Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
वि.टो०
सूत्र
भाषा
*業業業業業際業業業张张
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुम समाणे नर्मसमाणे विणएगं पंजलिउडे अभिमुन्ति व्यक्तच दुहविवागायन्ति दुःखविपाकापापकर्मफलानि दुःखानांवादुःख एवंवयासी जगणंभंतेसमणेणं भगवयामहावीरणं जावसंपत्तणं दसमस्त गरम पण्हावागरणा त्रयमठ्ठे पणत्ते एक्कारससमस्यणंभंते अंगस्मविवागस्यक्व धम्मस्मसमणेणं जावसंपत्ते के प पसत्तेतएणंचज्जसुहम्म अणगारे जंबू अणगारं एवं क्यासी एवंखलुजंबूसमणेणं जावसंपत्त एकार समस्मत्रंगस्मविवागसुयस्म दोसुयखंधापणत्ता तंजहाद हविवागाय सुहविवागायपढमस्मरण तेसु पूज्यश्रमणतपस्वीभगवंतमहावीरयावत् सुक्तिप्राप्तवातेणे दस मा गप्रश्नव्याकरणना एअर्थका इग्यारमाच' गना हे पूज्यविपाकस्तू त्रस्कंधनाश्रमणभगवंतमहावीरयावत्मोक्षपुङतातेणे किसा अर्थ कयातिवारेपछी आर्यसौधर्म अणगार जंबू अणगारप्रतेदूमकहता हवाइमनिश्चेहेजंबूश्रमण भगवंत यावत्मोक्षप्राप्तवातेणे ११ इग्यारमा गनाविपाकश्रुतना बेश्रुतस्कंध कह्यातेकहेछेदु:खविपाक शुखविपाक २ तेमध्ये पहिला हेपूज्य श्रुतस्कंधदुःखविपाकना श्रमण भगवंतयावत् मोक्षप्राप्तडता तेणे किसार्थकच्या तिवार पछीसौध
For Private and Personal Use Only
帳蒸蒸蒸雜雜

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 287