Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 11
________________ कुश और काशवाली भूमि ब्रह्मतेजवाले पुत्रोंको पैदा करती है और दूबसे युक्त भूमि शूरवीरोंको जन्माती है और फलसे युक्त भूमि । धन और पुत्रोंको देती है ॥ ५३॥ और नदीके कटावकी भूमि मूर्ख और सन्तानहीनोंको पैदा करती है । जिस भूमिके मध्यमें पत्थर हों वह दरिद्रियोंको और गढेवाली भूमि झूठे पुत्रोंको पैदा करती है ॥ ५४॥ जिस भूमिमें छिद्रहों वह पशु और पुत्र इनको दुःखकी दाता और सुखको नष्ट करनेवाली होती है और टेढी वा अत्यन्त रेतेली भूमि विद्यासे हीन पुत्रोंको पैदा करती है ॥ ५५ ॥ सूप बिलाव लकुट इनके कुशकाशान्विता ब्रह्मवर्चसान् कुरुते सुतान् । दूर्वान्विता वीरजनिः फलान्या धनपुत्रदा ॥ ५३॥ नदीघाताश्रिता मुखान्मृत वत्सांस्तथैव च । दरिद्रानश्ममध्यस्था गर्तावस्था मृषायुतान् ॥ ५४॥ विवरा पशुपुत्रार्तिदायिनी सौख्यहारिणी । वक्राति | वका जनयेत्पुत्रान्विद्याविहीनकान् ॥ ५५ ॥ शूर्पमार्जारलकुट-निभा भीतिसुतातिदा । मुसला मुसलान्पुत्राचनयेवंशघातकान् | ॥५६॥ घोरा घोरप्रदा वायुपीडिता वायुभीतिदा । भल्लभिल्लकसंयुक्ता पशुहानिप्रदा सदा॥९७॥ विकटा विकटान पुत्राञ्चशृगाल निभांस्तथा। ददाति रूक्षा परुषा दुर्वचाअनयेत्सुतान् ॥५८॥ गृहस्वामिभयञ्चैत्ये वल्मीके विपदः स्मृताः । धूर्तालयसमीपे तु पुत्रस्य मरणं ध्रुवम् ॥ ५९॥ तुल्य भूमि भय, पुत्रोंके दुःखकी दाता होती है और मुसलके समान भूमि वंशके नाशक मूसलचन्द पुत्रोंको पैदा करती है ॥ ५६ ॥ घोर भूमि भयको देनेवाली होती है और वायुसे पीडित भूमि वायुके भयको देती है भल्ल और भीलांसे युक्त भूमि सदेव पशुओंके हानिको देती है ।। ५७ ॥10 विकट कुत्ते और शृगालकी समान भूमि विकट पुत्रोंको देती है और रुखी भूमि कठोर और कुत्सित वचनोंके वक्ता पुत्रोंको देती है ॥ ५८ ॥ और चैत्यकी भूमि घरके स्वामीको भय देती है और वमीकी भूमि विपत्ति देती है और पतोंके स्थानके समीपकी भूमि निश्चयसे पुत्रके.

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