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________________ HARYALAL मांग नहीं- अहोभाव, मिली। ऐसी कभी न मिली थी। जो देता है उसे मिलती भी है। उस दिन घर लौटा। प्रसन्न होना चाहिए था, लेकिन थोड़ा उदास था। वह एक दाना कम था। घर आकर पत्नी ने पूछा, 'इतने उदास?' तो उसने कहा, 'क्या करूं? हद्द हो गयी। मिलने की आशा बांधी थी, वह तो दूर, और हमसे, हाथ से ले गया! भाग्य की विडंबना, मजाक तो देखो, व्यंग्य!' उसने झोली बड़ी उदासी से उड़ेली। देखकर चकित हुआ, एक दाना सोने का हो गया था। जो दिया था, वह सोने का हो गया था। छाती पीट-पीटकर रोने लगा। पत्नी तो कुछ समझी नहीं। उसने कहा, 'हुआ क्या है ? माजरा क्या है?' ‘लुट गये', उसने कहा, 'लुट गये! सारे दाने दे दिये होते, तो सारे दाने सोने के हो जाते। लेकिन अवसर आया, गया!' तो इतना ही कहता हूं, यह जो घड़ी पक रही है, इसको पकने देना। जल्दी ही हृदय के पास से उसकी राह मिलेगी। राह ही नहीं, उसका रथ भी आता है, स्वर्ण-रथ, सूर्य-किरणों में चमकता! उस वक्त मांगने का मन होगा, क्योंकि हम सदा भिखमंगे रहे हैं। मांगना मत! और अगर वह झोली तुम्हारे सामने फैलाये, जैसी कि उसने सदा ही फैलायी है, तो दे देना! तब ऐसा मत करना कृपणता, कंजूसी कि एक दाना डाल देना; अन्यथा फिर रोओगे जन्मों-जन्मों तक! क्योंकि फिर कब दुबारा उसका रथ मिलेगा कहना मुश्किल है। सब दे डालना। झोली और तुम स्वयं भी छलांग लगा जाना, ताकि सब स्वर्णमय हो जाये। सब स्वर्णमय हो सकता है। होना चाहिए। हम बाधा न दें तो हो जाये, अभी हो जाये। चिंता-विचार न करना। शुभ हो रहा है! सब शांत होता जा रहा है। जल्दी ही रथ आने के करीब है। उस घड़ी की अहोभाव से प्रतीक्षा! कठिन होगी प्रतीक्षा। दीया जलेगा, बुझेगा। जलाओगे, बुझाओगे। गुजार देना रात! घबड़ाना मत। जितनी प्रतीक्षा पीड़ादायी होगी, उतना ही मिलन आनंददायी है। आज इतना ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340124
Book TitleJinsutra Lecture 24 Mang Nahi Ahobhav Ahogati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size28 MB
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