Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
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वि.टी.
५
छत्र
भाषा
茶類
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घोरेअ
तवेप्रशस्ततपा वृहत्तपावाउराले भीमः अतिकष्टतपः कारितया पार्श्व वर्त्तिनामल्पसत्वानां भयजनकत्वात् उदारोवाप्रधानदूत्यर्थः घो रोनिर्घृणः निर्दयपरीषहाद्यरातिविनाशे घोरगुणे अन्यैर्दुरनुचरगुणः घोरतवस्त्रीघोरै स्तपोभिस्तपस्वी घोरवंभचेरवासी ल्पसत्वदुरनुचरत्वेन दारुणे ब्रह्मचर्ये वस्तु शीलं यस्यसतथा उच्छूढ़सरीरे उच्छ ढं उर्तिशरीरं येनतत्प्रतिकर्मत्यागात् उलते उलेसेसंक्षिप्ताशरीरान्तर्वर्त्तिनी त्वाद्विपुलाच विस्तीर्णा अनेकयोजनप्रमाणक्षेत्राश्रितवस्तु दहनसमर्थत्वात्तेजोलेश्याविशिष्ट तपोजन्यलब्धिविशेषप्रभवातेजोन्वाला यस्य सतथाउड्ढ जाणूशुद्दष्टथिव्यासनवर्णनात् चपग्रहिक निषद्याया अभावात्च उत्क टु कामनः सन्न पविश्यते उजानुनीयस्य सऊर्द्ध जानु: अहोसिरे अधोमुखोनोर्द्ध तिर्यग्वाविक्षिप्तदृष्टिरितिभावः ब्माणकोट्ठोवगएध्या नमेवकोष्टोध्यानकोष्टस्तमुपगतोय: सतथाविहरइति संजमे तव साअप्याणं भावेमाणेविहरत्य दृश्यं जायसड्ढे
प्रवृत्तविवचि
णकोट्ठोवगए विहरद्वतएणं ज्जजंबू णामं अणगारे जायसड जावनेणेव अन्नसुहम्म अणगारे तेणेव जिमगौतमस्वामी तिमजयावत् ध्यानरूपियोकोठलो तेहने उपगतडतोविचरेके तिवारपछी आर्यजंबू नामाअणगार जातश्रवाऊप
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संवित्तवि
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