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________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत. यह तेरा तसव्वुर है या तेरी तमन्नाएं कठिन होगा। संघर्षण होगा। लेकिन उसी संघर्षण में तुम दिल में कोई रह-रहके दीपक-से जलाए है। जागोगे, आंख खुलेगी। यह तेरा तसव्वुर है या तेरी तमन्नाएं और अच्छा है कि आंख खुलते-खलते ही दीया भी जले। दिल में कोई रह रहके दीपके-से जलाए है। कोई दूसरा जला दे दीया तो तुम आंख न खोलोगे। जरा तुम्हारे भीतर आशा उठे तो उसका तसव्वुर, उसकी / ऐसा मैंने सुना है, एक पुरानी चीनी कथा है, एक किसान ने तमन्ना, उसकी खोज के लिए पैर आगे बढ़ने लगे। उसकी खोज / परमात्मा से बड़े दिनों तक प्रार्थना की कि 'हे प्रभु! तुझे करनी है जिसने तुम्हें भेजा है। उसकी खोज करनी है जहां से तुम खेती-बाड़ी का कुछ पता नहीं। जब पानी चाहिए तब पानी नहीं; आये हो। अगर हिंदुओं की भाषा का उपयोग करना हो तो कहोः जब पानी नहीं चाहिए, तब बेतहाशा पानी! बाढ़ भेज देता है! उसकी खोज करनी है, जिसने तुम्हें भेजा है। अगर जैनों की भाषा तुझे कुछ समझ नहीं। तूने कभी खेती-बाड़ी नहीं की। ओलों की का उपयोग करना है तो कहो : उसकी खोज करनी है, जहां से तुम क्या जरूरत है ? जब धूप चाहिए तब धूप नहीं।' आये हो। मूल-स्रोत की! जीवन के मूल-बिंदु की, जहां से आखिर परेशान हो गया परमात्मा भी सुन-सुनकर। उसने सारा विस्तार हुआ है। | कहा, 'आखिर तू चाहता क्या है?' उस किसान ने कहा कि जरा-सा भी तुम्हारे भीतर उसकी खोज का अंकुर पड़ | एक साल मुझे मौका दें। आखिर जिंदगी हो गयी खेती-बाड़ी जाये-दिल में कोई रह-रहकर दीपक-से जलाए है। तो करते हुए। मुझे पता है, तूने कभी खेती-बाड़ी की भी नहीं। एक पल-पल दीये पर दीये, दीयों की पंक्तियां, दीप-मालाएं जल साल जो मैं चाहूं, वैसा हो।' उठेगी। तुम्हारा रास्ता ज्योतिर्मय हो जायेगा। परमात्मा ने कहा, 'चल यही सही।' लेकिन इस ज्योतिर्मय के पहले जोखिम उठानी पड़ेगी। अगर एक साल ऐसा हुआ कि किसान जब धूप चाहता तब धूप; जोखिम न उठायी तो कवि रह जाओगे; अगर जोखिम उठायी तो जब पानी चाहता तब पानी। बड़ी फसल उठी। ऐसी कभी न ऋषि हो जाओगे। जोखिम उठानी पड़ेगी। जोखिम है उस सब उठी थी। गेहूं की बालें इतनी बड़ी-बड़ी हुईं कि किसान ने कहा, को खोने की, जो अंधेरे में ही मिलता है और अंधेरे में ही मिल 'अब देखो! सालभर के बाद दिखलाऊंगा कि क्या तुम अब सकता है। अंधेरे के सारे के सारे व्यवसाय को खोने की जोखिम | तक परेशान करते रहे संसार को!' आदमियों के सिरों के ऊपर शर्त है-दीये के जलने की। चली गयीं। फिर वक्त आया फसल काटने का। फसल काटी दीया जल सकता है। कीमत चुकाने को राजी हो जाओ। मुफ्त गयी। बालें तो बहुत बड़ी-बड़ी थीं, लेकिन गेहूं उनमें न थे। वह वह दीया नहीं जलेगा। और अच्छा है कि मुफ्त नहीं जलता। किसान बड़ा हैरान हुआ कि यह मामला क्या हुआ! उसने प्रभु क्योंकि मुफ्त जल जाता तो कोई रस न होता। मुफ्त जल जाता | को कहा, 'हे प्रभु! समझे नहीं-धूप जब चाहिए तब धूप दी। तो तुम धन्यवाद भी अनुभव न करते। मुफ्त जल जाता तो तुम वर्षा जब चाहिए तब वर्षा दी। वर्षभर ठीक मेरे हिसाब से सब प्रौढ़ ही न हो पाते। मुफ्त जल जाता तो तुम जाग ही न पाते। तो चला। और बालें इतनी ऊंची गयीं, कभी न गयी थीं। किसी ने दीया भी जलता रहता और तम कमरे में अंधेरे में ही रहते। तम देखी न थीं इतनी ऊंची बालें। लेकिन मामला क्या है? अंदर आंख बंद किये सोये रहते। | कोई गेहूं नहीं है! दीये के जलने से ही थोड़े ही रोशनी हो जाती है-आंख भी तो तो परमात्मा हंसा और उसने कहा, 'तूने सिर्फ धूप मांगी, पानी खुली होनी चाहिए। सूरज भी निकल आये और तुम आंख बंद मांगा, ओले नहीं मांगे, तूफान नहीं मांगा, आंधी नहीं मांगी। किये पड़े रहो तो तुम अंधेरे में रहोगे। छोटी-सी दो पलकें इतने | आंधी और तूफान के बिना भीतर का सत्व संगृहीत नहीं होता। बड़े सूरज को नकार देती हैं। तो बालें बड़ी हो गयीं लेकिन भीतर प्राण संग्रहीत न हुए।' तो चनौती स्वीकार करो! दीया जल सकता है-इस आशा से संघर्ष के बिना कहीं प्राण संगृहीत हुए हैं? उद्वेलित होओ। उठो! तो अगर तुम्हें मुफ्त मिल जाता होता भीतर का दीया भी तो 5211 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340124
Book TitleJinsutra Lecture 24 Mang Nahi Ahobhav Ahogati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size28 MB
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