Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 5
________________ अत्यन्त पीडा देते हैं ॥ १४ ॥ फिर प्रसन्नहुए जगत्के पितामह ब्रह्मा उसको यह वर देतेभये कि, ग्राम, नगर, दुर्ग ( किला) पत्तन ( शहर ) इनमें ॥ १५ ॥ और प्रासाद (महल), प्याऊ और जलाशय (तालाब), उद्यान (बाग) इनमें जो मनुष्य मोहसे हे प्रभो ! वास्तुपुरुष तुझे न पूजै ।। १६ ॥ वह दरिद्रता और मृत्युको प्राप्त होताहै और उसको पदपद ( बातबात) पविघ्न होताहै और वास्तुपूजाको नहीं करता हुआ मनुष्य तेरा भोजन होताहे ॥ १७ ॥ यह कहकर ब्रह्मज्ञाताओंमें श्रेष्ठ ब्रह्मा शीघ्र अन्तर्धान होतेभये. इससे मनुष्य गृहके आरंभमें और वरं तस्मै ददौ प्रीतो ब्रह्मा लोकपितामहः । ग्रामे वा नगरे वापि दुर्गे वा पत्तनेऽपि वा ॥ १५॥ प्रासादे च प्रपायां च जलो द्याने तथैव च । यस्त्वां न पूजयेन्मयों मोहाद्वास्तु नर प्रभो ॥ १६॥ अश्रियं मृत्युमाप्नोति विघ्नस्तस्य पदेपदे । वास्तुपूजा मकुर्वाणस्तवाहारो भविष्यति ॥ १७ ॥ इत्युक्वान्तर्दधे सद्यो देवो ब्रह्मविदां वरः। वास्तुपूजां प्रकुर्वीत गृहारम्भे प्रवेशने ॥१८॥ द्वाराभिवर्तने चैव विविधे च प्रवेशने । प्रतिवर्षे च यज्ञादौ तथा पुत्रस्य जन्मनि ॥१९॥व्रतबन्धे विवाहे च तथैव च महोत्सवे । जीर्णोद्धार तथा शल्यन्यासे चैव विशेषतः॥२०॥ वज्राग्निपिते भग्ने सर्पचाण्डालवेष्टिते । उलूकवासिते सप्तरात्री काकाधिवासिते ॥२१॥ ५ प्रवेशमें वास्तुकी पूजा करे ॥ १८ ॥ और द्वारके बनाने में और तीन प्रकारके प्रवेशमें और प्रतिवर्ष यज्ञआदिमें और पुत्रके जन्ममें ॥१९॥ यज्ञोपवीत, विवाह और महोत्सवमें और जणिके उद्धारमें और विशेषकर शल्यकेन्यासमें अर्थात टे फटेके जोडनेमें ॥ २०॥ वज ( बिजली) और अग्निसे दूषितमें और भग्न (फूटा) में सर्प और चाण्डालसे युक्तमें और जिस घरमें उल्लू वसते हो और जिस घरमें सात दिन तक काग

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