Book Title: Yogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Author(s): Nainmal V Surana
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 405
________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-३७८ वीर थई अरि पूठे धाय, परि हतो ते नाठो जाय, गयो मामलो। वीरजी सन्मुख कोई न थाय, रत्नत्रयसु मलबा जाय, चेतन सांभलो ॥ २ ॥ • परिबल हवे नथी कांई रे, निज स्वभावमां महाल्यो विशेष, चेतन० निरखण लाग्यो निज घर मांय, तब विसामो लीधो त्यांय, चेतन० ॥ ३ ।। हवे पर घरमां कदीय न जाऊँ, पर ने सन्मुख कदीय न थाऊँ, चेतन एम विचारी थयो घर राय, तब पर परणति रोती जाय, चेतन० ॥ ४ ॥ मुनिवर करुणारस भंडार, दोषरहित हवे ले छे अाहार, चेतन द्रव्य थकी चाले छे एम, पर परणति नो लीधो नेम, चेतन० ॥ ५ ॥ द्रव्य भाव सु जे मुनिराय, समिति स्वभाव मां चाल्या जाय, चेतन० 'आनंदघन' प्रभु कहिया तेह, दुष्ट विभाव ने दीधो छेह, चेतन० ॥ ६ ॥ ४. प्रादान - निक्षेपण समिति के ढाल ४ * (जगत गुरु हीरजी रे......) चोथी समिति आदरो रे, आदान निखेवण नाम । प्रादान ने जे आदर करे रे, निज स्वरूप ने तेम ।। स्वरूप गुण धारजो रे, धारजो अक्षय अनंत, भविक दुख वारजो रे ॥ १॥

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