Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 6
________________ अभिमत सेवामें १२-०३-१३ श्री युत्त सेवाभावी, समाज रत्न श्री इन्दरचंदजी कोठारी, कोयम्बत्तूर सादर जयजिनेन्द्र, आज अत्यंत हर्ष का अवसर है कि विनय बोधि कण संयुक्त (भाग ५,६,७तथा १३) प्रस्तुत होने जा रहा है। चार चातुर्मासों के दौरान परम पूज्य गुरुदेव शिविराचार्य विनय मुनि जी खींचन महाराज साहब के सानिध्य से उकेरे गए ज्ञान बिंदु कण रूप स्वाध्याय की ज्योति बिखेरते हर पल जीवन को प्रकाशित करते रहते है। "विनय बोधि कण" के प्रथम भाग का प्रकाशन इसी पावन भावना से हुआ था। विनय बोधि कण भाग १,२,३,४,५,६,७,११,१२,१३ कुलदस वि.बो.कण प्रकाशित हुए है। एक-एक करके कुल दश ज्योतिर्मय विनय ज्ञान प्रकाश मुनिश्री के हर चातुर्मास को अवलोकित कर रहे है। मुनिश्री की ज्ञान-आभा की सिर्फ छाया ही हम इनमें पाते है। उनके ज्ञान को समेटना श्रावको के बस की बात नहीं है। तथापि इनकी ज्ञान आभा से हम सब आलोकित हो रहे है और उज्जवल जीवन की प्रेरणा पा रहे है। गुरुदेव श्री के निर्मल ज्ञान की निर्मलता हम सभी को निर्मल बनाये, बस यही भावना। श्रीमती दीपा संगोई संगोई हॉल, तेलघानी नाका, रायपुर C.G.-492 009 श्री सेवाभावी भाईसा इन्दरचंदजी कोठारी, कोयम्बतुर, १३-०३-१३ सादर जय जिनेन्द्र, आप सपरिवार प्रसन्न होगे, यहाँ पर सब कुशल मंगल है । पूज्य गुरुदेव की सेवा में हमारी सविधि वंदना अर्ज कर सुखसाता पूछियेगा । विनय बोधि कण संयुक्त (५,६,७ व १३ भाग) पर संक्षिप्त में अभिमत भेज रही हैं। यहाँ के योग्य सेवा कार्य लिखियेगा। परम ज्ञान पुञ्ज द्वारा मानव जीवन को सार्थक बनाना उद्देश्य रहा है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु अखण्ड ज्योति स्वरूप ज्ञानपुञ्ज विनय बोधि कण का ५,६,७,तथा १३ वां (संयुक्त) भाग प्रकाशित किया जा रहा है । यह जानकार ह्रदय बहुत ही हर्षोल्लसित हो रहा है कि प्रशममूर्ति पूज्य श्री विनय मुनि जी महाराज द्वारा मानस-मन्थित ज्ञानोद्गार से पूरपूरित यह अंक समस्त अनुव्राजकों एवं श्रावकों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा । मानव जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए जो ज्ञानगुम्फन इस पुस्तक में किया गया है, वह सुगमता से प्राप्य नहीं है । मुनि श्री के मुखारविन्दोद्गार से समृद्ध ज्ञान के गूढ़भण्डार को शब्दों में प्रकट करने का एक लघु प्रयास किया गया है। अस्तु, सादर भावना से जीवनपथावलोकन की प्रेरणा लेना ही श्रेयस्कर होगा। डा. कंचन जैन पी-५,द्वितीय तल, नवीन शाहदरा, दिल्ली - ११००३२

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