Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 4
________________ यको प्राप्तहुए और भयभीतहुए ब्रह्माकी शरण गये ॥ ७ ॥ यह कहतेभये कि, हे भूतभावन ! अर्थात् भूतोंके पैदा करनेवाले हे भूतोके भारी ईश्वर ! बडा भय प्राप्त हुआ। हे लोकपितामह ! हम सब कहां जायें ॥ ८॥ उनके प्रति ब्रह्मा बोले कि, है देवताओ ! भय मतकरो. इस महावली भूतके संग विरोध मतकरो, किन्तु इसको अधोमुख गेरकर तुम शंकासे रहित होजावोगे ॥ ९ ॥ तिसके अनंतर क्रोधसे दुःखीहुपअ १ उन देवताओंने उस महाबली भूतको पकडकर अधोमुख गेरदिया और उसीके ऊपर वे देवता बैठगये ॥ १० ॥ वही वास्तुपुरुषको समर्थ भूतभावन भूतेश महद्भयमुपस्थितम् । क यास्यामः क्व गच्छामो वयं लोकपितामह ॥ ८॥ मा कुर्वन्तु भयं देवा विगृह्येत न्महाबलम् । निपात्याधोमुखं भूमौ निर्विशंका भविष्यथ ॥ ९॥ ततस्तैः क्रोधसन्तप्ताहीत्वा तं महाबलम् । विनिक्षिप्तमधो वकं स्थितास्तत्रैव ते सुराः ॥१०॥ तमेव वास्तुपुरुषं ब्रह्मा समसृजत्प्रभुः । कृष्णपक्षे तृतीयायां मासि भाद्रपदे तथा ॥ ११ ॥ शनिवारेऽभवजन्म नक्षत्रे कृत्तिकासु च । योगस्तस्य व्यतीपातः करणं विष्टिसंज्ञकम् ॥ १२ ॥ भद्रान्तरेऽभवजन्म कुलिके || तु तथैव च । कोशमान महाशब्दं ब्रह्माणं समपद्यत ।। १३ ॥ चराचरमिदं सर्व त्वया सृष्टं जगत्प्रभो । विनापराधेन च मां | पीडयंति सुरा भृशम् ॥ १४ ॥ ब्रह्माने भाद्रपदके कृष्णपक्षकी तृतीयामें रचा था ॥ १२॥ शनिवारके दिन और कृत्तिकाके दिन उसका जन्म हुआ. उस दिन व्यतीपात ॐ योग था और विष्टि करण था ॥ १२॥भद्राओंके मध्यमें और कुलिकयोगमें उसका जन्म हुआ और महान शब्द करताहुआ वह वास्तुपुरुष ब्रह्माके समीप गया ॥ १३ ॥ और बोला कि, हे प्रभो ! यह चराचर जगत् तुमने रचा है और विना अपराधके ये देवता मुझे

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