Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि.टी. ८ सृत्र षाभा 米米業 FREE www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेतुत्वात्पापकर्मणां विपाकास्तेयत्वाभिधेयतया सन्यसौवरणागरमिति न्यायेनदुःखविपाकाः प्रथमश्रुतस्कन्धः एवं द्वितीयसुखविपा काःतएणंति ततोनन्तरमित्यर्थः मियउत्तेइत्यादिगाथा तत्रमियउत्तेति म्टगापुत्राभिधानराजसुतवक्तव्यताप्रतिबद्धमध्ययनं म्टगापुत्र १ यखंधस्मदुहविवागाणं समजावसंपत्तणं के अट्टमत्त तरणंस हम्म अणगारे जंबू अणगार एवं वयासौएवंखलुजंब ू समणेणं श्रद्गरेणंजावसंपत्त णंदुह विवागाणंदस अज्मयणापस्यन्तामियात्त उझिए २ अभग्ग ३ सगडे ४ बहस्मद् ५ नंदी ६ उंबर ७ सोरियदत्त य ८ देवदत्ताय १ गा अनामाअणगारजंबू अणगारने इमकहताडवाइमनिचे हे जंबू श्रमण भगवंतमहावीरधर्मनी आदिनाकरण हारयावत्सुक्तिप्राप्तज्डवाते णेदुःखविषाकना १·दशअध्ययनकह्या तेकहे स्वगापुत्र हवेनांमेराजानोपुत्रतेहनीवक्तव्यता अध्ययनमांहिके ते अध्ययननोनाम पुत्र एहवोजांणिवो उकियएह वेनामे सार्थवाहनोपुत्र तेहनोपिणवीजोअध्ययन र अभग्गसेन इसे नामेविजेचोर सेनापतीनोपुत्र३ ते ० सक टइसेनांमे सार्थवाहनोपुत्र ४ तेहनोच ढहस्पतिदत्तसेनामेप्रोहितनोपुत्र५ ते हनो अध्ययननंदीवर्द्धन राजपुत्रई तेहनोअध्ययन' वरदद्दू For Private and Personal Use Only 業黹業讙愨需米米米米米米米米米米米米

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