हजारों-हजारों साल से आदमी मानता था : पृथ्वी खड़ी है, सूरज कहां रखं, कैसे सम्हालूं-समझ में नहीं आता। और प्यास चलता है। लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। भी उतनी ही है। जिनकी कृपा से जीवन की संध्या में मुझे यह गैलीलियो को अदालत में ले जाया गया था। क्योंकि पोप सब मिल रहा है, उनसे पास होते हए भी दूर है। इन दो बातों के खिलाफ था, क्योंकि बाइबिल में तो लिखा है कि पृथ्वी खड़ी है। लिए पागल-सी जी रही थी। कुछ दिनों से सब चुप होने लगा और धर्मगुरु सदा डरते रहे हैं कि अगर शास्त्र की एक भी बात है। घंटों बैठी रहती हूं या लेटी रहती हूं। कुछ करने का मन गलत हो जाये तो लोगों में शक पैदा होगा। लोग सोचेंगे जब | नहीं होता। न कुछ बुरा लगता है और न अच्छा। प्रभु, यह एक गलत हो सकती है तो बाकी भी गलत हो सकती हैं। सब क्या हो रहा है? 528
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________________ रकम a मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत - शुभ हो रहा है। प्यास थिर हो रही है। प्यास गहरी हो रही है। है, कौन भगवान है। नदी जब उथली होती है तो शोरगल करती है। नदी जब गहरी रामकृष्ण अपने ऊपर ही फूल डाल लेते थे। भगवान को होती है तो शांत हो जाती है। इतनी शांत हो जाती है कि पता ही चढ़ाने जाते, खुद ही पर डाल लेते। भगवान को भोग लगाते, नहीं चलता कि चलती भी है या नहीं। खुद ही के मुंह में डाल लेते। लोगों ने शिकायत की कि यह तो गहरी नदी को देखा? थिर मालूम होती है। बस ऐसा ही हो कोई पूजा न हुई। ये तो पूजा का उल्लंघन है। रहा है। जो प्यास अब तक थोड़ी तरंगें भी पैदा करती थी, वह रामकृष्ण ने कहा, 'करूं क्या? भेद ही नहीं मालूम होता। और गहराई पर जा रही है। अब सब चुप हो रहा है। | यह मुंह भी अब उसी का! यह सिर भी उसी का। ये हाथ भी कुछ रोज ये भी रंग रहा इंतजार का, उसी के! ये फूल भी उसी के!' आंख उठ गयी जिधर बस उधर देखते रहे। कौन कौन है, पक्का पता नहीं चलता! आंख हटाना भी भूल जायेगा। विचार करना भी भूल इक तेरी तमन्ना ने कुछ ऐसा नवाजा है, जायेगा। ठगे-ठगे से! बैठे-बैठे। मांगी ही नहीं जाती अब कोई दुआ हमसे। कुछ रोज ये भी रंग रहा इंतजार का, अब यह जो घड़ी आ रही है, इस घड़ी में कुछ भी मांगना मत। आंख उठ गयी जिधर बस उधर देखते रहे। अब तो सिर्फ धन्यवाद, सिर्फ अहोभाव। उसे धन्यवाद देना ! ऐसी दीवानगी आयेगी, आ रही है। स्वागत करना उसका! जो भी वह दे, धन्यवाद देना। उदासी मालूम पड़े तो भी धन्यवाद पलक पांवड़े बिछाना उसके लिए! घबड़ा मत जाना। क्योंकि | देना; जल्दी उदासी शांति में परिणित हो जायेगी। ऐसा लगे, पहले-पहले जब शांति उतरती है तो लगती है उदासी है। क्योंकि उत्सव खो रहा है तो भी धन्यवाद देना। एक नया उत्सव शुरू हो हम उदासी से परिचित हैं, शांति से परिचित नहीं हैं। दोनों के | रहा है जो अभिव्यक्ति का नहीं है, जो अनभिव्यक्त है, जो शांत चेहरे में थोड़ा तालमेल है। है और मौन है। तो जब पहली दफे शांति आती है तो ऐसा लगता है कहीं ये तो मैं तुमसे कहता हूं, महावीर भी नाचे हैं, मीरा ही नहीं नाची। नहीं कि हम उदास हुए जा रहे हैं। पहले-पहले आनंद भी बाजे लेकिन मीरा का नाच बाहर भी आया, महावीर का नाच भीतर ही बजाता है। फिर धीरे-धीरे बाजे शांत होने लगते हैं, क्योंकि भीतर रह गया। इतना गहन है। बाजों का शोरगुल भी आनंद में बाधा है। फिर आनंद की एक जैसे देखा नील नदी है, इजिप्त में! कई मीलों तक जमीन के ऐसी घड़ी आती है जब उत्सव भी शांत हो जाता है। नीचे ही बहती है, दिखायी नहीं पड़ती। फिर प्रगट होती है। तो भीतर-भीतर, भीतर-भीतर रग-रोएं में समा जाता है। नाच भी | सदियां हो गयीं, लोगों को पता ही न था कि इसका जन्म-स्रोत नहीं होगा-नाच इतना गहरा हो जाता है। कोई क्रिया ऊपर कहां है, यह उदगम कहां है! क्योंकि कई मीलों तक तो वह दिखायी न पड़ेगी। जमीन के नीचे ही बहती है तो उदगम का पता कैसे चले? पहले तो शौके-दीद में सब कुछ भुला दिया मीरा ऐसी है जैसे नील नदी प्रगट हो गयी। और महावीर ऐसे अब में नजर को ढूंढ़ रहा हूं, नजर मुझे। | हैं जैसे नील नदी अभी जमीन के नीचे बहती है। नाच तो है ऐसी घड़ी आती है कि अपना ही पता नहीं चलता। ही-लेकिन नाच बड़ा मौन है, चुप है, बड़ा गरु-गंभीर है! पहले तो शौके-दीद में सब कुछ भुला दिया-पहले तो उस कठिनाई होगी। ये प्रतीक्षा के पल पीड़ा के पल भी होंगे। परमात्मा को देखने की आकांक्षा में सब भुला बैठे। लेकिन उस कभी-कभी तो ऐसा लगेगा, कुछ खो तो नहीं गया। पहले तो सब भुलाने में नजर भी खो जाती है। अब मैं नजर को ढूंढ़ रहा बड़े आनंदित मालूम हो रहे थे; वह आनंद भी चला गया। पहले हूं, नजर मुझे। अब कुछ समझ में नहीं आता कौन कहां है, कौन तो बड़े नाचे-नाचे मालूम पड़ते थे; वह पुलक चली गयी। कहीं कौन है? कुछ खो तो नहीं गया! आखिरी घड़ी में कुछ भी पता नहीं चलता भेद का : कौन भक्त | शबे-इंतजार की कशमकश न पूछ कैसे सहर हुई 529]
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________________ जिन सूत्र भाग: 14 कभी इक चिराग जला दिया, कभी इक चिराग बुझा दिया। अपनी झोली में घर से डाल लिए। देनेवालों के लिए थोड़ी मिलन की रात की कशमकश न पूछ और यह मत पूछ कि कैसे हिम्मत होती है कि चलो इसको औरों ने भी दिया है। तो भिखारी सुबह हुई! बड़ी मुश्किल हुई। कभी एक चिराग जला लिया, थोड़े-से पैसे अपनी थाली में डालकर बैठ जाता है। तो फिर बुझा दिया, फिर जला लिया, फिर बुझा दिया! ऐसी | निकलनेवाले को थोड़ा साहस रहता है कि कोई हम ही नहीं फंस उधेड़-बुन हुई। रहे हैं, और लोगों ने भी दिया है। तो थोड़ी लज्जत भी आती है, शबे-इंतजार की कशमकश न पूछ कैसे सहर हई | तो थोड़ी लज्जा भी लगती है, थोडा शर्म भी. संकोच भी लगता है कभी इक चिराग जला दिया, कभी इक चिराग बुझा दिया। कि अब और दे चुके हैं तो हम कोई इतने गये-बीते तो नहीं, चलो ऐसी कशमकश आएगी। घबड़ाना मत। बस एक ही खयाल एक पैसा दे दो! तो थोड़े-से चावल के दाने डालकर झोली में रखना कि जो भी हो रहा है, जो भी होता है-शुभ है। यही | भिखारी चला। राह पर आया, कभी सोचा भी न था। सपना भी तुम्हारी प्रार्थना हो अब कि जो भी हो रहा है, शुभ है। और तब न देखा था-राह पर आ रहा है उस महाराजा का रथ-स्वर्ण शुभ के नये-नये द्वार खलते जायेंगे। रथ, सूर्य की किरणों में चमकता हुआ! उसने सोचा, आज मेरे दिल से मिलती तो है एक राह कहीं से आकर, धन्यभाग, आज मेरे भाग्य खुल गये! आज तो झोली पसार दूंगा सोचता हूं ये तेरी राहगुजर है कि नहीं। और मांग लूंगा। अब राजा ही सामने आ रहा है, द्वार से कभी इस चिंता में मत पड़ना क्योंकि अब जल्दी ही दिल के पास जो भीतर जाने का मौका मिलता न था। द्वारपाल द्वार से ही भगा देते परमात्मा का रास्ता गुजरता है वह दिखायी पड़ेगा। सोच-विचार | थे। अब आप तो रास्ते पर मिल गये। में मत पड़ना। जब सब सन्नाटा हो जाता है, उत्सव भी चला तो वह बीच में खड़ा हो गया। रथ रुका। राजा न केवल उसे जाता है, आनंद भी चला जाता है और सब शांत हो जाता है और अपने पास बुलाया, खुद उतरकर नीचे आया। लेकिन राजा को आदमी ठगा-ठगा रह जाता है तभी हृदय के पास से जिसका पास देखकर वह घबड़ा गया। कभी राजा की सन्निधि नहीं की। रास्ता गुजरता है उसके दर्शन होते हैं। हम अपने करीब आये, याद ही न रही, अवाक ठगा रह गया। देखता रहा राजा के मुंह असंग हुए, निसंग हुए! यही संन्यास की पराकाष्ठा है। संसार की तरफ। और इसके पहले कि वह अपनी झोली फैलाये, राजा और बाहर का सब भूल गया! भीतर, भीतर, भीतर उतरते गये। | ने अपनी झोली फैला दी। और उसने कहा, मना मत करना, अपने केंद्र पर आये। वहां से गुजरती है राह परमात्मा की! तब | इनकार मत करना, क्योंकि मेरे ज्योतिषियों ने कहा है कि आज मैं संदेह में मत पड़ जाना क्योंकि ये मन में विचार, आखिरी विचार भीख मागू तो राज्य बचेगा, अन्यथा राज्य पर खतरा है।। यही आता है कि कहीं यह रास्ता सही है कि गलत। अब कठिनाई हम सोच सकते हैं : भिखारी जिसने कभी दिया दिल से मिलती तो है एक राह कहीं से आकर, नहीं, सदा मांगा! देने की कोई आदत ही नहीं। देने का कोई सोचता हूं ये तेरी राहगुजर है कि नहीं। संस्कार ही नहीं। वह बहुत घबड़ाया, लेकिन अब इनकार भी न यह मत सोचना। यह विचार करना ही मत। अब तो विचार | कर सका, क्योंकि राजा ने कहा, 'इनकार मत करना, पूरे राज्य को पूरा का पूरा ही त्याग दो। अब तो निर्विचार हो रहो। और जो पर खतरा है। कुछ भी दे दो, उसने हाथ भीतर डाला झोली के। | भी हो, उसको स्वीकार करते जाओ। धीरे-धीरे उसी रास्ते पर मुट्ठी बांधता है, खोलता है। कभी दिया तो है नहीं, देने की उसका रथ भी आयेगा। और जब वह रथ से उतरे और तुम्हारे आदत ही नहीं। बामुश्किल एक चावल का दाना निकालकर सामने अपनी झोली फैला दे तो कंजूसी मत करना। सब डाल उसने राजा की झोली में डाल दिया। रथ आया-गया हो गया, देना ! स्वाहा! सब डाल देना! धूल उड़ती रह गयी! वह तो खड़ा रह गया। उसने कहा, 'यह रवींद्रनाथ का एक गीत है। एक भिखारी सुबह-सुबह उठा। तो हद्द हो गयी। और गरीब कर गया! एक दाना और पास था, अपनी झोली को कंधे पर टांगकर भीख मांगने निकला। जैसा | वह भी ले गया!' ' कि भिखारी करते हैं, उसने भी किया। थोड़े-से चावल के दाने फिर सांझ घर लौटा भीख मांगकर। उस दिन खूब भीख 530
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________________ HARYALAL मांग नहीं- अहोभाव, मिली। ऐसी कभी न मिली थी। जो देता है उसे मिलती भी है। उस दिन घर लौटा। प्रसन्न होना चाहिए था, लेकिन थोड़ा उदास था। वह एक दाना कम था। घर आकर पत्नी ने पूछा, 'इतने उदास?' तो उसने कहा, 'क्या करूं? हद्द हो गयी। मिलने की आशा बांधी थी, वह तो दूर, और हमसे, हाथ से ले गया! भाग्य की विडंबना, मजाक तो देखो, व्यंग्य!' उसने झोली बड़ी उदासी से उड़ेली। देखकर चकित हुआ, एक दाना सोने का हो गया था। जो दिया था, वह सोने का हो गया था। छाती पीट-पीटकर रोने लगा। पत्नी तो कुछ समझी नहीं। उसने कहा, 'हुआ क्या है ? माजरा क्या है?' ‘लुट गये', उसने कहा, 'लुट गये! सारे दाने दे दिये होते, तो सारे दाने सोने के हो जाते। लेकिन अवसर आया, गया!' तो इतना ही कहता हूं, यह जो घड़ी पक रही है, इसको पकने देना। जल्दी ही हृदय के पास से उसकी राह मिलेगी। राह ही नहीं, उसका रथ भी आता है, स्वर्ण-रथ, सूर्य-किरणों में चमकता! उस वक्त मांगने का मन होगा, क्योंकि हम सदा भिखमंगे रहे हैं। मांगना मत! और अगर वह झोली तुम्हारे सामने फैलाये, जैसी कि उसने सदा ही फैलायी है, तो दे देना! तब ऐसा मत करना कृपणता, कंजूसी कि एक दाना डाल देना; अन्यथा फिर रोओगे जन्मों-जन्मों तक! क्योंकि फिर कब दुबारा उसका रथ मिलेगा कहना मुश्किल है। सब दे डालना। झोली और तुम स्वयं भी छलांग लगा जाना, ताकि सब स्वर्णमय हो जाये। सब स्वर्णमय हो सकता है। होना चाहिए। हम बाधा न दें तो हो जाये, अभी हो जाये। चिंता-विचार न करना। शुभ हो रहा है! सब शांत होता जा रहा है। जल्दी ही रथ आने के करीब है। उस घड़ी की अहोभाव से प्रतीक्षा! कठिन होगी प्रतीक्षा। दीया जलेगा, बुझेगा। जलाओगे, बुझाओगे। गुजार देना रात! घबड़ाना मत। जितनी प्रतीक्षा पीड़ादायी होगी, उतना ही मिलन आनंददायी है। आज इतना ही।