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________________ जिन सूत्र भागः1 ही यह प्रेम भी तुम्हें दिया? | तुम पाओगेः सब कविताएं फीकी हैं। जीवन को थोड़ा परखो! फिर से छानो! फिर से विश्लेषण __ जिस दिन तुम्हारा जीवन गीत गुनगुनाएगा, उस दिन तुम करो। तुम पाओगे: कोई करवा रहा है। पाओगे : सब कविताएं कूड़ा-कर्कट हैं। यह खयाल तो बड़ा अच्छा है अगर ध्यान बन जाये। और और घबड़ाना मत! ध्यान से मेरा अर्थ है, अगर यह खयाल स्थिर भाव बन जाये, | दीया अगर बुझा है तो इसे इस तरह देखना कि यह जलने के तुम्हारा बोध बन जाये। लिए प्रतीक्षा है। बुझे को निराशा मत बना लेना। ऐसा मत बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है, सोचना : 'अब क्या करें? अंधेरा सघन है। दीया बुझा है।' हम नहीं आये यहां, कोई हमें लाया है! हाथ-पैर रोककर गिर मत पड़ना। थक मत जाना! इतने पर ही सारा धर्म पूरा हो जाता है-अगर तुम्हें ये समझ में हम जिसको मौत समझते हैं पैगामे-हयाते-जदीद है वोह आ जाये कि कोई हमें लाया है: कोई हमें ले जायेगा: कोई हमारे / ये फूल चमन में जितने हैं, फिर खिलने को मझाते हैं। भीतर श्वास ले रहा है। कोई हमारे भीतर जी रहा है। तो तुम जिसको हम मौत कहते हैं, वह भी मौत नहीं। वह भी नये अकर्ता भाव को उपलब्ध हो गये। फिर तुम कर्ता नहीं हो। | जीवन का संदेश है। और जब तुम कर्ता नहीं हो तो तुम्हारी सारी जीवन-ऊर्जा साक्षी ___ हम जिसको मौत समझते हैं, पैगामे-हयाते-जदीद है वोह बन जायेगी। कर्ता में नियोजित है जीवन-ऊर्जा, करने में लगी ये फूल चमन में जितने हैं, फिर खिलने को मुहते हैं। है। अगर करने से तुम्हारा हाथ अलग हो जाये ऐसा नहीं कि कर्म जो फूल मुझ गया, उसमें तुम नये खिलनेवाले फूल की छवि बंद हो जायेगा; कर्म तो चलेगा-और सुडौल चलेगा; और देखना। यहां सब फिर से खिलने को मुाता है। अगर दीया शुभ चलेगा। भूल-चूक कम हो जायेगी, क्योंकि तुम्हारे कारण | बुझा है तो जलने को ही प्रतीक्षा कर रहा है कि जले।। जो बाधा पड़ती थी वह भी मिट जायेगी। अबाध उसकी धारा इसे निराश होने का कारण मत बना लेना। वस्तुतः यही तो तुमसे बहने लगेगी। कर्म तो चलता रहेगा। वह तो उस आशा की किरण है, कि तुम्हारा दीया अभी बुझा है। जल सकता चलानेवाले पर है। वह तो पूर्ण पर है। लेकिन तुम, तुम्हारी ऊर्जा है। कुछ होने को बाकी है। यही तो आशा की किरण है कि सब बचेगी। वही ऊर्जा संगृहीत होकर साक्षी-भाव बनती है। वही हो नहीं गया है। जो हुआ है वह क्षुद्र है। जो नहीं हुआ है वह ऊर्जा समाधि बनती है। विराट है। वह विराट अभी प्रतीक्षा कर रहा है। वह होने को है। किसने नन्हा-सा मुहब्बत का ये जलाकर दिया यही तो जीवन की संभावना, उत्फुल्लता है, प्रसाद है, कि कुछ दिले-वीरां के अंधेरे पे तरस खाया है। होने को है। और वही ऊर्जा, वही समाधि दीया बनेगी। वही जलेगी तो तुम तो पैर में तुम घुघर बांध सकते हो और नाच सकते हो। और प्रकाशित होओगे। जब तक ध्यान की ज्योति न जले भीतर, तुम जो होने को है वह सबसे बड़ा है। जो हो चुका है, जो हुआ है प्रकाशित न हो सकोगे। और ध्यान की ज्योति बाहर से भीतर जन्म, जो हुआ है देह का मिलना, जो हुआ है धन-संपत्ति, नहीं डाली जा सकती-अंतर्तम में ही खिलती है। पद-प्रतिष्ठा-वह सब छोटा है। जो होने को है-ध्यान, जैसे वृक्षों में फूल लगते हैं तो वृक्ष में रसधार बहती है-उसी समाधि, मोक्ष-वह विराट है। जो हुआ है वह ना-कुछ है। जो रसधार के आखिरी छोर पर रंगीन फूलों का जन्म होता है। ऐसे होने को है वह सब कुछ है। इसे आशा का संचार समझना। इसे ही तुम्हारे जीवन के वृक्ष में रसधार बह रही है। वही रसधार जब | समझना जीवन का संदेश। कती है, समाधि के फल खिलते हैं। तब तुम्हारे और एक बार तुम्हारे भीतर आशा पैदा हो जाये और तम भीतर दीया जलेगा। | निराश न रह जाओ, हताश न बैठ जाओ, तुम्हारी जीवन ऊर्जा कविताओं को गुनगुनाकर भूल में मत पड़ जाना। कविताएं उठ बैठे, आशा से भरपूर-तो रसधार बहने लगी! फूल प्यारी हैं। लेकिन जब तुम्हारा जीवन का काव्य निर्मित होगा तब खिलेंगे। दीये भी जलेंगे। 520 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340124
Book TitleJinsutra Lecture 24 Mang Nahi Ahobhav Ahogati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size28 MB
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