Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta

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Page 15
________________ *--- - - - वृहज्जैनवाणीसंग्रह - ~ होकर पांवके अग्रभाग चार अंगुलके अन्तरसे रख, दोनों हाथ लटका * दृष्टि नासाके अप्रभागपर रख यह प्रतिज्ञा करे कि मैं इतने समय । * तक सामायिक करूगां सो जबतक सामायिककी क्रिया करू तबतक । मैं संपूर्ण परिग्रहका त्याग करता हूं और इस स्थानको छोड़कर दूसरे । * स्थानपर नहीं जाउंगा। पश्चात् नौ अथवा तीन बार णमोकार मंत्रका * उच्चारण करके साष्टांग नमस्कार करै । इसके बाद खड़े खड़े ही या । बैठकर तीन बार णमोकार मंत्र पढ कर हाथ जोड़कर तीन आवर्त * देकर मिले हुये हाथोंपर एक बार शिरोनति करै बादमें इसीप्रकार । से दाहिने हाथकी दिशामें फिर पीठ पीछेकी दिशामें और फिर बायें हाथकी दिशामें करें। इसप्रकार चारों दिशाओंमें चार शिरोनति और। १ वारह आवर्त करना चाहिये । सो ही रत्नकरण्डश्रावकाचारमें सामायिक प्रतिमाके प्रकरणमें कहा है:* चतुरावर्तत्रितयश्चतुःप्रणामस्थितो यथा जातः। सामायिकोद्विनिषद्यास्त्रियोगशुद्धात्रिसंध्यमभिवन्दी ॥१२९॥ अर्थ-चारों दिशाओंमें तीन तीन आवर्त और चार प्रणाम सहित । तथा वाह्य और आभ्यन्तर उपाधि रहित दो आसन ( पद्मासन तथा । 1 खड्गासन ) सहित मन वचन कायरूप योगनय शुद्ध तीनों संध्याओंमें ! वंदना करनेवाला सामायिक प्रतिमाधारी श्रावक है। इसप्रकार चार शिरोनति और बारह आवर्त करनेके बाद शांत* चित्त होकर आगे दियेहुये संस्कृत अथवा भाषा सामायिकका पाठ * धीरे धीरे करना चाहिये। र सामायिक पाठमें प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, सामायिक, स्तवन बंदन और कायोत्सर्ग ये छह आवश्यक कर्म हैं । इनका वर्णन हिंदी सामायिक ** -52- *

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