Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विकी टी. तार्थश्रवणवाह: यावत्करणादिदं दृश्य जायसंसये प्रवृत्तानियरितार्थप्रत्यय: जायकोउहलेप्रवृत्तश्रवणोत्म क्य: उष्पन्नसड्ढेसंशयम यादुद्भूतश्रवणवाञ्छ: उत्पन्नश्रवणात् प्रवृत्तश्रवडत्य वंभूतः हेतुफलभावविवक्षणान्त्र पुनरुक्तिः एवं उप्पन्नसंसए उप्पन्चकोजयहले संजायसड्ढ संजायसंसए संजायको उहलेसमुष्यसड्ढे समुष्पमसंसए समुप्पणकोउहलेव्यक्तार्थानि नवरमेतेषु पदेष संसब्दाप्रक र्षादिवचन: अन्य त्वाः जातश्रहोजातप्रश्नवाछः कुतोयतोजातसंशयः सोपिकुतोयतो जातकुबूहलअनेन पदत्रयेणावग्रहउक्त: एव मन्य पदानां न येणई हावायधारणाउता भवन्तीति तिक्वत्तोत्ति विकत्व: बीन्वारान् आयाहिणत्ति आदक्षणात् दक्षणपाखो दारभ्यप्रदक्षिणो दक्षिणपार्ववर्ती आदक्षिणप्रदक्षणोतसं बंद इत्ति स्तुत्या नमसत्ति नमस्यतिप्रणामतः च्यावत्करणादिदंश्य 諾瞞器器端端端需業需牆擺端業業装 卷業業糕糕糕糕糕業养养業業养業养業养养养器 माषा उवागएतिक्खत्तो आयाहिणंपयाहिणंकरे करेत्तावंदणमंसवंदित्ता गमंसित्ताजावपज्ज वास . नीतत्वपक्वानी जिहांलगेजिहांआर्यसोधर्मनामाअणगार तिहांबावीनेत्रिणवारजीमणापासाथकी प्रारंभीने प्रदक्षिणाकरकरीने वचनेकरीगुणस्तयेपंचांगप्रणामकरे बांदीगुणस्तवीनेनमस्कारकरीनेयावविनयसंयुक्तसेवाभक्तिकरवालागापछेडूमकहेजोभगवंतहे For Private and Personal Use Only

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