Book Title: Yogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Author(s): Nainmal V Surana
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 427
________________ योगिराज श्रीमद् अानन्दघनजी एवं उनका काव्य- ४०० श्रीमद् में अक्षय लब्धि की एक झलक- जब श्रीमद् आनन्दघन जी मेड़ता में निवास करते थे तब वहाँ लखपति एवं करोड़पति नागरिक बसते थे। उस समय मेड़तिये राजपूतों का वैभव उच्च कोटि का था। उस समय वहाँ ऊँची-ऊँची हवेलियाँ थीं। वहाँ चौरासी गच्छों के भव्य उपाश्रय विद्यमान थे जहाँ अनेक यति स्वधर्म-परायण बनकर आत्म-कल्याण करते थे। वहाँ मेड़ता की निवासिनी एक श्राविका का श्रीमद् के प्रति धार्मिक राग था। उस श्राविका के पति का तो देहान्त हो गया था और उसके पुत्र थे । उसके पास करोड़ों रुपये एवं बहुत सी स्वर्ण-मुद्राएँ थीं। एक बार जोधपुर के महाराजा को युद्ध के अवसर पर धन की अत्यन्त आवश्यकता हुई । जोधपुर राज्य के सिपाही धनवान सेठों से धन प्राप्त करने के लिए मेड़ता आये। सिपाहियों ने श्राविका के मकान के चारों ओर घेरा डाला। वे राजा के लिए धन माँग रहे थे। श्राविका भयभीत होकर श्रीमद् आनन्दघन जी के पास आई। श्राविका को उदास देखकर श्रीमद् ने उसे उदासी का कारण पूछा। श्राविका ने समस्त वृत्तान्त बताते हुए अपने कष्ट की बात कही और निवेदन किया कि आप जैसे समर्थ गुरु के होते हुए मुझ पर ऐसी आपत्ति आये यह उचित नहीं है। आप कृपा करके कोई ऐसा उपाय बतायें कि मैं इस कष्ट से मुक्त हो सकू । श्रीमद् ने श्राविका को प्रत्येक प्रकार के सिक्के अलग-अलग घड़ों में भर कर लाने को कहा। श्राविका ने स्वर्णमुद्रात्रों और रुपयों को अलग-अलग घड़ों में भर कर श्रीमद् के पास रखा । श्रीमद् ने उन घड़ों पर कपड़ा बँधवा दिया और मंत्रोच्चार के साथ उन पर अपना हाथ फिराया और श्राविका को कहा कि इन्हें तू अपने घर ले जा। इन घड़ों में से सिपाही माँगे उतना घन तू हाथ से निकाल कर देती रहना। श्राविका घड़े अपने घर ले गई और उनमें से रुपये और स्वर्ण-मुद्राएँ सिपाहियों को देती रही । बैलगाड़ियाँ भर-भर कर रुपये तथा स्वर्ण-मुद्राएँ सिपाही ले गये तो भी उन घड़ों में से रुपये तथा स्वर्ण-मुद्राएँ बराबर निकल रही थीं। सिपाही गाड़ियाँ भर-भर कर अपार धन जोधपुर ले गये। जब श्राविका धन दे चुकी तब उसने घड़ों में हाथ डालकर देखा तो प्रत्येक घड़े में एक-एक सिक्का था। अत: उसके आश्चर्य का पार नहीं रहा। श्रीमद् आनन्दघन जी का यह चमत्कार देखकर उसके मन में उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति बढ़ गई। जब यह समाचार सर्वत्र फैल गया तो लोगों के मन में श्रीमद् आनन्दघन जी के प्रति विशेष राग उत्पन्न हो गया। लोगों में चर्चा होने लगी कि इस काल में भी ऐसे चमत्कारी महामुनि विद्यमान हैं। ।

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