Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
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विष्टी०
जनयू रञ्चकाद्याकारः समूहस्तस्य शब्दस्तदभेदाज्जनव्य हएवोच्यते अतस्तंबोलोव्यक्तवर्णोध्वनिरिति इंदमहेवत्ति इन्द्रोत्सवोवाइह *
यावत्करणात्खंदमहेवा रुद्दमहेवा जावउज्जाण जत्ताइवा जन्नवहवे उग्गाभोगाजावएकदिसिं एगाभिमुहा इतिदृश्यंततोयहाक्य * तदेवमनुसत्त व्य सूत्र पुस्तकेसवाक्षराण्य वसन्तीति तएणंसेपुरिसेतंजाइ अंधपुरिस एवंवयासीनोखलु देवाणुप्पिया अज्जमियग्गा *
णुप्पिया अज्जमियग्गामेइंदमहेतिवाजावनिगच्छतएणं सेपुरिसेतंजाईअंधपुरिसं एवंवयासिणो खलदेवाणुप्पियाईदमहेजावनिग्गए एवंखलुदे०समजावविहरइतएणंएएजावनिगच्छदूतएणसे
अंधपुरिसेतंपुरिसंएवंव० गच्छामोणंदेवा० अम्हेविसमणेभगवंजावपज्जुवासामोतएणंसेजाबंधेषु जम्हगगांमनेविषेद्रमहोच्छवछनागमहोच्छवडूजेलोकएकदिसेजाइकोलाहलशब्दकरछेतिवारपछीतेपुरुषतेजानअंधपुरुषप्रतेइमक ह्योनहीनिचे हेदेवाणुप्रिय इंद्रमहोच्छवनागमहोच्छवने अर्वेनीकलेजाइ इमनिचे हेदेवानुप्रियत्रमणभगवंतश्रीमहावीरविचरेछे यावत्तेभणीएपरिषदावांदिवासारूनीसरेछे जायक तिवारपछीते अंधपुरुषतेदेखतापुरुषप्रते दूमकहेजाये देवानुप्रियापणपणि
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