Book Title: Yogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Author(s): Nainmal V Surana
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 442
________________ 'श्रीआनन्दघनर्जी अर्थात् दिव्य विभूति के दर्शन! श्रीआनन्दघनजी अर्थात् अध्यात्म-दृष्टि का तेज-पूज! श्रीआनन्दघनजी अर्थात् अध्यात्म-योग की साधना! श्रीआनन्दघनजी अर्थात् अध्यात्म-योगी का तेजोमय दर्शन!' उन्होंने कहा था 'अवधू क्या माँगू गुन-हीना, वे गुन-गान न प्रवीना' उनका निरन्तर रटन था - हे प्रभु! मैं तुझसे क्या सहायता मागू? मेरे पावों में बन्धन है, सिर पर बोझा है, मैं मार्ग से अनभिज्ञ हू, पंथ अत्यन्त कठिन है, मेरे पास कोई साधन नहीं हैं। प्रभू! तू अपनी कृपा की एक बद की मुझ पर भी वृष्टि कर, ताकि मेरा आत्मपद तेरे आत्मपद में सम्मिलित होकर आनन्द-पद प्राप्त करे ऐसे अध्यात्मयोगी श्रीमद् आनन्दघनजी को कोटि-कोटि वन्दन कानमल मानमल सिंघवी, मेड़ता शहर (राज.).

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