Book Title: World of Philosophy
Author(s): Christopher Key Chapple, Intaj Malek, Dilip Charan, Sunanda Shastri, Prashant Dave
Publisher: Shanti Prakashan
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प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक विकारों के लिए सिद्धान्ततः कोई अवकाश नहीं है। निष्कर्षतः आत्मप्रकाशित धर्मबोध में नैतिक अन्वेष्य का अर्थ है मनुष्य के स्वरुप विषयक ऐसा मानदण्ड जो उसके कर्मो को एक आध्यात्मिक अर्थ दे, एक ऐसी आदर्श आत्म-प्रतिमा दे जिसकी अनुकृति में वह अपने प्रस्तुत स्वरुप को ढाल सके और उसका रुपान्तरण करने के प्रयत्न द्वारा अपने कर्म को अर्थ दे सको ऐसी नैतिक दृष्टि एक नैतिक कर्ता से अपनी कर्म चेतना में जैव धरातल से ऊपर उठने की अपेक्षा करता है जहाँ कर्म की कर्मवत्ता अपने आप में स्वतः प्रामाण्य होती है। भारतीय परम्परा में चाहे धृति-क्षमा इत्यादि धर्म के दसविध लक्षण हों, चाहे श्रुति, स्मृति, सदाचार और स्वस्य प्रियमात्मन: जैसे धर्म निर्णय के चतुर्विध स्रोत हों या फिर 'आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्' जैसा धर्म का अनौपाधिक स्वरुप बताया गया हो - सबके सब उपर्युक्त अपेक्षा के पूर्वग्रह अथवा हेतु रुप से ही कहे गर्यो।
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