Book Title: Vishvakarmaprakash Author(s): Unknown Publisher: Unknown View full book textPage 7
________________ (और प्रासादकी ध्वजा और कुंभ आदि जिसमें हों ऐसी भूमि देवताओंको भी दुर्लभ है जो भूमि त्रिकोण हो और जिसका शकट (गाडा) के समान आकार हो और जो सूप और बीजनेकी तुल्य हो ॥ २८ ॥ और जो मूरज (मृदंग ) वाजेकी तुल्य हो और सांप मेंढकके तुल्य जिसका रूप हो और जो गर्दभ और अजगरके समान हो और बगला और चिपिटके समान जिसका रूप हो ॥ २९ ॥ और मुद्गर उल्लू काक इनकी जो तुल्य हो, सूकर उष्ट्र बकरी इनकी जो तुल्य हो, धनुष, परशु (कुल्हाड) इनकी समान जिसका रूप हो ॥३०॥ और कृक प्रासादध्वजकुम्भादिदेवानामपि दुर्लभाम् । त्रिकोणां शकटाकारां शूर्पव्यजनसन्निभाम् ॥ २८॥ मुरजाकारसदृशां सर्पमण्डूक रूपिणीम् । खराजगरसङ्काशां बकाञ्चिपिटरूपिणीम् ॥ २९ ॥ मुद्राभां तथोलूककाकसननिभा तथा । शूकरोष्ट्राजसदृशां । धनुःपरशुरूपिणीम् ॥ ३०॥ कृकलासशवाकारां दुर्गम्यां च विवर्जयेत् । मनोरमा च या भूमिः परीक्षेत प्रयत्नतः ॥ ३१ ॥ द्वितीया दृढभूमिश्च निना चोत्तरपूर्वके । गम्भीरा ब्राह्मणी भूमिर्नृपाणां तुङ्गमाश्रिता ॥ ३२ ॥ वैश्यानां समभूमिश्च शूद्राणां विकटा स्मृता । सर्वेषां चैव वर्णानां समभूमिः शुभावहा ॥३३॥ शुक्लवर्णा च सर्वेषां शुभा भूमिरुदाहृता । कुशकाशयुता ब्राझी दुर्वा नृपतिवर्गगा ॥ ३४ ॥ लास (ककेंटा) और शव ( मुर्दा) जिसका इनके समान रूप हो और दुःखसे गमन करने योग्य हो इतने प्रकारको भूमिको वर्ज दे । जो भूमि मनोरम हो उसकी यत्नसे परीक्षा करे ॥ ३१ ॥ और दूसरी वह भूमि दृढ होती है जो उत्तर और पूर्वको नीची हो ब्राह्मणोंके गृहकी भूमि गम्भीर हो और क्षत्रियोंकी ऊंची होती है ॥ ३२ ॥ और वेश्योंकी भूमि सम (न ऊंची न नीची) कही है और शूद्रोंके लिये विकट भूमि श्रेष्ट कही है-अथवा सब वणोंके लिये समान जो भूमि है वह श्रेष्ठ कही है ॥३३ ॥ और सफेद वर्णकी भूमि सब वर्णोंको शुभ कही है जिसमेंPage Navigation
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