Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वि०टी० स 柴漲漲漲漲漲叢叢鬃業業業漲漲漲漲漲漲漲漲 यथास्वयमध्ययनार्थवगमादवगम्य इति एवं खलुत्ति एवंवक्ष्यमाणप्रकारेण खल वाक्यालङ्कारेसव्वोऊयवन्नोति सर्वतु कं कुसुमसं तएणंसुहम्मे अणगारेजंबूणगारंएवंव० एवंखलुजंबूतणंकालेणं० मियागामेणगरहोत्यावरणश्रोत स्मणमियग्गामस्सणगरस्सबहिया उत्तरपुरच्छिमेदिसौभाए चंदणपायवेणामंउज्जाणेहोत्था सव्वउ यवस्मयो तत्थर्णचंदणपायवस्सबहुमज्भदेसभाए सुहमस्मजक्खस्म जक्खायतणेहोत्थाचिराईएजहा पुरणभद्दे तत्थणं मियगामेणगरे विजएणामखत्तिएरायापरिवसई वमो तस्मणविजयस्म खत्तियस्म । ननाहेपूज्य दुःखविपाकनाश्रमणभगवंत यावत्मोक्षप्राप्तवातेणे किसाअर्थकह्या तिवारपछीसुधर्माणगार जंबूअणगारप्रतेइम कहताहुवा इमनिश्चेहेजंबू तेकालतेसमानेविषे सगागामनामनगरहंतोतेहनोवर्णनजा तेस्गागामनामानगरथीवाहिरउत्तरने पूर्वनेविचालेईशानकूणे चंदनपादपनामाउद्यानहतो सगलौऋतुनाकुसमसहितवनतेहनोवर्णन तिहांसौधर्मयक्षनो यक्षायतनयक्ष नोथानकप्रसादडतो घणाकालनोजिमपूर्णभद्रनोजूनोछेथानकतिहांसगगांमनामानगरनेविषेविजयनामाक्षबीराजावसेछरहेछेव 業叢叢業業業業業業業業叢叢鬃漲薪叢叢凝器 भाषा For Private and Personal Use Only

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