Book Title: Yogasara Prabhrut Author(s): Amitgati Acharya, Yashpal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 3
________________ ३२७ पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तार के शब्दों में (योगसार-प्राभृत) योगसार प्राभृत में योग से सम्बन्ध रखनेवाले और योग को समझने के लिए अत्यावश्यक जिन विषयों का प्रतिपादन हआ है वे अपनी खास विशेषता रखते हैं और उनकी प्रतिपादन शैली बडी ही सुन्दर जान पड़ती है - पढ़ते समय जरा भी मन उकताता नहीं, जिधर से और जहाँ से भी पढ़ो आनन्द का स्रोत वह निकलता है, नयी-नयी अनुभूतियाँ सामने आती हैं, बार-बार पढ़ने को मन होता है और तृप्ति नहीं हो पाती । यही कारण है कि कुछ समय के भीतर मैं इसे सौ-से भी अधिक बार पूरा पढ़ गया हूँ। इस ग्रन्थ का मैं क्या परिचय दूं और क्या महत्त्व ख्यापित करूँ वह सब तो इस ग्रन्थ को पढ़ने से ही सम्बन्ध रखता है। पढ़नेवाले विज्ञ पाठक स्वयं जान सकेंगे कि यह ग्रन्थ जैनधर्म तथा अपने आत्मा को समझने और उसका उद्धार करने के लिए कितना अधिक उपयोगी है, युक्तियुक्त है और बिना किसी संकोच के सभी जैन-जैनेत्तर विद्वानों के हाथों में दिये जाने के योग्य है; फिर भी मैं यह बतलाते हुए कि ग्रन्थ की भाषा अच्छी सरल संस्कृत है, कृत्रिमता से रहित प्रायः स्वाभाविक प्रवाह को लिये हुए गम्भीरार्थक है और उसमें उक्तियाँ, उपमाओं तथा उदाहरणों के द्वारा विषय को अच्छा बोधगम्य किया गया है। [C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/327]Page Navigation
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