Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ (५) अंगज तोरे अवतरी, बोलि सुवर्ण विशाल; नव नव वाणी वयण रस, पूरीश तारी बास ।। ७॥ कवण विमल ते किहां हु, बोलुं तसु उतपत्त; धर्म काज कीधां जिशां, चतुर सुणो एक चित्त ॥ए॥ चिहुंसें जोयण आपणे, जोयण एक प्रमाण; जोयण लाख जे देवकां, जंबू छीप वखाण ॥१॥ ॥ ढाल ॥२॥ चोपाई ॥ जरत खंग बाहिर जयवंत, सोवनमय पर्वत हिमवंत; एक सहस्र बावन जोयणे, बार कला पुहलपण गणे ॥१॥ शत योजन ऊंचो ते होय, तसु उपरे पदम अह जोय; निर्मल जल हीरोदक जिसुं, दश जोअण ते उंहुं श्सुं ॥२॥ पंच सयां पुहळु मंडाण, जोषण सहस लंब परिमाण; तेहy वारिन विणसे किमें, तलि तास पेखो वज्रमें ॥३॥ तेणे पद्म अह लखमी तणे, कनक कमल कविजन जणे; वास तणो तिहां स. यल- विवेक, लांबु पहोचु जोषण एक ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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