________________ जिन सुत्र भागः1 - के क्षण में अचानक तुम पाते हो वही है मौजूद! उसने ही तुम्हें लग जायेंगे। सब तरफ से घेरा है। उसके अतिरिक्त और कोई भी नहीं। 'दर्शन' वहां है जहां सम्हालकर चलना होगा प्रतिपल। और उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है! रोज-रोज सम्हालने को ज्यादा सम्हालना होगा। ज्यादा गुल में, शफक में, दामने-अब्रे-बहार में सावधानी, सावचेती। देखा जो मैंने आए नजर तुम जगह-जगह। इन पीड़ा के क्षणों को अगर ठीक से पार कर लिया तो मंदिर संध्या की लाली में देखा, कि वसंतों की वर्षा में देखा! ज्यादा दूर नहीं है, पास ही है-कुहासे में ढंका है। गुल में, शफक में, दामने-अब्रे-बहार में देखा जो मैंने आए नजर तुम जगह-जगह। तीसरा प्रश्न : कल जिस क्षण आपने कहा कि 'महावीर ने वही दिखायी पड़ने लगेगा। ऐसा अहोभाव हो कि कहीं मन के स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, वह मूल्य किसी और ने कोने-कातर में भी सरकती कोई शिकायत न रह जाये, उसके | नहीं दिया' उस क्षण मैं आपको निहारता ही रहा। क्या कर दुख भी स्वीकार हों, उसकी पीड़ा भी स्वीकार हो। उसने दी दिया आपने? मैं अपनी अभव्यता देखता रहूं, अल्पता देखता पीड़ा, इस योग्य समझा। यही क्या कम है! ऐसे भाव में मंदिर | रहूं, और आपको निहारता रहूं, शीश नवाता रहूं! निर्मित होता है। ऐसे भाव की दशा में भक्त निर्मित होता है। और 'दर्शन' जल्दी ही उस दशा को उपलब्ध हो सकती है। सुना यदि शांत मन से तो कभी-कभी ऐसे झरोखे खुलेंगे। लेकिन जितने हम करीब पहुंचते हैं, उतना ही खतरा भी बढ़ता महावीर ने तो कहा है कि अगर कोई ठीक से सुन ले तो मात्र है। जो जमीन पर चलते हैं, समतल जमीन पर, उनके गिरने का | श्रवण से भी पार हो जाता है। इसलिए महावीर ने कहा कि मेरे कोई भी डर नहीं। लेकिन जो पहाड़ की ऊंचाइयों पर चढ़ते हैं, | चार तीर्थ हैं, चार घाट हैं जिनसे लोग उस पार जा सकते हैं: गिरने का डर भी उसी के साथ-साथ बढ़ता जाता है। गिरे तो बुरी | श्रावक, श्राविका, साध्वी, साधू।। तरह गिरेंगे। इसलिए जितनी ऊंचाई आती है, उतने ही | / श्रावक-श्राविका का अर्थ होता है। जिन्होंने ठीक से सना, सम्हलकर और सावधान होकर चलने के क्षण आते हैं। जमीन श्रवण किया। सिर्फ सुनकर कोई पार जा सकता है? निश्चित पर गिरे भी तो क्या गिरे, फिर उठकर खड़े हो जायेंगे। ही। लेकिन सिर्फ सुनने को कोई छोटी घटना मत समझना। मैंने सुना है, बायजीद एक गांव के पास से गुजर रहा था। सिर्फ सुनना बड़ी घटना है—करने से भी बड़ी घटना है। करना उसने एक शराबी को देखा, जो डगमगाता चल रहा था! | तो आसान है, सुनना कठिन है। क्योंकि ठीक सुनने का अर्थ है : बायजीद ने उसे पकड़ा और कहा कि, 'सुन पागल! कितनी पी | जब तुम्हारे भीतर कोई विचार की तरंग न हो; तभी तुम वह सुन रखी है? कुछ होश सम्हाल! गिर पड़ेगा तो कीचड़ मची है, पाओगे जो कहा जा रहा है। अगर विचारों की तरंगें हैं तो तुम सब कपड़े खराब हो जायेंगे।' वही सुन लोगे जो तुम्हारी विचार की तरंगें व्याख्या करेंगी। उस शराबी ने आंख खोली और हंसने लगा। उसने कहा, मैं यहां बोल रहा हूं। तुम वहां सोच भी रहे हो। तो मिश्रित 'बायजीद! हम अगर गिरे तो कपड़े ही खराब होंगे; तुम अगर | होगा सुनना। मेरे कहे पर तुम्हारे विचारों की खोल चढ़ जायेगी। गिरे तो...?' मेरे कहे पर तुम्हारे विचारों का रंग बिखर जायेगा। तुम वही बायजीद बड़ा सूफी फकीर था, बड़ा संत था। समझ लोगे जो तुम समझ सकते थे; वह नहीं जो मैंने कहा था। 'तुम अगर गिरे तो?' तो कभी-कभी ऐसी घड़ी घटेगी सुनते-सुनते कि तुम उस तो कहते हैं, बायजीद ने उसके चरण छुए और कहा कि ठीक जगह पहुंच जाओगे जिसको महावीर श्रावक का तीर्थ कहते हैं। समय पर तूने मुझे चेताया। अगर हम गिरे तो कपड़े तो दूर, श्रवण के घाट पर पहुंच जाओगे! अचानक! तब क्या मैं कह आत्मा तक खराब हो जायेगी। तू गिरा तो सुबह नहा-धोकर रहा हूं, यह सवाल नहीं है कोई भी शब्द, भाव-भंगिमा मात्र, ठीक हो जायेगा, यह भी सच है। अगर हम गिरे तो जन्म-जन्म तुम्हारे भीतर कोई झरोखा खोल देगी! कोई द्वार जो बंद पड़ा था 524 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org