Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 13
________________ पांच रातमें जमैं तो मध्यम और सात रातमें जमैं तो अधम समझनी अथवा उस भूमिमें तिल जौ सरसों इनको बोवे ।। ६६ ।। अथवा गृहकी भूमिकी सब दिशाओं में सब अन्न बोवे जहां वे संपूर्ण बीज न जमें उस भूमिको यत्नसे वर्जदे ॥ ६७ ॥ व्रीहि शाली मूंग गेहूं सरसों तिल जो ये सात सर्वोषधी और सब बीज कहाते हैं ॥ ६८ ॥ सुवर्ण ताम्बके रंगके पुष्प गढेके मध्य में रखेहुए जिसके नामके आ जाय वह भूमि उसके लिये उत्तम कही है ॥ ६९ ॥ भूमिकी धूलिकी रेणुको आकाशमें फेंककर देखे यदि वे अधोभाग मध्यभाग ऊर्ध्वभाग में मध्यमा पञ्चरात्रेण सप्तरात्रेण निन्दिता । तिलान्वा वापयेत्तत्र यवांश्चापि च सर्पपान् ॥ ६६ ॥ अथवा सर्वधान्यानि वापयेच्च समन्ततः । यत्र नैव प्ररोहन्ति तां प्रयत्नेन वर्जयेत् ॥ ६७ ॥ व्रीहयः शालयो मुद्रा गोधूमाः सर्षपास्तिलाः । यवाचौपचयः सप्त सर्ववीजानि चैव हि ॥ ६८ ॥ सुवर्णताम्रपुष्पाणि वभ्रमध्यगतानि च । यस्य नाम्नि समायान्ति सा भूमिस्तस्य शोभना ॥ ६९ ॥ पांसवो रेणुतां नीत्वा निरीक्षदन्तरिक्षगाः । अधोमध्योर्ध्वगा नृणां गतितुल्यफलप्रदाः ॥ ७० ॥ कृष्टां प्ररूढवीजां गोऽध्युषितां ब्राह्मणैस्तथा । गत्वा महीं गृहपतिः काले सांवत्सरोदिते ॥ ७१ ॥ अथ शकुनानि ॥ पुण्याहशङ्खाध्ययनाम्बु कुम्भा विप्राश्च वीणापटहस्वनानि । पुत्रान्विता स्त्री गुरवो मृदंगा वाद्यानि भेरीनिनदाः प्रशस्ताः ॥ ७२ ॥ प्राप्त होजायँ तो अधोगति मध्यगति ऊर्ध्वगति देनेवाली वह भूमि होती है ॥ ७० ॥ जुती हुई जिस भूमिमें बीज जमें हों अथवा जिसमें गौ और ब्राह्मण वसे हों ऐसी भूमिमें वर्षदिन के कहेहुए मुहूर्त में घरका स्वामी गमन करे ( बसे ) ॥ ७१ ॥ इसके अनन्तर शकुनोंको कहते हैं कि, गृहमें प्रवेश होने के समय पुण्याहवाचन शंख और अध्ययनका शब्द जलका घट ब्राह्मणोंका समुदाय वीणा और ढोलका शब्द पुत्र करके

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