Book Title: Vividh Puja Sangraha Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 8
________________ (६) कषायको टारी॥नि॥७॥समिति पांच तीन गुप्ति साधे, पांच महाव्रत पारी ॥ प्रजुजी॥तीजे मंगल नमो सूरीश्वर, षट्त्रिंशत् गुण धारी ॥ नि॥॥ अंग उपांग कहे जिनवरके, श्क दश दो दश जारी ॥ प्रजुजी ॥ चरणसत्तरी करणसत्तरी, पचवीश गुण मारी ॥ नि०॥ ए॥ सूरि नहीं पिण सूरि समही, वाचना दे हितकारी ॥ प्रजुजी ॥ उपाध्याय चौथे मंगलमें, नमो नमो नर नारी॥निमारासंयम योगमें युक्त सदा गुरु, षट् काया रखवारी ॥ प्रजुजी ॥ षट् व्रत पालक पंचेंडी अरु, लोन निग्रह करतारी॥नि०॥ ११॥पडिलेहणा अरु नावविशुकि, दमा गुप्ति त्रय धारी॥प्रनुजी॥ शीतादि परिषदको जीती, उपसर्ग दूर निवारी ॥ नि० ॥ १२ ॥ ऐसे सद्गुरु पांचमे मंगल, जगजीवन उपकारी प्रजुजी॥ श्राप तरे औरोंको तारे, नमो नमो नर नारी ॥ नि ॥ १३॥ सर्व मंगलमें उत्तम मंगल, पांचो पद नमोकारी॥जुज॥ मालामें गुण पांचो पदके, सय अठ मणके धारी ॥ नि० ॥ १४ ॥सोलां पैंतीस अठसठ श्रदर, अकर पद दातारी ॥प्रनुजी॥ वसन ध्यान धरे नित जावे, श्रातम हर्ष अपारी ॥ नि० ॥ १५ ॥ इति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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