Book Title: Vishvakarmaprakash Author(s): Unknown Publisher: Unknown View full book textPage 6
________________ विप्र || 2 11 वसेहो ॥ २१ ॥ और जिसमें रात्रि में मृग बसे अथवा गो बिलाव से अत्पन्न शब्द करें और जिसमें हाथी घोडे आदि अत्यन्त शब्द करें और जो वर स्त्रियों के युद्ध अत्यन्त दूषित हो ॥ २२ ॥ जिस घर में कबूतरोंके घर हों मधूकादिनिलय अर्थात मोहार बैठनी हो और इस प्रकारके अनेक जो उत्पात है उनमे दषित घरके होनेपर वास्तुशान्तिको करें ॥ २३ ॥ इसके अनन्तर भूमिके लक्षणका वर्णन करते हैं। इसके अनन्तर जगत् के कल्याणकी कामनासे भूमिको वर्णन करता हूँ कि, ब्राह्मण आदिवणों के घरोंकी क्रमसे श्वेत रक्त पीत और कृष्णवर्णकी भूमि होती है॥ २४ ॥ सुंदर मृगाधिवासित रात्रौ गोमाजराभिनादिते । वारणाश्वादिविरुते स्त्रीणां युद्धाभिदूषिते ॥ २२ ॥ कपोतकगृहावासे मधूनां निलये तथा । अन्यचैव महोत्पातैर्दूपिते शांतिमाचरेत् ॥ २३ ॥ अथ भूमिलक्षणम् ॥ अथातः संप्रवक्ष्यामि लोकानां दित काम्यया । श्वेता रक्ता तथा पीता कृष्णा वर्णानुपूर्व्यतः ॥ २४ ॥ सुगंधा ब्राह्मणी भूमी रक्तगन्धा तु क्षत्रिया । मधुगन्धा भवेश्या मद्यगन्धा च शुद्रिका ॥ २५ ॥ मधुरा ब्राह्मणी भूमिः कषाया क्षत्रिया मता । अम्ला वैश्या भवेद्भूमिस्तिक्ता शुद्रा कीर्तिता ॥ २६ ॥ चतुरस्रां द्विपाकारों सिंहोक्षाश्वेभरूपिणीम् । वृत्तञ्च भद्रपीठञ्च त्रिशूलं लिङ्गसन्निभम् ॥ २७ ॥ जिसमें गन्ध हो ऐसी भूमि ब्राह्मणी और रुधिरके समान जिसमें गन्ध हो ऐसी भूमि क्षत्रिया, सहनके समान जिसमें गंध हो ऐसी भूमि वैश्या और मदिराके समान जिसमें गंध हो ऐसी भूमि शूद्रा होती है ॥२५५॥ जो भूमि मधुर हो वह ब्राह्मणी और जो कपैली हो वह क्षत्रिया और जो अम्ल ( खड़ी ) हो वह वैश्या और जो तिक्त ( चरपरी ) होती है वह शुद्रा कही है ॥ २६ ॥ जो भूमि चौकोर हो जिसका हाथीके समान आकार हो और जिसका सिंह बैल घोडा हाथीकी समान रूप हो और गोल भद्रपीठस्थानकी भूमि त्रिशूल और शिवलिंगके तुल्य हो ॥ २७ ॥ भाटी. अ. १ ॥ २ ॥Page Navigation
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