Book Title: Yogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Author(s): Nainmal V Surana
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 416
________________ श्री प्रानन्दघन पदावली-३८६ । कौड़ी कौडी कर एक पइसा जोड्या, जोड्या लाख पचासा । जोड़ जोड़ कर काठी कीनी, संग. न चल्या इक मासा । कूडी० ॥ ३ ॥ केइ नर विणजे सोना रूपा, केइ विणजे जुग सारा । 'प्रानन्दघन' प्रभु तुमकु विणज्या जीत गया जुग सारा। कूडी० ॥ ४ ॥ (९) प्यारा गुमान न करिये, संतो गुमान न धरिये ।। प्यारा० ॥ थोड़े जीवन तें मान न करिये, जनम जनम करि गहिये । प्यारा० ।। १ ।। इस गन्दी काया के मांही, ममता तज़ रहिये । । . प्यारा० ।। २ ।। 'प्रानन्दघन' चेतन में मूरति, भक्तिसुचित हित धरिये । प्यारा० ॥ ३॥ (१०) राग - काफी - नेना मेरे लागे री, श्याम सुन्दर ब्रजमोहन पिय सु, . नैना मोरे लागे री। बिन देखे नहीं चैन सखी री, निश दिन एक टक जागे री। नैना लोकलाज कुल कान बिसारी, ह्वां ही सों मन लागे री। नैना० 'पानन्दघन' हित प्राण पपीहा, कुहकर प्राण पागे री । नैना०

Loading...

Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442