Book Title: Vividh Puja Sangraha Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 4
________________ देवचंद्रजी, विजयलक्ष्मीसूरि, ज्ञानविमलसूरि, देवपाल, धर्मचंजी, सकलचंजी, मेघराजजी, देवविजयजी, वीरविजयजी अने गंजीरविजयजी-ए सुप्रसिद्ध पुरुषो बे. जैन ना एउने सारी रीते जाणे . ए बधा पुरुषो हमणांज थगया जे. श्रीवीरविजयादि गया सैकामांज विद्यमान हता. श्रीगंजीरविजयजी चार वर्ष पहेलांज कालधर्म पाम्या जे. ए पुरुषोए नक्ति उसावे, ज्ञान जाग्रत करे, एवां रसिक पदमा ढालबह देशनाषामां पूजाउँ रची जैनोने बहु उपकृत कर्या बे. ___ आत्महितैषीने आत्महितनुं नक्ति एक प्रबल साधन . एवं एक साधन श्रा प्रगट थयेली पूजा पूलं पाडे बे. तेनो लान मुमुकुट लेशे एवी श्राशा बे. केलवायला के वगर केलवायला, बाल के वृक्षबधांने पोतानी शक्ति अनुसार एक सरखो लाज आ पूजा करशे. केलवायला नार्जनुं वलण पण पूजा जणी खेंचायु जे ए आनंददायक . ए वलण विशेष खेंचाइ धर्मवृद्धि था! मुंबइ-द्वितीय नाउपद शुक्ल ५ सं. १७३ ली. प्रसिद्धकर्ता. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 512