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________________ जिन सत्र भागः1 सकता है, मिलेगा--तब तक तुम स्थगित करोगे, दीये को तम्हारे प्रकाश की आकांक्षा अंधेरे के विपरीत नहीं है-अंधेरे जलने न दोगे। तब तक तुम रोशनी से डरोगे। अगर रोशनी आ को छिपाने का उपाय और व्यवस्था है। जाये तो तुम पीठ कर लोगे। तुम हजार तर्क, विचार खोज लोगे तुम प्रकाश का खूब शोरगुल मचाते हो, आंसू बहाते हो, रोशनी से बचने के। तुम कहोगे, यह तो रोशनी आंखों को चिल्लाते हो, 'प्रकाश चाहिए', ताकि सारी दुनिया देख ले कि तिलमिलाती है, कि यह रोशनी तो हमारी सारी व्यवस्था को | अगर अंधेरा है तो तुम जिम्मेवार नहीं हो। तुम तो प्रकाश का डगमगाये देती है, कि यह रोशनी तो असुरक्षित कर देगी। हम कितना गुणगान कर रहे हो। भले, हमारा अंधेरा भला! बर्टेड रसेल ने लिखा है, जगत में बड़ी अजीब विडंबना है: लेकिन बेईमानी ऐसी है कि तुम अगर इसे भी साफ देख लो तो यहां जो आदमी जितना अनैतिक होगा, उतनी ही नीति की चर्चा भी रास्ता बन जाये। तुम साफ कह दो कि 'हम अंधेरे में ही करेगा। क्योंकि नीति की चर्चा से वह एक हवा पैदा करता है, जीयेंगे! बंद करो प्रकाश की बातचीत ! हमें कुछ लेना-देना नहीं जिससे पता चल जाये कि और कोई हो अनैतिक, मैं तो कम से है। लेकिन तुम उतने ईमानदार भी नहीं हो। कम नहीं हूं। जब कोई प्रकाश की बात करता है तो तुम इतने स्पष्ट भी नहीं यहां अभी किसी की जेब कट जाये तो जो आदमी जेब काटे, हो कि कह सको कि 'बंद! यह बात से हमें कुछ लेना-देना नहीं | अगर उसमें थोड़ी भी अकल हो तो उसको बड़ा शोरगुल मचाना है। हम अंधेरे में जीना चाहते हैं और अंधेरे में ही जीयेंगे। और चाहिए कि जेब कट गयी, पकड़ो चोर को। दौड़-धूप करनी अंधेरा हमारा सुख है।' चाहिए। एक बात निश्चित है, उसको कोई भी न पकड़ेगा। यह भी तुम नहीं कह पाते। तुम यह भी दिखलाना चाहते हो क्योंकि उसने अगर चोरी की होती और जेब काटी होता तो वह तो कि तुम प्रकाश के प्रेमी हो। तम यह भी दिखलाना चाहते हो कि | भाग गया होता। वह तो यहां बीच में खड़ा रहेगा। वह तो चोरी तुम शुभ के पक्षपाती हो। के खिलाफ बोलने लगेगा। एक बहरा आदमी रोज सुबह चर्च जाता था। रविवार को वह दो आदमी मछली मार रहे थे। और तभी उस सरोवर का सबसे पहले पहुंच जाता था और पहली पंक्ति में बैठता था। वह निरीक्षक आ गया। एक आदमी भाग खड़ा हुआ। तो वह उसके बज्र बधिर था। उसे न तो प्रवचन में कुछ सुनायी पड़ता न समझ | पीछे भागा। कोई दो मील जाकर हांफते-हांफते उसको पकड़ में आता। न संगीत चर्च में होता, वह उसको सुनायी पड़ता। पाया। और जब पकड़ पाया तो उसने जल्दी से खीसे से एक दिन एक आदमी ने पूछा कि 'तुम इतने जल्दी आते | निकालकर लाइसेंस बता दिया। उसको मछली मारने का हक किसलिए हो? रोज तुम चर्च चले आते हो, मीलों चलकर। था। तो उस आदमी ने कहा कि 'अरे नासमझ! तो फिर भागा तुम्हें कुछ सुनायी तो पड़ता नहीं। न तुम संगीत सुन सकते हो, न क्यों?' तो उसने कहा कि इसीलिए कि दूसरे के पास लाइसेंस तुम प्रवचन सुन सकते हो, तो तुम आते किसलिए हो?' नहीं है। वह आदमी हंसने लगा। उसने कहा कि मैं जतलाने आता हूं लोग बड़ी होशियारी से चल रहे हैं। कि सारी दुनिया देख ले कि मैं किस पक्ष में हूं। और परमात्मा भी तुम प्रकाश की खूब बातचीत करते हो ताकि एक बात तो नोट कर ले कि मैं कोई सांसारिक आदमी नहीं हूं। धार्मिक हूं! | निश्चित हो जाये कि तुम प्रकाश के आकांक्षी, अभीप्सु! तो तुम्हें तो तुम यह मोह भी नहीं छोड़ पाते कि तुम धार्मिक हो। धर्म के | कोई सोच भी न सकेगा कि तुम और अंधेरे का व्यवसाय करते साथ बड़ी प्रतिष्ठा जुड़ी है। धर्म के साथ बड़ा बल जुड़ा है, होओगे। आसानी से लोग फंस जायेंगे तुम्हारे व्यवसाय में। तुम प्रभुत्व जुड़ा है। वस्तुतः तुम जितने बेईमान होते हो उतने ही जेबें ज्यादा सुगमता से काट सकोगे। बेई धार्मिक दिखलाने की चेष्टा करते हो। क्योंकि बेईमानी को धार्मिक होना जरूरी है। दुकान ठीक चलानी हो तो मंदिर जाना छिपाने का इससे अच्छा कोई उपाय नहीं। प्रकाश की आकांक्षा | जरूरी है। मंदिर जाना दुकान के ठीक चलने का हिस्सा है। करके अंधेरे को ढांकते हो, छिपाते हो। दुकानदार भी खाते-बही लिखता है तो ऊपर लिखता है, 'श्री 516 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340124
Book TitleJinsutra Lecture 24 Mang Nahi Ahobhav Ahogati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size28 MB
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